मरई के मर्म

Sooraj Krishna Shastri
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मरई के मर्म(the essence of thatch)
मरई के मर्म(the essence of thatch)


अपने गांव के रेलवे स्टेशन पर 9:00 बजे रात वाली पैसेंजर से उतर कर घर आ रहा था जैसे ही गांव मे प्रवेश किया वर्षा होने लगी, पास में मरई के द्वार पर खड़े चुन्नी लाल ने आवाज लगाई - काहे बुनी मे भिंजत हई बाबा? आई गरिब के मरई में ।

  मैं घुस गया मरई में , चुन्नी लाल भैय्या ने मेरे लिए एक बोरा बिछा दिया लेकिन जगह कि कमी थी एक ही मरई में किचन और बेडरूम सब था जिसमें "चुन्नी लाल" उनकी पत्नी सहित चार लड़के रहते हैं, एक तरफ चुन्नी लाल कि पत्नी चुल्हे पर रोटी बना रही थी, कभी कभी चुल्हे का धुआं गौजा जाता ,,,,,एक तरफ चारों लड़के एक साथ बैठकर भोजन कर रहे थे और दुआरी पर बोरा बिछाकर चुन्नी लाल ऐसे बैठे थे मानो कोई राजा अपने राज सिंहासन पर , दो जगह से मरई चु रहा था दोनों जगह पानी को पुरे मरई मे फैलने से रोकने के लिए प्लास्टिक की बाल्टी रखी हुई थी

मुझे लगा मेरे आने से इन लोगों को डिस्टर्ब होगा

जगह कहा है चुन्नी भैया हम जा रहे है? 

    रोटी बेलती हुई "चुन्नी लाल" बो भौजी मुस्कुरा कर बोली, आपको तो हम अपने अचरे मे लुकवा लेंगे - चुन्नी लाल भैय्या ठहठहा के हंसे फिर गंभीर होते हुए बोले, साधु से मजाक नहीं करते 

    चुन्नी लाल बो भौजी - साधु होंगे किसी और के लिए मेरे लिए देवर ही है ।

खैर छोड़िए, उ सब! यही तो गांव है। इतना सब होता है। अब आईए मुद्दे पर - बरखा छुटने का नामे नहीं ले रहा था ,मै भी आराम से बोरे पर बैठ गया, उधर "चुन्नी" बो भौजी मोटी मोटी रोटी बना रही थी और तवे से उतार कर सिधे अपने पुत्रो कि थरिया मे डाल देती, नमक, सरसों के तेल और भूनि हुई सुखी मिर्च के साथ बच्चे बड़े ही आनंद से साथ खा रहे थे,

   बच्चों को खिलाने के बाद मात्र एक रोटी बचीं, उसे उन्होंने अपने पति को परोसा ,

चुन्नी लाल वह रोटी खां गए, और दुसरी रोटी देने के लिए इशारा करने लगे , पर उनकी पत्नी ने गुंदी हुई आटा का गमला दिखा दिया, जिसमें कुछ नहीं था 

  चुन्नी लाल ने कहा आटा है तो गुंदो, उनकी पत्नी ने बताया कि अब आटा नही है 

   चुन्नी लाल भैय्या ने गुस्से में बोला - अरे अभागन! तो तुम क्या खाओगी? जब एक ही रोटी बची थी तो तुम खा लेती,, मैंने तो सांझ मे ही चबेनी खाया था, अभी नहीं खाता तो क्या मर जाता,,,,, इसलिए तुम गैस कि बिमारी से परेशान रहती हो,,,,,भुखे पेट सोएगी तो क्या होगा? कम से कम आधे आधे ही खां लेते 

   चुन्नी लाल बो भौजी इतना सब होने के बाद भी मुस्कुरा कर बोली,,,,,आप बेवजह गुस्सा जाते हैं रुदल के पापा,,,,, नमक और चायपत्ती है न? चाय बना के पी लुंगी,,,,,,, मैंने कहा रुदल को भेजिए मेरे साथ,,,,,,,,, मेरे घर रोज एक ब्यक्ती का भोजन ज्यादा बनाया जाता है,,,,, 

  अब बरखा छूट गई थी मैं "रुदल"को लेकर अपने घर आ रहा था, रुदल ने बोलना शुरू किया , जानते हैं बाबा? आप एक दिन दे दिजियेगा, पर हम लोगों के साथ हर दो चार दिन बाद ऐसा होता है। पर माई किसी से कुछ बताती नहीं , बाबू जी से भी नहीं, सब कष्ट अपने झेल लेती है 

  मैं मरई का मर्म जानकर भाव विभोर हो गया,,,,,,, अभाव में ही भाव हैं हो, प्रभाव तो स्वभाव बिगाड़ देता है ,,,,, एक बात बताएं आलीशान मकान भी नर्क है अगर रोज किसी न किसी बात को लेकर कलह होता हो तो और फुस की मरई भी स्वर्ग है अगर चुन्नी लाल और उनकी पत्नी कि तरह एक दूसरे के प्रति त्याग समर्पण हो तो , मैंने कभी चुन्नी लाल और उनकी पत्नी को आपस में झगड़ते नहीं देखा आर्थिक तंगी में भी वे लोग आनंद से जीते हैं।

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