क्या से क्या हो गया ?

Sooraj Krishna Shastri
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  एक राजा ने क्रोध में आकर बीस वर्ष पहले अपने पंद्रह वर्षीय इकलौते पुत्र को उसके बुरे आचरण के कारण देश निकाला दे दिया था।

 जब राजा बूढ़ा हो गया तो उसे अपने पुत्र की याद आई। जैसा भी था था तो अपना खून ही ।

अब इस राज्य को कौन संभालेगा ?

उसने अपने मंत्रियों को उस पुत्र को खोजने चारों ओर भेजा।

किंकर्तव्यविमूढ़ हुआ वह राजपुत्र और कुछ न जानने के कारण पड़ोसी राज्य में भीख माँगा करता था। बीस वर्षों से भीख माँगने के कारण वह अपना राजकुमार होना ही भूल गया था।

फटे मैले कपड़े थे दाढ़ी बढ़ी थी गाल पिचके थे। आँखें धंसी थी बाल उलझे थे कमर झुकी हुई थी 

 एड़ियाँ फटी हुई थीं नस नस उभरी हुई थी। फूटा कटोरा हाथ में लेकर असहाय सा घबराया हुआ। वह एक चौराहे पर हर आने जाने वाले की ओर आशा भरी दृष्टि से देखता था। पर उसकी ओर कोई नहीं देखता था।

  देवयोग से एक मंत्री का रथ उसी चौराहे से गुज़रा। मंत्री और राजपुत्र की नजरें मिली तो एक बिजली सी कौंध गई। मंत्री ने उसे अपने पास बुलाया। वह डरा डरा सा मंत्री के पास पहुँचा। मंत्री के आदेश से सैनिकों ने उसकी कलाई पकड़ी और एक कपड़े से मैल साफ किया।

  वहाँ राज चिन्ह चमकने लगा। तुरंत सारा दृश्य बदल गया। सैनिक घबरा कर चरणों में गिर गये। मंत्री भी तुरंत रथ से उतरा और बोला -

राजकुमार की जय हो। देखो क्या चमत्कार हुआ । कमर तन गई छाती फूल गई आँखें चमकने लगीं।

  चेहरा दमकने लगा नस नस फड़कने लगी और तन बदन में करेंट दौड़ गया।

अब सब आने जाने वाले उसकी ओर देखते हैं।

पर वह किसी को नहीं देखता है।

कटोरा यहाँ गया कि वहाँ अब कौन जाने???

छलाँग मार कर रथ पर चढ़ गया और कड़क कर बोला :--

हमारे स्नान की व्यवस्था हो।

क्या से क्या हो गया ?

आपको अपनी खुद की याद आ गई।

हम भी अनन्त जन्मों से भिखारी बन कर

दूसरों से छोटे छोटे सुख माँगते हुए।

यह भूल ही गए हैं कि हम तो आनन्द के साम्राज्य के उत्तराधिकारी हैं।

आनन्द तो हमारी बपौती है।

हमें भी अपने सत्य स्वरूप की याद आ जाए तो हमारा भी भीख का कटोरा छूट जाये।

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