न्यायप्रिय राजा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  एक दिन महाराजा रणजीत सिंह भ्रमण पर थे। सड़क के किनारे कुछ बच्चे एक बेरी के वृक्ष को पत्थर मारकर बेर गिरा रहे थे। एक बच्चे ने पत्थर जो मारा तो वह बेरी को नहीं, सीधे महाराज के माथे पर लगा। खून बहने लगा।

 सब ओर शोर मच गया, "पकड़ो! पकड़ो! कौन है वह शैतान जिसने महाराज को घायल कर दिया?"

सिपाही आगे बढ़े, बच्चाu पकड़ा गया। महाराज ने देखा, बोले- इसे दरबार में पेश करो।

  बच्चे के माता-पिता ने तो सिर पीट लिया। नगर में हाहाकार मच गया कि इस बच्चे ने महाराज को घायल कर दिया, अब इसे कौन बचा सकता है ?

 इसे दरबार में बुलाया गया है, शायद सूली पर चढ़ा दिया जाएगा। सभी ऐसे मातम मनाने लगे जैसे बच्चा अभी ही मर गया हो।

 दरबार लगा। उस बच्चे को महाराज के सामने खड़ा किया गया। माता-पिता, परिवारवाले भी रोते हुए, उस बच्चे के पीछे खड़े थे।

महाराज ने बच्चे से पूछा- क्यों बच्चे ! तूने ही मुझे पत्थर मारा था ?

 बच्चे ने कहा- महाराज! मैंने पत्थर जरूर मारा था, पर आपको नहीं, बेरी को मारा था। संयोग से वह आपको आ लगा।

महाराज ने पूछा- तूने बेरी को पत्थर क्यों मारा था ?

 बच्चे ने कहा- ताकि चार-पाँच बेर नीचे आ गिरें और मैं उन्हें खाऊँ।

महाराज विचार कर बोले- तहसीलदार को बुलाओ।

 सब लोग भयभीत थे कि पता नहीं महाराज क्या आज्ञा देंगे? शायद अभी इस बच्चे का सिर काट दिया जाए।

 तहसीलदार आया तो महाराज ने कहा- लाहौर के पूर्व में हमारे जो गाँव हैं, उन में से पाँच गाँव इस बच्चे के नाम लिख दो। आज से यही उनका मालिक होगा। उनकी आय इसे मिलेगी।

लोगों ने यह आज्ञा सुनी तो चकित रह गए। मन्त्रियों ने एक दूसरे से कहा- यह क्या आदेश हुआ? इस लड़के ने महाराज को पत्थर मारा, फिर भी इसे पाँच गाँव की जागीर ?

 महाराज ने कहा- सुनो! यही सही निर्णय है। यदि वह पत्थर बेरी के पेड़ को लग जाता तो बदले में इस बच्चे को चार-पाँच बेर देता।

 मतलब यह कि बेरी का वृक्ष पत्थर खाता है तो बेर देता है। पर इसका पत्थर बेरी को नहीं, मुझे आ लगा। मेरे पास बेर नहीं हैं, पर गाँव तो हैं। इसीलिए इसको पाँच गाँव मिल गए। क्या मैं बेरी के पेड़ जैसा भी नहीं हूँ ?

 जिस देश के रजोगुणी राजा लोग भी पद का गर्व न करते हुए, करुणा और न्यायप्रियता से भरा आचरण करते थे, उस देश के सत्वगुणी संतों की रहनी का तो कहना ही क्या? उन्हें तो स्वप्न में भी ज्ञानाभिमान होना संभव नहीं।

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