वाराणसी की मसान होली कब और कैसे शुरू हुई, भगवान शिव से है क्या संबंध ? भगवान शिव और पार्वती के विवाह में शामिल हुए थे विशेष अतिथि विवाह के बाद ।
यह रहा वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर मसान होली का एक चित्रण। यह अद्भुत दृश्य भगवान शिव की भक्ति और मृत्यु को उत्सव के रूप में दर्शाता है। |
वाराणसी की मसान होली कब और कैसे शुरू हुई, भगवान शिव से है क्या संबंध ?
जिस तरह ब्रज की होली पूरे देश में प्रसिद्ध है, उसी तरह काशी में मसान की होली का भी बहुत महत्व है। काशी में फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के अगले दिन हर वर्ष मसान होली मनाई जाती है। मसान होली को दो दिनों का उत्सव माना जाता है। मसान होली चिता की राख और गुलाल से खेली जाती है।
काशी में मसान होली कहाँ मनाई जाती है
काशी के मणिकर्णिका घाट पर साधु-संत जमाकर होकर शिव भजन गाते हैं और नाचते-गाते एक-दूसरे को मसान की राख लगाकर इसे हवा में उड़ाकर जीवन और मृत्यु का उत्सव मनाते हैं। इस दौरान पूरी काशी शिवमय हो जाती है और चारों तरफ हर-हर महादेव का नाम ही सुनाई देता है। पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव ने अपने विवाह के बाद सबसे पहले मसान होली खेली थी। यहीं से इसकी शुरुआत हुई थी। आइए, जानते हैं मसान होली से जुड़ी पौराणिक कहानी।
भगवान शिव और पार्वती के विवाह में शामिल हुए थे विशेष अतिथि
भगवान शिव को वैरागी माना जाता है लेकिन देवी पार्वती की घोर तपस्या, आस्था और समर्पण भाव को देखकर भगवान शिव ने देवी पार्वती का विवाह निमंत्रण स्वीकार कर लिया। भगवान शिव ने अपने विवाह में भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेतों को भी आमंत्रित किया था।
भगवान शिव भोलेनाथ और आश्रयदाता हैं
भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि शिव अपने भक्तों में कभी भी भेदभाव नहीं करते। अगर कोई उन्हें पूरी श्रद्धा और प्रेम के साथ याद करता है, तो भगवान शिव उसे आश्रय जरूर देते हैं। इस कारण से स्नेहवश भगवान शिव ने अपने विवाह में सभी देव, असुर, भूत-प्रेतों आदि जीवों को शामिल किया था।
शिव-पार्वती विवाह में विशेष अतिथि
इन सभी लोगों को शिव-पार्वती विवाह में विशेष अतिथि गण माना जाता है। वहीं, शिव के विकराल रूप को देखकर सभी लोग बहुत डर गए थे, लेकिन जब पार्वती जी ने शिव से प्रार्थना की, कि वो अपने सुकुमार के रूप में आकर इस विवाह को सम्पन्न होने दें, तो शिव ने एक सुंदर राजकुमार का रूप ले लिया। इसके बाद भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।
विवाह के बाद भगवान शिव और पार्वती काशी घूमने आए थे
विवाह के बाद भगवान शिव और पार्वती पहली बार काशी घूमने के लिए आए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन रंगभरी एकादशी थी। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को गुलाल लगाकर होली मनाई थी। शिव और पार्वती की इस होली को देखकर शिवगण दूर से देखकर आनंदित हो रहे थे। रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव और देवी पार्वती ने होली खेली थी।
भूत-प्रेत, यक्ष, पिशाच और अघोरी साधुओं का आग्रह
इसके अगले दिन बाद भोलेनाथ के भक्तों जिनमें भूत-प्रेत, यक्ष, पिशाच और अघोरी साधु शामिल थे, उन्होंने आग्रह किया कि भगवान शिव उनके साथ भी होली खेलें। भगवान शिव जानते थे कि शिव के ये विशेष भक्त जीवन के रंगों से दूर रहते हैं, इसलिए उनका ध्यान रखते हुए भगवान शिव ने मसान में पड़ी राख को हवा में उड़ा दिया। इसके बाद सभी विशेष शिवगण मिलकर भगवान शिव को मसान की राख लगाकर होली खेलने लगे। पार्वती माता दूर खड़ी होकर शिव और उनके भक्तों को देखकर मुस्कुरा रहीं थीं। तब से माना जाता है काशी में मसान की राख से होली खेलने के परम्परा शुरू हुई थी।
मसान होली का महत्व क्या है ?
