श्री स्वामी परमहंस स्तुति,

Sooraj Krishna Shastri
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Swami Paramhans Ji Maharaj
Swami Paramhans Ji Maharaj


योऽहर्दिवं  पोषयते जनानां

वृन्दं स्वपोषं शरणागतानाम् । 

संतर्पयन्स्वस्वमनोरथैश्च

         तस्मै नमः स्वामिवराय नित्यम् ॥1॥ 

  जो शरण में आए हुये जनसमूह के प्रति अभिलाषाओं की पूर्ति करते थे और अपनेही धन से सबका पोषण करते थे, उन सर्वश्रेष्ठ श्री स्वामी जी को नित्य प्रणाम है । 

संलग्न चित्तं सुरवाक् प्रचारे 

श्रीसच्चिदानन्दविचारचेताः । 

योस्त्यत्रलोके करुणावतारः 

           तस्मै नमः स्वामिवराय नित्यम् ॥2॥ 

  संस्कृत विद्या के प्रचार में तथा ब्रह्म विवेचन में ही जिनका चित्त सदैव लगा रहता था और जो इस लोक में साक्षात् करुणा के अवतार थे, उन सर्वश्रेष्ठ श्री स्वामी जी को नित्य प्रणाम है । 

मानापमानेऽपि च शत्रु-मित्रे

    लाभेप्यलाभेऽपि च तुल्य वृत्तिः । 

योऽशेष जीवेषु च साधुशीलं

           तस्मै नमः स्वामिवराय नित्यम् ॥3॥

  जो मान-अपमान, शत्रु-मित्र, लाभ-हानि को एक बराबर मानते थे और सब जीवों पर साधुता का व्यवहार करते थे, उन सर्वश्रेष्ठ श्री स्वामी जी को नित्य प्रणाम है । 

यः सन्ततं    तर्पयतेसुराणां 

वृन्दं जगत्पावनमीश्वरञ्चं । 

सायं च प्रातर्निगमाग्निहोत्रैः 

             तस्मै नमः स्वामिवराय नित्यम् ॥4॥ 

  जो जगत को पालन करनेवाले, देश समूह को और ईश्वर को सायं काल और प्रातःकाल वेदपाठ द्वारा तथा अग्निहोम के द्वारा तृप्त करते थे उन सर्वश्रेष्ठ श्री स्वामी जी को नित्य प्रणाम है । 

घर्मं च शीतं    सहते च वृष्टिं 

     गच्छन्श्वभिश्छात्रवरैश्च भूमिम् । 

योहर्दिवंर्दि वं दीनदयालुदृष्टिं 

         तस्मै नमः स्वामिवराय नित्यम् ॥5॥

  जो कुत्तों एत्तों वं श्रेष्ठ छात्रों के साथ पृथ्वी पर विचरते हुए धूप,शीत एवं वर्षा को सहते थे तथा प्रतिदिन जिनकी दीनों पर दृष्टि रहती थी उन सर्वश्रेष्ठ श्री स्वामी जी को नित्य प्रणाम है । 

यस्यार्थिनो यान्ति न खिन्नचित्ताः 

शत्रुश्च नस्यादिहकोपिबन्धुः । 

श्रीमन्महाराजधुरन्धराय 

       तस्मै नमः स्वामिवराय नित्यम् ॥6॥

  जिनके यहाँ याचक लोग आकर कभी भी निराश होकर नहीं लौटे और न जिनका कोई मित्र था न शत्रु, उन सर्वसमर्थ सर्वश्रेष्ठ श्री स्वामी जी को नित्य प्रणाम है । 

मध्ये यतीनां परिवर्णनीयः 

सद्भिः समस्तैरपिवन्दनीयः 

योऽसौ परिव्राजकराजराजः

        तस्मै नमः स्वामिवराय नित्यम् ॥7॥

  जो सम्पूर्ण सन्यासियों के मध्य में वर्णनीय थे तथा सम्पूर्ण सज्जनों से वन्दनीय थे और योगियों के योगिराज थे उन सर्वश्रेष्ठ श्री स्वामी जी को नित्य प्रणाम है ।। 

यद्दर्शनं   श्रेष्ठकरं   नराणां

    यद् ब्रह्मचर्यंभुविनास्त्यनेकम् । 

यस्मिन्कामादि गणोपवेशः 

           तस्मै नमः स्वामिवराय नित्यम् ॥8॥

   जिनका दर्शन मनुष्यों में सर्वश्रेष्ठ बनानेवाला था, और जिनमें किसी प्रकार का कामादि (काम,क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य) का प्रवेश भी नहीं हुआ था । उन सर्वश्रेष्ठ श्री स्वामी जी को नित्य प्रणाम है । 

स्वामिन्त्वदीयौ चरणाब्जकेशरौ

      सुशोभितौ रक्त नखावलीकुलैः । 

मुहुर्मुहुर्योगिकराभिलालितौ

        पुनः-पुनः काञ्छति मन्मधुव्रतः ॥9॥

   हे स्वामिन् आपके चरणारविन्द के केशर को जो कि आपके लाल-लाल नख समूहों से सुशोभित थे और योगियों के करों से पुनः-पुनः पूजित थे उन्हें भ्रमररुपी मैं आपका अनन्य सेवक सदैव चाहता हूँ ।

विजेजीयतां पाठशाला दिगन्ते 

  अधीतां सुखैश्छात्रमालाचिरन्ते । 

चिरन्टीवकीर्तिं सदानूतनाते

            हसन्ती रमन्ती विरामं न यायात् ॥10 ॥

  आपका विद्यालय सर्वत्र विजयी रहे तथा छात्रवृन्द सुख से सदैव अध्ययन करते रहें और युवती की तरह आपकी नित्य नूतन कीर्ति हँसती हुयी सर्वत्र रमण करे, कभी भी विश्राम न करे ।

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