झूला झूल रही अम्बे भवानी, आज रस बरस रहा ।
और झूम रही महफ़िल सारी, आज रस बरस रहा ।।
(१)
स्वर्ण मुकुट सिर चमचम चमके
लाल चुनरिया दमदम दमके।
लगे छम छम पायल धुन प्यारी,..................।।
(२)
मां के भक्तों ने मां को सजाया
सोलह श्रृंगार कर झूला झुलाया।
छवि देख देख जाऊं बलिहारी,
मैय्या पूरी करेंगी इच्छा सारी ...................।।
रचनाकार — आचार्य सूरज कृष्ण शास्त्री
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