महर्षि याज्ञवल्क्य

Sooraj Krishna Shastri
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याज्ञवल्क्य का परिचय

याज्ञवल्क्य प्राचीन भारतीय दर्शन, वेद, और धर्मशास्त्र के महान ऋषि थे। वे शतपथ ब्राह्मण के रचयिता और बृहदारण्यक उपनिषद में अद्वैत वेदांत के प्रवर्तकों में से एक के रूप में प्रसिद्ध हैं। याज्ञवल्क्य अपनी तीव्र बुद्धि, आध्यात्मिक ज्ञान, और दार्शनिक संवादों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने भारतीय धर्म, समाज, और दर्शन को गहराई से प्रभावित किया है।


जीवन परिचय

  • याज्ञवल्क्य का जन्म वैदिक काल में हुआ था। वे मिथिला (आधुनिक बिहार) के निवासी थे।
  • उनके गुरु का नाम वैशंपायन था।
  • वैदिक ग्रंथों के अनुसार, याज्ञवल्क्य ने अपने गुरु की आज्ञा का पालन न करने के कारण उनसे अलग होकर अपना स्वयं का दर्शन और ज्ञान प्राप्त किया।

गुरु से अलगाव की कथा

  • याज्ञवल्क्य और उनके गुरु वैशंपायन के बीच एक विवाद हुआ। क्रोधित होकर गुरु ने उन्हें अपने सिखाए हुए सभी वेदों को वापस करने को कहा।
  • याज्ञवल्क्य ने अपनी स्मरण शक्ति और तपोबल से वेदों को पुनः ग्रहण किया।
  • उन्होंने वेदों को पुनः व्यवस्थित किया और अद्वितीय दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।

प्रमुख योगदान

1. शतपथ ब्राह्मण

  • याज्ञवल्क्य को शुक्ल यजुर्वेद और उसके भाग शतपथ ब्राह्मण के रचयिता के रूप में जाना जाता है।
  • यह ग्रंथ यज्ञों, धार्मिक अनुष्ठानों, और वेदों की व्याख्या पर केंद्रित है।
  • इसमें गहरे दार्शनिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण मिलते हैं।

2. बृहदारण्यक उपनिषद

  • याज्ञवल्क्य ने बृहदारण्यक उपनिषद में अद्वैत वेदांत की नींव रखी। यह उपनिषद सबसे प्राचीन और गहन उपनिषदों में से एक है।
  • याज्ञवल्क्य के संवाद, विशेषकर मैतरेयी और गार्गी के साथ, वेदांत दर्शन की आधारशिला माने जाते हैं।
  • उन्होंने आत्मा और ब्रह्म (परम सत्य) के बीच संबंध को स्पष्ट किया और कहा:
    • "नेति नेति" (यह नहीं, यह नहीं) – ब्रह्म को किसी भी विशेषता के माध्यम से वर्णित नहीं किया जा सकता।
    • आत्मा को "अमृत" और "नित्य" (अजर-अमर) बताया।

3. याज्ञवल्क्य स्मृति

  • याज्ञवल्क्य को याज्ञवल्क्य स्मृति के लेखक के रूप में भी जाना जाता है। यह ग्रंथ धर्म, नीति, और कानून से संबंधित है।
  • इसमें सामाजिक व्यवस्था, धर्म, कर्तव्य, और न्याय के नियम दिए गए हैं।

4. याज्ञवल्क्य के शिष्य

  • याज्ञवल्क्य ने कई शिष्यों को वेदों और ब्राह्मणों का ज्ञान दिया। उनके ज्ञान ने पूरे भारतीय समाज में शिक्षा और दर्शन के प्रचार में योगदान दिया।

याज्ञवल्क्य और उनके संवाद

1. मैतरेयी के साथ संवाद

  • याज्ञवल्क्य ने अपनी पत्नी मैतरेयी को आत्मा और ब्रह्म के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान दिया।
  • उन्होंने स्पष्ट किया कि:
    • आत्मा ही ब्रह्म है और यह अजर-अमर है।
    • संसार की सभी वस्तुएं आत्मा के माध्यम से ही अनुभव की जाती हैं।

2. गार्गी के साथ संवाद

  • गार्गी वाचकनवी, एक विदुषी, ने याज्ञवल्क्य से ब्रह्म के विषय में प्रश्न किए।
  • गार्गी के गूढ़ प्रश्नों का उत्तर देते हुए याज्ञवल्क्य ने ब्रह्म (परम सत्य) को "सम्पूर्ण सृष्टि का आधार" बताया।

याज्ञवल्क्य का दर्शन

  • याज्ञवल्क्य का दर्शन अद्वैत वेदांत पर आधारित है। उनके अनुसार:
    • आत्मा ही ब्रह्म है, और यह सत्य, चैतन्य, और आनंदस्वरूप है।
    • संसार एक माया है, और ब्रह्म ही सत्य है।
    • आत्मा के ज्ञान से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मुख्य विचार:

  1. आत्मज्ञान: आत्मा का ज्ञान ही जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है।
  2. नेति-नेति: ब्रह्म को किसी भी वस्तु के माध्यम से समझाया नहीं जा सकता।
  3. मोक्ष: आत्मा का परमात्मा से मिलन ही मोक्ष है।

याज्ञवल्क्य का महत्व

  1. वैदिक परंपरा का संवर्धन: याज्ञवल्क्य ने शुक्ल यजुर्वेद और शतपथ ब्राह्मण के माध्यम से वैदिक साहित्य को संरक्षित और संवर्धित किया।
  2. आध्यात्मिक ज्ञान: उनके संवादों ने आत्मा और ब्रह्म के ज्ञान को गहराई से प्रस्तुत किया।
  3. नैतिक और सामाजिक व्यवस्था: याज्ञवल्क्य स्मृति ने भारतीय समाज में धर्म और न्याय की परंपरा को मजबूत किया।
  4. स्त्रियों का सम्मान: उन्होंने गार्गी और मैत्रेयी के साथ संवाद कर यह दिखाया कि ज्ञान और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में महिलाओं को समान स्थान मिलना चाहिए।

याज्ञवल्क्य की विरासत

  • याज्ञवल्क्य का योगदान भारतीय संस्कृति, दर्शन और धर्म में अमूल्य है।
  • उनका नाम उन ऋषियों में अग्रणी है, जिन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा को संरक्षित और विकसित किया।
  • उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी वेदांत दर्शन और भारतीय आध्यात्मिकता का आधार हैं।

याज्ञवल्क्य भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता के शिखर पर स्थित एक महान ऋषि थे, जिनकी शिक्षाएँ मानवता के लिए अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।

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