दस महाविद्याओं में भी काली महाविद्या सर्वप्रमुख, महत्वपूर्ण एवं अद्वितीय कही गई है। क्योंकि यह त्रिवर्गात्मक महादेवियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती में प्रमुख है। तन्त्र शास्त्रों के अनुसार मात्र महाकाली साधना से ही जीवन की समस्त कामनाओं की पूर्ति और मनोवांछित फल की प्राप्ति सम्भव होती है। इस सम्बन्ध में हम साधनात्मक ग्रन्थों को टटोलकर देखें तो लगभग सभी योगियों, संन्यासियों, विचारकों, साधकों और महर्षियों ने एक स्वर से महाकाली साधना को जीवन की सर्वश्रेष्ठ, प्रमुख और महत्वपूर्ण साधना स्वीकार किया है।
दस महाविद्याओं में सर्वश्रेष्ठ महाकाली कलियुग में कल्पवृक्ष के समान शीघ्र फलदायक एवं साधक की समस्त कामनाओं की पूर्ति में सहायक है। जब जीवन के पुण्य जाग्रत होते हैं, तभी साधक ऐसी प्रबल शत्रुहन्ता, महिषासुर मर्दिनी, वाक् सिद्धि प्रदायक, महाकाली की साधना में रत होता है। जो साधक इस साधना में सिद्धि प्राप्त कर लेता है, उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता और भोग तथा मोक्ष दोनों में समान रूप से सम्पन्नता प्राप्त कर वह जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्णता प्राप्त कर लेता है।
इस कलियुग में काली साधना के समान अन्य कोई साधना नहीं है। यदि जीवन में अवसर मिल जाए तो प्रयत्न करके भी काली साधना अवश्य सम्पन्न करनी चाहिए। यदि साधक ऐसा अवसर आने पर भी चूक जाता है तो उसके समान कोई और दुर्भाग्यशाली नहीं कहा जा सकता है।
दस महाविद्याओं में प्रमुख और शीघ्र फलदायक होने के कारण सदियों से असंख्य साधक इस साधना को सम्पन्न करते आए हैं और उच्चकोटि के साधकों के मन में भी यह तीव्र लालसा रहती है कि अवसर मिलने पर किसी भी प्रकार से महाकाली साधना सम्पन्न कर ली जाए।
फिर भी जिन साधकों काली साधना को सिद्ध किया है, उनके अनुसार निम्न तथ्य तो साधना सम्पन्न करते ही प्राप्त हो जाते हैं -
१. काली साधना से तुरन्त वाक् सिद्धि (जो भी कहा जाए, वह सत्य हो जाए) तथा इस लोक में समस्त मनोवांछित फल प्राप्त करने में सक्षम हो पाता है।
२. इस साधना की सिद्धि करने से व्यक्ति समस्त रोगों से मुक्त हो कर पूर्ण स्वास्थ, सबल एवं सक्षम हो जाता है।
३.यह साधना जीवन के समस्त भोगों को दिलाने में समर्थ है, साथ ही काली साधना से मृत्यु के उपरान्त मोक्ष की प्राप्ति होती हैे।
४.शत्रुओं को मान-मर्दन करने के लिए, उन पर विजय पाने के लिए, मुकदमे में सफलता के लिए और पूर्ण सुरक्षा के लिए इस से बढ़ कर और कोई साधना नहीं है।
५.इस साधना से दस महाविद्याओ में से एक महाविद्या सिद्ध हो जाती है, जिससे सिद्धाश्रम जाने का मार्ग प्रशस्त होता है।
६.इस साधना की सिद्धि से तुरन्त आर्थिक लाभ और प्रबल पुरुषार्थ की प्राप्ति सम्भव होती है।
७."काली पुत्रे फलप्रदः" के अनुसार काली साधना योग्य पुत्र की प्राप्ति व पुत्र की उन्नति, उसकी सुरक्षा और उसे पूर्ण आयु प्रदान करने के लिए श्रेष्ठ साधना कही गई हैे।
८.इसके साथ ही काली साधना से साधक मृत्यु को जीतकर पूर्ण निर्भय हो जाता
वस्तुतः काली साधना को संसार के श्रेष्ठ साधकों और विद्वानों ने अद्भुत एवं शीघ्र सिद्धि देने वाली साधना कहा है। इस साधना से साधक अपने जीवन के सारे अभाव को दूर कर अपने भाग्य को बनाता हुआ पूर्ण सफलता प्राप्त करता है।
साधना विधि :-
