बाबा विट्टल दास किशोरी जी ठाकुर जी के अनन्य भक्त थे बाबा हर वक्त उनकी निकुंज लीलाओं का ही स्मरण किया करते थे
किसी भी सांसारिक व्यक्ति से ज्यादा देर बात नहीं किया करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि किसी भी सांसारिक व्यक्ति से ज्यादा देर तक बोलना ठाकुर जी से ध्यान हटाने के बराबर है।
इसलिए हमेशा आंख मूंदे श्री राधा कृष्ण की युगल छवि का ध्यान करते थे।
बाबा श्री कृष्ण भगवान को पुत्र भाव से मानते थे और हमेशा उन्हें मेरा लाला और किशोरी जी को मेरी लाडली कहकर पुकारते थे।
एक दिन बाबा विट्टलदास जी अपने घर के बाहर बैठे किशोरी जी का ध्यान कर रहे थे।
तभी एक चूड़ी बेचने वाली आती है बाबा उसे बुलाते है और कहते है,"कि जा अन्दर जाकर मेरी बहूओं को चूड़ी पहना कर आ और जो पैसे हो वो मुझसे आकर ले लेना।"
तब चूड़ी बेचने वाली अंदर चली गयी और थोड़ी देर बाद बाहर आई और बोली,"बाबा 8 रुपये हुए?"
बाबा ने पूछा,"8 रुपये कैसे हुए?"
चूड़ी बेचने वाली ने कहा,"बाबा तुम्हारी 8 बहुएं थी और हर एक को मैंने 1 रुपये की चूड़ी पहनाई।"
लेकिन बाबा बोले,"मेरे तो 7 बेटे हैं और उनकी 7 बहुएं है फिर ये 8 बहुएं कैसे?" चूड़ी बेचने वाली ने कहा,"बाबा मैं तुझसे झूठ क्यों बोलूंगी?"
अब बाबा का ज्यादा बहस करने का मन नहीं था उन्हें लगा की अब इससे बहस करूंगा तो ठाकुर के ध्यान में विघ्न पड़ेगा
इसलिए उन्होंने उस मनिहारिन को 8 रुपये ही देकर विदा कर दिया और अपने युगल सरकार का ध्यान करने लगे।
लेकिन उन्हें मन ही मन इस बात का दु:ख था की चूड़ी बेचने वाली ने झूठ बोलकर उनसे ज्यादा पैसे ले लिए थे
क्योंकि पूरे गांव में बाबा जी से कोई भी झूठ न बोलता था। वो इसी बात की चिंता में थे कि मुझसे उस चूड़ी बेचने वाली ने झूठ क्यों कहा?
रात्रि में बाबा को सोते हुए स्वप्न में किशोरी जी आती है और कहती है,
"बाबा ! ओ बाबा !"
बाबा मंत्रमुग्ध हो कर किशोरी जी को प्रणाम करते है।
तब किशोरी जी कहती है कि, " बाबा तू ठाकुर जी को अपना पुत्र मानते हो ?" बाबा बोले,"ठाकुर जी तो मेरे बेटे है मेरा लाला है वो तो।" तब किशोरी जी कहती है,"यदि ठाकुर जी तुम्हारे बेटे है तो मैं भी तो तुम्हारी बहु हुई न? "
बाबा बोले,"हां हां बिलकुल बिलकुल मेरी लाली।"
फिर किशोरी जी कहती है, "फिर तुम दुखी क्यों होते हो जब चूड़ी बेचने वाली ने मुझे भी चूडियां पहना दी तो?"
तभी बाबा फूट-फूट कर रोने लग जाते है और कहते है कि,
"हाय कितना अभागा हूं मैं मेरी किशोरी जी ने खुद मेरे घर आकर चूडियां पहनी और मैं पहचान भी न पाया?"
तभी किशोरी जी अंतर्धान हो जाती है और बाबा कि नींद खुल जाती है और
फिर अगले दिन वो चूड़ी बेचने वाली उनके घर पर फिर से आती है और बाबा कहते है कि, "आगे से 8 जोड़ी चूडियां लेकर आना और मेरी सबसे छोटी बहु के लिए नीले रंग कि चूडियां लाना।"
धन्य है ऐसे भक्त जो किशोरी जी से, ठाकुर जी से अपना सम्बन्ध स्थापित करते है और उसे पूरी तरह से निभाते है।
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