माना जाता है कि मसान की होली मृत्यु का उत्सव मनाने जैसा है। मसान होली इस बात का प्रतीक है कि जब व्यक्ति अपने भय को काबू में करके मृत्यु के भय को पीछे छोड़ देता है तो वो जीवन का ऐसे ही आनंद मनाता है। वहीं, चिता की राख को अंतिम सत्य माना जाता है। इससे सीख मिलती है कि व्यक्ति चाहे कितना भी अंहकार, लोभ जैसे विकारों से घिरा रहे, लेकिन अंत में उसकी जीवन यात्रा मसान में ही खत्म होनी होती है।
मसान होली की पौराणिक कथा
वहीं, एक और पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव ने यमराज को भी पराजित किया था, इसलिए मृत्यु पर विजय पाने के लिए मसान की होली का महत्व कहीं ज्यादा है।
वाराणसी की प्रसिद्ध मसान होली अपने अनोखे और अद्भुत स्वरूप के लिए जानी जाती है। यह होली अन्य स्थानों पर मनाए जाने वाली होली से बिल्कुल अलग है। इसका सीधा संबंध भगवान शिव, उनकी महाश्मशान के प्रति प्रेम, और वाराणसी की सांस्कृतिक धरोहर से है। आइए इसके बारे में विस्तार से समझते हैं:
मसान होली का आरंभ और महत्व:
मसान होली का आयोजन वाराणसी के प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट और हरिश्चंद्र घाट जैसे महाश्मशान स्थलों पर किया जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे शिव भक्तों और संत-समाज ने शुरू किया। इसका उद्देश्य जीवन और मृत्यु के बीच की रेखा को मिटाकर भगवान शिव के प्रति समर्पण और उनकी अघोरी परंपरा को उजागर करना है।
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कैसे शुरू हुई:
- माना जाता है कि भगवान शिव स्वयं मृत्यु के स्वामी (महाकाल) हैं और वे शवों के साथ नृत्य करने वाले अघोरियों के देवता हैं। उनके लिए जीवन और मृत्यु समान हैं।
- शिव के भक्तों ने मसान घाट पर होली खेलने की परंपरा इसलिए शुरू की ताकि यह दिखाया जा सके कि मृत्यु भी जीवन का एक उत्सव है।
- मसान होली का आरंभ शिवरात्रि और होली के त्योहारों के मिलन के रूप में हुआ, जो शिव के तांडव और सृष्टि चक्र को दर्शाता है।
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भगवान शिव से संबंध:
- शिव का एक नाम "श्मशानवासी" भी है, क्योंकि वे श्मशान में ध्यान लगाते हैं और यहीं पर उन्हें तांडव का आनंद आता है।
- मसान होली इस बात की प्रतीक है कि शिव के लिए मृत्यु एक उत्सव है, और श्मशान वह स्थान है जहां आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है।
- भगवान शिव के तांडव और शव साधना से प्रेरित होकर अघोरियों और नागा साधुओं ने इस होली को महाशिवरात्रि के बाद खेलना शुरू किया।
मसान होली का आयोजन:
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समय:
- मसान होली होली के त्योहार के आस-पास महाशिवरात्रि के बाद की जाती है।
- फाल्गुन महीने में इसका आयोजन होता है।
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कैसे मनाई जाती है:
- मसान घाट पर सबसे पहले शिव की पूजा और चिता भस्म का अभिषेक किया जाता है।
- शिवभक्त और संत चिता की राख (भस्म) को शरीर पर लगाकर नृत्य करते हैं।
- गंगा आरती और तांडव नृत्य के साथ यह उत्सव अपनी चरम पर होता है।
- गुलाल और फूलों के स्थान पर चिता भस्म का प्रयोग किया जाता है, जो शिव की अघोरी परंपरा का प्रतीक है।
- इस दौरान हर हर महादेव और जय शिव शंकर के जयकारों से पूरा वातावरण गूंजता है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
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जीवन-मृत्यु का संदेश:
- यह होली यह संदेश देती है कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि नई शुरुआत है।
- शिव के भक्त मानते हैं कि मृत्यु के बाद आत्मा शिव में विलीन हो जाती है।
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शिव की तांडव लीला:
- मसान होली शिव के नटराज स्वरूप और उनकी तांडव लीला का प्रतीक है, जो सृजन और विनाश का संतुलन बनाता है।
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वाराणसी की परंपरा:
- मसान होली वाराणसी की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक विविधता का अद्भुत उदाहरण है। यह दुनिया को बताती है कि शिव के नगर में मृत्यु भी उत्सव का हिस्सा है।
निष्कर्ष:
वाराणसी की मसान होली कब और कैसे शुरू हुई, भगवान शिव से है क्या संबंध ? मसान होली भगवान शिव के प्रति अनन्य भक्ति और वाराणसी की अनूठी परंपराओं का प्रतीक है। यह हमें जीवन और मृत्यु को समान दृष्टि से देखने की प्रेरणा देती है। शिवभक्तों के लिए यह होली केवल रंगों का उत्सव नहीं, बल्कि भक्ति और शिव की लीला का अनुभव है।
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