नवरात्रि के प्रथम दिन से अथवा किसी भी मास की शुक्लपक्ष की नवमी के दिन से अथवा किसी भी मंगलवार से साधक इस साधना को आरम्भ कर सकता है। परन्तु नवरात्रि काल में इस विशिष्ट साधना का विशेष महत्व बताया गया है। इसे नवरात्रि के प्रथम दिन से ही प्रारम्भ करना चाहिए और अष्टमी को इसका समापन किया जाना शास्त्र सम्मत है। इस साधना में कुल एक लाख मन्त्र जाप किया जाता है। यह नियम नहीं है कि नित्य निश्चित संख्या में ही मन्त्र जाप हो, परन्तु यदि नित्य पन्द्रह हज़ार मन्त्र जाप होता है तो उचित है। यह साधना प्रातः या रात्रि दोनों समय में की जा सकती है। यदि साधक चाहे तो प्रातःकाल और रात्रि दोनों ही समय का उपयोग कर सकता है।
साधक स्नान करके शुद्ध काले या लाल वस्त्र धरण करके काले अथवा लाल आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुँह करके बैठ जाए। फिर अपने सामने एक बाजोट पर काला अथवा लाल वस्त्र बिछाकर उसपर सद्गुरुदेव और भगवती महाकाली का चित्र या यन्त्र स्थापित कर दे। साथ ही साधक गणेश और भैरव के प्रतीक रूप में दो सुपारी मौलि बाँधकर क्रमशः अक्षत और काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर दे।
फिर शुद्ध घी का दीपक और धूप-अगरबत्ती जलाकर सर्वप्रथम साधक संक्षिप्त गुरुपूजन सम्पन्न करे और गुरुमन्त्र का चार माला जाप करे। इसके बाद सद्गुरुदेवजी से भगवती महाकाली साधना सम्पन्न करने आज्ञा लें और साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करे।
फिर साधक भगवान गणपतिजी का संक्षिप्त पूजन करे और-
“ॐ वक्रतुण्डाय हुम्”
मन्त्र की एक माला जाप करे। इसके बाद साधक भगवान गणपति जी से साधना की निर्विघ्न पूर्णता और साधना की सफलता के लिए प्रार्थना करें।
इसके बाद साधक संक्षिप्त भैरव पूजन सम्पन्न करे और -
“ॐ भ्रं भ्रं क्रीं क्रीं महाकाल भैरवायै भ्रं भ्रं क्रीं क्रीं फट्”
मन्त्र का एक माला जाप करें। फिर साधक महाकाल भैरवजी से साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें।
इसके पश्चात साधक को साधना के पहले दिन संकल्प अवश्य लेना चाहिए। इसके लिए साधक दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि “मैं अमुक पिता का नाम अमुक गोत्र अमुक परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी गुरुजी का शिष्य होकर आज से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए, सिद्धि के लिए महाकाली साधना का अनुष्ठान प्रारम्भ कर रहा हूँ। मैं ८ दिनों तक नित्य १५० माला मन्त्र जाप सम्पन्न करूँगा। हे, माँ! आप मेरी इस साधना को स्वीकार कर मुझे सिद्धि प्रदान करें और इसकी ऊर्जा को आप मेरी बुद्धि में स्थापित कर दें।”
ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल जमीन पर छोड़ देना चाहिए। इसके बाद प्रतिदिन संकल्प करने की आवश्यकता नहीं है।
इसके बाद साधक महाकाली यन्त्र अथवा चित्र का पंचोपचार से पूजन करे। पूजन में कुमकुम, अक्षत, पुष्प और प्रसाद अर्पित करके धूप व दीप समर्पित करें।
विनियोग :-
ॐ अस्य श्रीदक्षिणकालीमन्त्रस्य भैरव ऋषिः, उष्णिक् छन्द, दक्षिण कालिका देवता, क्रीं बीजं, हूं शक्तिः, क्रीं कीलकं ममाभिष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यास :-
ॐ भैरव ऋषये नमः शिरसि। (सिर का स्पर्श करे)
ॐ उष्णिक् छन्दसे नमः मुखे। (मुख का स्पर्श करे)
ॐ दक्षिण कालिका देवतायै नमः हृदि। (हृदय का स्पर्श करे)
