अहं ब्रह्मास्मि

Sooraj Krishna Shastri
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I am Brahma
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  एक शेरनी गर्भवती थी. गर्भ पूरा हो चुका था। शिकारियों से भागने के लिए छलांग लगा रही थी कि छलांग के बीच में ही उसको बच्चा हो गया। शेरनी छलांग लगाकर एक टीले से दूसरे टीले पर तो पहुंच गई लेकिन बच्चा नीचे गिर गया।

भेड़ों ने उसे दूध पिलाया, पाला पोसा। शेर अब जवान हो गया। शेर का बच्चा था तो पर भेड़ों के साथ रहकर वह खुद को भेड़ मानकर ही जीने लगा।

एक दिन उसके झुंड पर एक शेर ने धावा बोला। उसको देखकर भेड़ें भांगने लगीं। शेर की नजर भेड़ों के बीच चलते शेर पर पड़ी। दोनों एक दूसरे को आश्चर्य से देखते रहे।

सारी भेंड़े भाग गईं शेर अकेला रह गया। दूसरे शेर ने इस शेर को पकड़ लिया। यह शेर होकर भी रोने लगा। गिड़गिड़ाया कहा मुझे छोड़ दो मुझे जाने दो। मेरे सब संगी साथी जा रहे हैं। मेरे परिवार से मुझे अलग न करो।

दूसरे शेर ने फटकारा- अरे मूर्ख! ये तेरे संगी साथी नहीं हैं। तेरा दिमाग फिर गया है। तू पागल हो गया है। परन्तु वह नहीं माना। वह तो स्वयं को भेंड मानकर भेड़चाल में चलता था।

बड़ा शेर उसे घसीटता नदी किनारे ले गया। दोनों ने नदी में झांका। बूढ़ा सिंह बोला- नदी के पानी में अपना चेहरा देख और पहचान। उसने देखा तो पाया कि जिससे जीवन की भीख मांग रहा है वह तो उसके ही जैसा है।

उसे बोध हुआ कि मैं भेड़ नहीं हूं। मैं तो शेर हूं। वो आत्मबल से भरकर भीषण गर्जना की

सिंहनाद था वह; ऐसी गर्जना उठी उसके भीतर से कि बूढ़ा सिंह भी कांप गया। अरे! इतने जोर से दहाड़ता है?

 युवा शेर बोला- मैं जन्म से कभी दहाड़ा ही नहीं बड़ी कृपा तुम्हारी जो मुझे जगा दिया।

इसी दहाड़ के साथ उसको "स्व" स्वरूप का ज्ञान गया जीवन बदल गया, यही बात हिन्दुओं के संबंध में भी है। 

जब एकता के साथ हमारे भीतर से भी ऐसी गर्जना फूटेगी- अहं ब्रह्मास्मि। मैं ब्रह्म हूँ। गूंज उठेंगे पहाड़; कांप जाएंगे मन के भीतर घर बनाए सारे विकार और महसूस होगा अपने भीतर आनंद ही आनंद है।

फिर क्षत्रिय भी मैं हूँ, ब्राहमण भी मैं हूँ।

जाट भी मैं हूँ, राजपुत और मराठा भी मैं हूँ।

हिला कर रख दे, जो दुष्टोँ की हस्ती,

तूफान ओर ज्वारभाटा भी मैँ हूँ।

बाल्मीकि भी मैं हूँ, विदुर नीति भी मैं हूँ।

दुष्ट सिकन्दर को हराने वाला पौरूष भी मैं हूँ।

सर्वश्रैष्ठ गुरू चाणक्य भी मैं हूँ, महवीर कर्ण भी मैं हूँ।

परशुराम भी मैं हूँ, मुरलीधर मनोहर श्याम भी मैं हूँ।

एक वचन की खातिर वनवासी बननेवाला 

मर्यादा पुरूषोतम श्रीराम भी मैं हूँ।

शिवाजी और प्रताप भी मैं हूँ।

धधकती है जो जुल्म देखकर 

'हिन्दुत्व'' नाम की 

आग भी मैं हूँ, हाँ मैं हिन्दू हूँ...

जात पात में ना बाटो मुझको।

मैं दुनिया का केन्द्र बिन्दु हूँ, हाँ! मैं हिन्दू हूँ।

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