प्रश्न है कि राम का कुल इतिहास बावन वर्ष का ही तो है। राम ने ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य किया, वह इतिहास कहाँ गया ? सत्ताईस वर्ष के थे तब...
प्रश्न है कि राम का कुल इतिहास बावन वर्ष का ही तो है। राम ने ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य किया, वह इतिहास कहाँ गया ?
सत्ताईस वर्ष के थे तब उनका विवाह हुआ। घर लौटे तो उनका वनवास हो गया। चौदह वर्ष वे वन में रहे। सत्ताईस और चौदह मिलकर इकतालीस हुआ। लंका से लौटते ही सीता अयोध्या की जनता में चर्चा का विषय बन गयीं। राम ने उन्हें वन भेज दिया, जहाँ लव कुश का जन्म हुआ। लव कुश ग्यारह वर्ष के थे कि राम के अश्वमेध का घोड़ा पकड़ लिया। अश्वमेध राम का अन्तिम कृत्य था। इकतालीस और ग्यारह कुल बावन वर्ष ही तो हुए। जैसा आप लोग कहते हैं, राम ने ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य किया, वह इतिहास कहाँ गया ?
वाल्मीकीय ‘रामायण’ के अनुसार उनका इतिहास तो मात्र पचास बावन वर्ष का है। लोग कहते हैं कि राम ने लंका में बहुत से निशाचरों को मार डाला, तो क्या हो गया! हिटलर ने भी तो साठ लाख को मौत के घाट उतार दिया था। इतने से तो राम की कोई विशेषता समझ में नहीं आती।
हिटलर ने इतने लोगों को मारा तो उसका अस्तित्व भी नहीं रह गया; किन्तु राम की उपलब्धियों की एक लम्बी शृंखला है। रावण वध के पश्चात् राम ने कभी अस्त्र नहीं उठाया। आरम्भ में कहीं साधारण सी आवश्यकता भी पड़ी, तो कहीं लक्ष्मण को भेज दिया, कहीं भरत या शत्रुघ्न को। संसार चाहता है कि सामान्य जनजीवन को सम्पन्न बना दें लेकिन आज तक ऐसा कोई कर न सका।
आज समृद्ध देशों में आत्महत्याएँ अधिक हो रही हैं, वृद्धावस्था वहाँ अभिशाप बन गयी है। दम्पतियों ने बच्चे तो अनेक पैदा किये; किन्तु वृद्धावस्था में सहायता के लिये कोई नहीं। अस्पताल में बुजुर्ग की मौत होती है, वहाँ से फोन आता है कि तुम्हारे पिताजी अब नहीं रहे, तो बच्चे दो मिनट का मौन धारण कर लेते हैं। वहीं से सीखा हमने दो मिनट मौन! यह वहाँ की संस्कृति है।
दुःख अपनी जगह है। जीवन की अन्तिम साँसें गिन रहा है अस्पताल में, अपने स्वजनों से अलग थलग, आस पास अपना कोई नहीं! दुःख नहीं तो क्या है ?
भगवान् राम के राज्य में किसी प्रकार का दुःख नहीं था। संसार के लोग जो सुख देखना चाहते हैं वह सब राम के राज्य में था। लाखों वर्षां से जो आततायी समाज को दुःख दे रहा था, राम ने पहले तो उसका समूल अन्त किया, तत्पश्चात् रावण के जो अनुचर अनुयायी बच रहे थे, उनका हृदय परिवर्तन किया और संसार में शान्ति की एक ऐसी लहर पैदा कर दी कि
‘राम राज बैठें त्रैलोका। हरषित भये गये सब सोका।।’
केवल अयोध्या ही नहीं, तीनों लोकों में हर्ष छा गया, शोक सन्ताप सदा सदा के लिए मिट गये।
‘अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा।
सब सुन्दर सब बिरुज सरीरा।।’
स्वास्थ्य विभाग उत्तम! सबके शरीर रोगमुक्त !
‘बरनाश्रम निज निज धरम, निरत वेदपथ लोग।’
चारों वर्णों के लोग अपनी अवस्था के अनुसार आचरण में निरत अर्थात् अनासक्त भाव से तल्लीन!
‘वेदपथ’: शूद्र थे अवश्य लेकिन वेद के अनुसार चलते थे, ‘चलहिं सदा’: निरन्तर चलते थे, ‘पावहिं सुखहि’: सुख प्राप्त करते थे। ‘नहिं भय सोक न रोग।।’
सुख की परिभाषा क्या है? भय नहीं, शोक नहीं, रोग नहीं! प्रियजनों के वियोग में शोक होता है। राम के राज्य में वह भी नहीं। धन धान्य की समृद्धि कितनी थी?
