शस्त्र और शास्त्र

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 शस्त्र और शास्त्र का ज्ञान होना संसार में अत्यंत आवश्यक है ! एकमात्र शस्त्र या एकमात्र शास्त्र के ज्ञान से काम नहीँ चलेगा।

 शास्त्र के द्वारा ही शस्त्र का निर्माण होता है ! निराकार शास्त्र जब साकार रूप में आता है तब वह शस्त्र बन जाता है । बिना शस्त्र के किसी भी जीव की परिकल्पना व्यर्थ है , हो ही नहीं सकती । इसीलिए हर जीव को प्रकृति ने स्वयं अपना एक शस्त्र या अस्त्र प्रदान किया है । शस्त्र और अस्त्र जीवन को जीवंत रखने के लिए एक बहुत ही आवश्यक अवयव है ।

 एक छोटे से बच्चे को भी ईश्वर ने Immunity देकर भेजा , फिर धीरे धीरे उसको अपनी भुजा का उपयोग करना आ जाता है , नाख़ून , बाल , आँखों की ऊपर के बाल से लेकर समस्त अंगों को प्रकृति ने अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित किया हुआ है ।

  धूप में निकलते ही आप की त्वचा तुरंत melanin बनाने लगती है ताकि सूर्य की हानिकारक किरणों से रक्षा हो सके । आपके पसीने तक में बाहरी कीटाणु को मारने वाले तत्व होते हैं जो आपके शरीर की रक्षा करते हैं ।

  साँप को विष के रूप में , हिंसक जीवों को नुकीले दांत और नाख़ून देकर , सींगवाले पशुओं को सींग देकर प्रकृति ने उसे अस्त्र शस्त्र से पूर्ण रखा है।

 इस संसार में उत्पन्न होने वाले सभी जीव ( Virus से लेकर हाथी ) तक सबको प्रकृति ने अस्त्र शस्त्र दिया हुआ है इसीलिए अस्त्र शस्त्र को गलत परिभाषित करना अपनी बुद्धि के निम्न स्तर का द्योतक है ।

  शास्त्र के द्वारा शस्त्र का निर्माण होता है और इसी शस्त्र के द्वारा शास्त्र की रक्षा की जाती है  जो शास्त्र शस्त्र नहीं बना सकते , चाहे वह स्थूल हो या सूक्ष्म हो , वह शास्त्र एकमात्र त्यागने योग्य ही है ।

 शास्त्र और शस्त्र दोनों साथ लेकर ही इस संसार की यात्रा पूरी की जा सकती है । जो आपको शस्त्र त्यागने को कहता है , त्वरित रूप में उस शास्त्र और उस व्यक्ति का परित्याग कर दीजिये क्योंकि वह आपके जीवन को घोर संकट में डालने का कुत्सित प्रयास कर रहा है ।

  शस्त्र के बिना कोई जीवन नहीं है । शस्त्र के बिना शास्त्र नहीं और शास्त्र के बिना शस्त्र नहीं । इसीलिए हमारे सनातन धर्म के प्रतीकों में एक हाथ में शास्त्र धारण करवाया गया है तो तुरंत दूसरे हाथ में शस्त्र धारण करवाया गया है , एक हाथ अभय मुद्रा में हैं तो दूसरा हाथ त्रिशूल धारण किये हुए है ।

 क्योंकि बिना शस्त्र के आप अपनी रक्षा नहीं कर सकते , दूसरों की तो बात ही छोड़ दें । भारतीयों की दुर्दशा का प्रमुख कारण यही रहा कि वह शास्त्र के साथ सत्रह शस्त्र भी भूल गये या उनका brainwash करके उनके हाथ से शस्त्र भी छीन लिया गया और शास्त्र भी ।

