मम्मी जी के चेहरे की चमक और किचन से आती पकवानों की महक दोनों की वजह एक ही है। आज लंच में उनकी एक फ्रेंड आने वाली हैं, कल ही बता दिया था उन्होंने।
कल ही मेरे साथ अपनी फ्रेंड को गिफ्ट में देने के लिए महंगी सी साड़ी भी ले आईं। आज मुझसे भी पहले किचन में घुस गई और बड़े जतन से खुद से तैयार की गई पकवानों की लिस्ट में से एक के बाद एक डिश बनानी भी शुरू कर दी।
खूब खुश नजर आ रही हैं पर मैं...... बेमन, बनावटी मुस्कान चेहरे पर सजाए काम में उनका हाथ बटा रही हूँ।
मायके में मेरी माँ का आज जन्मदिन है। शादी के बाद यह माँ का पहला जन्मदिन होगा जब कोई भी उनके साथ नहीं होगा। अब मैं यहाँ, पापा ऑफिस टूर पर और भाई तो है ही परदेस में।
मायके जाने के लिए कल मम्मी जी से बोलने ही वाली थी कि उन्होंने मेरे बोलने से पहले ही अपनी फ्रेंड के आने वाली बात सामने रख दी। दोपहर में लंच और शाम को हम सभी का उनके साथ फन सिटी जाने का प्रोग्राम तय हो चुका था।
क्या कहती मन मार कर रह गई। घर को सजाया और खुद को भी बेमन सी सँवर गई। कुछ ही देर में डोर बेल बजी उनका स्वागत करने के लिए मम्मी जी ने मुझे ही आगे कर दिया।
गेट खोला, बड़े से घने गुलदस्ते के पीछे छिपा चेहरा जब नजर आया तो मेरी आंखें फटी की फटी और मुँह खुला का खुला रह गया। सामने मेरी माँ खड़ीं थीं। माँ मुझे गुलदस्ता पकड़ाते हुए बोली, "सरप्राइज"
हैरान खड़ी मैं, अपनी माँ को निहार रही थी। "बर्थडे विश नहीं करोगी हमारी फ्रेंड को?" पीछे खड़ी मम्मी जी बोली।
"माँ.........आपकी फ्रेंड?"
"अरे भाई झूठ थोड़ी ना कहा था हमने और फिर किसने कहा कि समधिन-समधिन दोस्त नहीं हो सकती।"
"बिल्कुल हो सकती है जो अपनी बहू को बेटी जैसा लाड़ दुलार करें सिर्फ वही समधिन को दोस्त बना सकती है।" कहते हुए माँ ने आगे बढ़कर मम्मी जी को गले लगा लिया।
मेरे मुँह से एक शब्द भी ना निकल पाया बस मैंने मम्मी जी की हथेलियों को अपनी आंखों से स्पर्श करके होठों से चूम लिया। माँ हम दोनों को देखकर भीगी पलकों के साथ मुस्कुरा पड़ीं।
एक तरफ मेरी माँ खड़ी थी जिन्होंने मुझे रिश्तों की अहमियत बताई और दूसरी तरफ मम्मी जी जिनसे मैंने सीखा रिश्तों को दिल से निभाना। दोनों मुझे देखकर जहाँ मुस्कुरा रही थी वही मैं दोनों के बीच खड़ी अपनी किस्मत पर इतरा रही थी।
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