‘नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना।
नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।’
राम के राज्य में कोई दरिद्र, दुःखी या दीन नहीं था।
शूद्र भी सभी प्रबुद्ध थे। लक्षणहीन कोई नहीं था।
‘सब गुनग्य पण्डित सब ज्ञानी।
सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।’
सभी गुणवान् थे। सब के सब पण्डित! शूद्र भी पण्डित! ब्राह्मण ही पढ़े पढ़ावे, शूद्रादि दूसरा कोई पढ़े तो नरक में जाये ऐसा नहीं था। ‘सब कृतग्य’: किसी ने छोटा सा उपकार किया तो प्रत्युपकार करने को तत्पर! कपट, दम्भ किसी में नहीं था।
‘ससि सम्पन्न सदा रह धरनी।
त्रेताँ भइ कृतजुग कै करनी।।’
राम के राज्य में सर्वत्र पृथ्वी लहलहाती रहती थी।
‘बयरु न कर काहू सन न कोई।
राम प्रताप विषमता खोई।।’
कोई किसी से बैर नहीं करता था। बैरभाव तो तब होता है जब किसी को दूसरे की अपेक्षा अधिक मिले। रामराज्य में बैर का कारण विषमता ही समाप्त थी।
‘बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहुँ कुबेर ते।’
एक एक बनिया मानो कुबेर ही बैठा था। वस्त्र बेचने वाला बजाज, सोना चाँदी, हीरा जवाहरात और रुपयों का लेन देन करनेवाले सर्राफ तथा अन्य अनेक वस्तुओं के व्यापारी मानो अनेक कुबेर बैठे हों। धन धान्य के देवता कुबेर से यहाँ आशय है कि जिनके यहाँ वस्तु का कभी अभाव न हो, अक्षुण्ण सम्पत्तिवान्। और वस्तु कैसे मिलती थी?
‘वस्तु बिनु गथ पाइए’
वस्तुएँ बिना मूल्य के मिलती थीं। किसी को कन्या के विवाह में आभूषणों की आवश्यकता होती तो सर्राफ कहते, ‘ले जाओ टोकरी दो टोकरी।’
जब दूकान हमारी है, हर वस्तु सदैव सुलभ है तो अकारण संग्रह कर घर का कोना क्यों खराब करें? जितनी आवश्यकता प्रतीत हुई, ले लिया शेष पुनः उन्हीं के संरक्षण में सौंप दिया। व्यापारी तो वस्तुओं के संरक्षक मात्र थे।
राम के राज्य में विषमता नहीं थी, समानता थी। शूद्र थे, वैश्य थे, चारों वर्ण थे; किन्तु खान पान, रहन सहन, शिक्षा ज्ञान में समानता, धन धान्य में समानता, कृषि कार्य में समानता, उद्योग व्यापार में समानता।
‘सकल परम गति के अधिकारी।’
राम के साथ सभी उनके धाम भी गये। लोक में समृद्ध जीवन लाभ और परमश्रेय की प्राप्ति, दोनों व्यवस्था राम के राज्य में सबके लिए एक जैसी थी।
सरयू में एक घाट था: राजघाट।
‘राजघाट सब विधि सुन्दर बर।
मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर।।’
राम के राज्य में…
‘राजघाट सब विधि सुन्दर बर।
मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर।।’
रामसमेत सभी एक ही घाट पर अवगाहन करते थे। यदि राजघाट में राजपरिवार सवर्ण ही स्नान करते तो विषमता हो जाती; किन्तु विषमता वहाँ थी ही नहीं। इस प्रकार अपने सुदीर्घ शासनकाल में भगवान् राम ने वह कर दिखाया जो उनके पूर्व किसी ने भी नहीं किया था। किसी ने भी वैसी व्यापक शान्ति, समृद्धि, लोक लाभ और सबको परमगति नहीं प्रदान की और न उनके पश्चात् भी किसी का वैसा इतिहास मिलता है। आजकल लोग इतिहास का अर्थ युद्ध और नरसंहार से लगाते हैं। जिस शान्ति के लिए लोग आज क्रान्ति करते हैं, युद्ध करते हैं, आन्दोलन करते हैं, वही शान्ति भगवान् राम ने अपने जीवन के इन ग्यारह हजार वर्षां में प्रदान कर दी, जो आज भी समग्र मानवता के लिए आदर्श बना हुआ है।