महर्षि गौतम (न्याय दर्शन के प्रवर्तक)

Sooraj Krishna Shastri
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गौतम (न्याय दर्शन के प्रवर्तक) का परिचय

गौतम (जिसे गौतम ऋषि या अक्षपाद गौतम भी कहा जाता है) प्राचीन भारतीय दर्शन के न्याय दर्शन के प्रवर्तक माने जाते हैं। उनका दर्शन, जिसे "न्यायसूत्र" के रूप में संरक्षित किया गया है, तर्क (logic), युक्ति, और प्रमाण के महत्व पर आधारित है। गौतम ने बौद्धिक जिज्ञासा को तर्क और अनुभव से संतुष्ट करने के मार्ग सुझाए। उनका कार्य भारतीय दर्शन के छह प्रमुख दर्शनों (षड्दर्शन) में से एक है।


गौतम का जीवन

  • गौतम का जीवनकाल और स्थान स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है, परंतु वे वैदिक युग के उत्तरकालीन (लगभग 6वीं-4वीं सदी ईसा पूर्व) ऋषियों में से एक माने जाते हैं।
  • उन्हें "अक्षपाद" (अर्थात "आंखों वाले पांव") कहा जाता है। इस उपनाम से जुड़ी एक कथा यह है कि वे गहन चिंतन में लीन रहते थे और चलते समय भी जमीन नहीं देखते थे।
  • गौतम ने तर्क और न्याय के माध्यम से सत्य की खोज करने पर बल दिया।

न्याय दर्शन का परिचय

न्याय दर्शन भारतीय दर्शन की षड्दर्शन परंपरा में से एक है। यह मुख्य रूप से तर्कशास्त्र (logic) और प्रमाण (means of valid knowledge) पर आधारित है। गौतम ने न्यायसूत्र के माध्यम से न्याय दर्शन की नींव रखी, जो ज्ञान, सत्य, और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग बताता है।


न्यायसूत्र

गौतम द्वारा रचित "न्यायसूत्र" न्याय दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसमें 5 अध्याय और 528 सूत्र हैं, जो ज्ञान के साधनों, सत्य की प्रकृति, और तर्क के सिद्धांतों को समझाते हैं।

न्यायसूत्र के प्रमुख विषय:

  1. प्रमाण (Valid Knowledge):

    • सत्य को जानने के चार प्रमाण बताए गए हैं:
      1. प्रत्यक्ष (Perception): प्रत्यक्ष अनुभव।
      2. अनुमान (Inference): तर्क द्वारा निष्कर्ष।
      3. उपमान (Comparison): समानता के आधार पर निष्कर्ष।
      4. शब्द (Verbal Testimony): विश्वसनीय स्रोत से प्राप्त ज्ञान।
  2. प्रमेय (Objects of Knowledge):

    • आत्मा, शरीर, इंद्रियां, वस्तुएं, मन, और मुक्ति जैसे विषयों पर चर्चा।
  3. संदेह (Doubt):

    • किसी तथ्य या सत्य के बारे में अनिश्चितता।
  4. प्रयोजन (Purpose):

    • किसी ज्ञान या कार्य का उद्देश्य।
  5. सिद्धांत (Theories):

    • विभिन्न दर्शनों के सिद्धांतों की व्याख्या।
  6. तर्क (Logic):

    • तर्क का उपयोग सत्य की खोज में किया जाता है। इसमें सोपानिक तर्क और सिलोजिज्म जैसी पद्धतियों पर चर्चा की गई है।

न्याय दर्शन की विशेषताएँ

  1. तर्क और युक्ति का महत्व:

    • गौतम ने ज्ञान प्राप्ति और सत्य तक पहुँचने के लिए तर्क को अनिवार्य माना।
    • उन्होंने विश्वास और धर्म के साथ तर्क को जोड़ा, जिससे बौद्धिक दृष्टिकोण विकसित हुआ।
  2. मुक्ति का उद्देश्य:

    • न्याय दर्शन का अंतिम उद्देश्य मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति है।
    • मुक्ति के लिए सही ज्ञान और तर्कपूर्ण जीवन आवश्यक है।
  3. आत्मा और शरीर:

    • आत्मा को शाश्वत और अजर-अमर माना गया है। शरीर और इंद्रियां आत्मा के साधन मात्र हैं।
  4. ज्ञान की प्रक्रिया:

    • ज्ञान को सत्य और असत्य में विभाजित किया गया है। सत्य ज्ञान मुक्ति की ओर ले जाता है।

गौतम के न्याय दर्शन का प्रभाव

  1. भारतीय तर्कशास्त्र का विकास:

    • न्याय दर्शन ने भारतीय तर्कशास्त्र की नींव रखी और अन्य दर्शनों को तर्कपूर्ण बनाने में मदद की।
    • बौद्ध और जैन दर्शन पर भी इसका प्रभाव पड़ा।
  2. वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

    • गौतम के तर्कशास्त्र ने भारतीय समाज में वैज्ञानिक सोच और युक्ति को बढ़ावा दिया।
  3. न्याय का आधुनिक रूप:

    • न्याय दर्शन का आधार आज भी आधुनिक तर्क और न्यायशास्त्र में देखा जा सकता है।
  4. धर्म और दर्शन का समन्वय:

    • गौतम ने धर्म और दर्शन को तर्क के माध्यम से जोड़ा, जिससे धार्मिक और दार्शनिक विचार अधिक संगत और व्यावहारिक बने।

गौतम की शिक्षाओं का सार

  • सत्य और ज्ञान के लिए प्रमाणों का सहारा लें।
  • तर्क और अनुभव से प्राप्त ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है।
  • आत्मा शाश्वत है, और इसके ज्ञान से ही जीवन का उद्देश्य पूरा होता है।
  • भ्रम, मिथ्या ज्ञान, और असत्य को दूर कर सत्य का अनुसरण करें।

गौतम की विरासत

  • गौतम ने भारतीय दर्शन को तर्क और युक्ति का आधार देकर इसे बौद्धिक रूप से सशक्त बनाया।
  • न्यायसूत्र आज भी भारतीय दर्शन और न्यायशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
  • उनका न्याय दर्शन भारतीय संस्कृति, धर्म, और शिक्षा में वैज्ञानिक सोच और तर्क का प्रतीक है।

गौतम का योगदान भारतीय तात्त्विक परंपरा में अतुलनीय है। उनके न्याय दर्शन ने सत्य, तर्क, और धर्म के गहन विश्लेषण को प्रेरित किया और भारतीय बौद्धिक परंपरा को समृद्ध किया।

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