  आज भी कई देशों में शस्त्र सञ्चालन या शस्त्र रखना अनिवार्य है ! कई देशों में तो सैनिक शिक्षा तक अनिवार्य है जिसके बिना आप को सरकारी नौकरी तक भी नहीं मिल सकती । अब आप बतायें उस राष्ट्र का सूर्य अस्त होगा या ऐसे राष्ट्र का सूर्य अस्त होगा जहाँ सभी लोगों को शस्त्र विहीन कर दिया गया ? वहाँ सभी सैनिक होते हैं , और यहाँ हम एक बाढ़ आ जाए , या एक नाला भी पार करना होता है तो हम army को बुलाते हैं ।

 स्त्रियों को तो क्या कहूँ , उनके तो सभी हाथ काट डाले गये हैं । उनको अबला अबला बोलकर तबला बना दिया गया है । और उनकी मानसिकता भी ऐसी हो गयी है कि एक गड्ढे को भी पार करने के लिए उह Ouch करती हैं और सामने वाले की तरफ कातर दृष्टि से देखती हैं । एक कॉकरोच या छिपकली भी अगर सामने आ जाये तो heart fail होने का डर रहता है ।

 यही एक समय था जब स्वयं कैकयी युद्ध क्षेत्र में स्वयं अपने पति दशरथ की रक्षा करती थी । दुर्गा रूप धारण कर स्वयं एक स्त्री शक्ति ने सभी असुरों का मर्दन किया और सभी देवताओं की रक्षा की । पिनाक जैसे धनुष को स्वयं सीता उठाकर रख देती थी ।

  सावित्री जैसी वीर नारी जिसको जिसके पिता ने स्वयं एक रथ बनवा कर दिया कि अकेली इस रथ पर पूरे भारतवर्ष का भ्रमण करो और जो भी उचित वर हो , उसे वरण करो ।

 भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा स्वयं एक बहुत बड़ी योद्धा थी और कई युद्धों में श्रीकृष्ण के साथ उन्होंने भाग लिया ।

 यजुर्वेद १७.४५ के इस श्लोक में उल्लेख मिलता है कि स्त्रियों की भी सेना होती है । स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें । अरे बिना दन्त हीन बड़े से बड़े साँप को छोटे छोटे बच्चे भी मार डालते हैं । मेरा इस देश के सभी नागरिकों से अनुरोध है कि हमेशा शस्त्र से सुसज्जित रहें क्योंकि यहाँ पोलिस या प्रशासन तभी आपके लिए मदद को आएगा जब आप यमपुरी पहुँच चुके होते हैं ।

 हमारी संस्कृति में शास्त्र और शस्त्र दोनों को साथ लेकर चलने का आदेश है । धनुर्वेद, धनुष-चन्द्रोदय और धनुष-प्रदीप-तीन प्राचीन ग्रन्थ याद है, इनमें से दो की प्रत्येक की श्लोक-संख्या 60000 है । इसमें 'परमाणु' से शक्ति निर्माण का भी वर्णन है ।

 इससे पता चलता है कि प्राचीन काल में 'परमाणु' (ऐटम) से शस्त्रादि-निर्माण की क्रिया भी भारतीयों को ज्ञात थी ।शास्त्र बिना शस्त्र के बेकार है और शस्त्र बिना शास्त्र के बेकार है । बुद्धिमान और ज्ञानीजन शास्त्र को ही शस्त्र की तरह प्रयोग करते हैं पर प्रयोग दोनों का होता है शस्त्र का भी और शास्त्र का भी ।

  यहीं बस सबसे बड़ी ग़लती हुई हिंदुओं से कि इनको मैकाले की शिक्षा दी गयी और इनके अपने ही शास्त्रों को इनसे ही गाली दिलवाई गयी , मनुवाद , ब्राह्मणवाद जैसी terminology विकसित की गई , इनको अपने ही शास्त्रों के खिलाफ मन में ज़हर बोया गया और शर्मिंदगी महसूस कराई गई , जिससे यह शास्त्र और शस्त्र विहीन होकर विनाश के मुहाने पर खड़े हो गए ।  जिस दिन शस्त्र और शास्त्र दोनों लेकर चलेंगे उसी दिन हम पुनः विश्व गुरु के पद पर आसीन हो जाएंगे ।

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