ॐ क्रीं बीजाय नमः गुह्ये। (गुह्य स्थान का स्पर्श करे)
ॐ हूं शक्तये नमः पादयोः। (पैरों को स्पर्श करे)
ॐ क्रीं कीलकाय नमः नाभौ। (नाभि का स्पर्श करे)
ॐ ममाभिष्ट सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे। (सभी अंगों का स्पर्श करे)
करन्यास :-
ॐ क्रां अँगुष्ठाभ्याम् नमः। (दोनों तर्जनी उंगलियों से दोनों अँगूठे को स्पर्श करें)
ॐ क्रीं तर्जनीभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों तर्जनी उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ क्रूं मध्यमाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों मध्यमा उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ क्रैं अनामिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों अनामिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ क्रौं कनिष्ठिकाभ्याम् नमः। (दोनों अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका उंगलियों को स्पर्श करें)
ॐ क्रः करतलकर पृष्ठाभ्याम् नमः। (परस्पर दोनों हाथों को स्पर्श करें)
हृदयादिन्यास :-
ॐ क्रां हृदयाय नमः। (हृदय को स्पर्श करें)
ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा। (सिर को स्पर्श करें)
ॐ क्रूं शिखायै वषट्। (शिखा को स्पर्श करें)
ॐ क्रैं कवचाय हुम्। (भुजाओं को स्पर्श करें)
ॐ क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्। (नेत्रों को स्पर्श करें)
ॐ क्रः अस्त्राय फट्। (सिर से घूमाकर तीन बार ताली बजाएं)
व्यापकन्यास :-
श्री दक्षिणकाली देवी के मूल मन्त्र से पाँच बार या सात बार अथवा नौ बार व्यापक न्यास करें -
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा ॥
फिर हाथ जोड़कर भगवती काली का निम्नानुसार ध्यान करे -
ॐ शवारूढ़ां महाभीमां घोरदंष्ट्रां हसन्मुखीम्
चतुर्भुजां खड्ग-मुण्ड वराभयकरां शिवाम्।
मुण्डमालाधरां देवीं ललज्जिह्वां दिगम्बराम्
एवं सञ्चिन्तयेत् कालीं श्मशानालयवासिनीम्॥
इस प्रकार ध्यान करने के पश्चात निम्न मन्त्र का काली हकीक माला अथवा रुद्राक्ष माला से १५० माला जाप करे -
काली साधना मन्त्र :-
॥ ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हुं हुं स्वाहा ॥
मन्त्र जाप के उपरान्त साधक निम्न श्लोक का उच्चारण करने के बाद एक आचमनी जल छोड़कर सम्पूर्ण जाप माँ भगवती महाकाली को समर्पित कर दें।
ॐ गुह्यातिगुह्य गोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपं।
सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत्प्रसादान्महेश्वरि।।
इस प्रकार यह साधना क्रम साधक नित्य ८ दिनों तक निरन्तर सम्पन्न करें।
इस काली साधना में आपको कुल एक लाख मन्त्र जाप करना है। नवरात्रि काल में यह जाप आठ दिनों में सम्पन्न हो जाना चाहिए। अन्य दिनों में यह साधना २१ दिनों में भी सम्पन्न की जा सकती है।
वस्तुतः यह मन्त्र अपने आप में अद्वितीय, महत्वपूर्ण, शीघ्र सिद्धिप्रद और साधक की समस्त मनोकामना की पूर्ति में सहायक है।
महाकाली साधना कलियुग में कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायी साधना है। यह साधना सरल होने के साथ ही साथ प्रभाव युक्त है, इससे भी बड़ी बात यह है कि इस प्रकार की साधना करने से साधक को किसी प्रकार की हानि नहीं होती अपितु उसे लाभ ही होता है।
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