मन्त्र 1 (केन उपनिषद)

Sooraj Krishna Shastri
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मन्त्र 1 (केन उपनिषद) । यह रहा उच्च गुणवत्ता वाला चित्र, जिसमें केन उपनिषद के प्रश्नोत्तर दृश्य को दर्शाया गया है। ऋषि अपने शिष्य को ब्रह्म के गूढ़ तत्व समझा रहे हैं। यह दृश्य दिव्यता और गहन आध्यात्मिकता को दर्शाता है।

मन्त्र 1 (केन उपनिषद) । यह रहा उच्च गुणवत्ता वाला चित्र, जिसमें केन उपनिषद के प्रश्नोत्तर दृश्य को दर्शाया गया है। ऋषि अपने शिष्य को ब्रह्म के गूढ़ तत्व समझा रहे हैं। यह दृश्य दिव्यता और गहन आध्यात्मिकता को दर्शाता है। 


मन्त्र 1 (केन उपनिषद)


मूल पाठ:
ॐ केनेषितं पतति प्रेषितं मनः।
केन प्राणः प्रथमः प्रैति युक्तः।
केनेषितां वाचमिमां वदन्ति।
चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति॥


शब्दार्थ:

  1. केन: किसके द्वारा।
  2. इषितं: प्रेरित।
  3. पतति: गति करता है।
  4. प्रेषितं: आदेशित।
  5. मनः: मन।
  6. प्राणः: जीवन-शक्ति।
  7. प्रथः: प्रारंभिक।
  8. युक्तः: संयोजित।
  9. वाचम्: वाणी।
  10. इमाम्: इस।
  11. वदन्ति: बोलती है।
  12. चक्षुः: नेत्र।
  13. श्रोत्रं: कान।
  14. क: कौन।
  15. देवः: देवता।
  16. युनक्ति: जोड़ता है, सक्रिय करता है।

अनुवाद:

मन किसके द्वारा प्रेरित होता है? प्राण किसके आदेश से गति करता है? यह वाणी किसके निर्देश पर बोलती है? आँखों और कानों को कौन देवता सक्रिय करता है?


व्याख्या:

1. प्रश्न का उद्देश्य:

यह मन्त्र ब्रह्म को जानने की जिज्ञासा से आरंभ होता है।

  • मन, प्राण, वाणी, नेत्र, और कान जैसे इंद्रियों की शक्ति के पीछे कौन-सी दिव्य शक्ति है?
  • यह प्रश्न ब्रह्म के अस्तित्व को समझने का प्रयास करता है।

2. इंद्रियों की सीमितता:

  • यह स्पष्ट किया जाता है कि मन और इंद्रियां स्वतंत्र नहीं हैं; वे किसी उच्च शक्ति द्वारा संचालित होती हैं।
  • यह उच्च शक्ति "ब्रह्म" है, जो चेतना और जीवन का स्रोत है।

3. ब्रह्म का अनुभव:

  • ब्रह्म इंद्रियों के परे है, लेकिन वही उन्हें उनकी शक्तियां प्रदान करता है।
  • इसे जानने के लिए आत्म-चिंतन और ध्यान आवश्यक है।

4. जीवन की गहराई:

यह मन्त्र यह बताता है कि जीवन की जटिलताएं (जैसे सोचने की शक्ति, सुनने की शक्ति) किसी गहरे स्रोत (ब्रह्म) से आती हैं।


वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  1. चेतना का स्रोत:

    • आधुनिक विज्ञान में भी यह प्रश्न उठता है कि मन और चेतना का मूल स्रोत क्या है।
    • यह मन्त्र "ब्रह्म" को चेतना का अंतिम स्रोत मानता है।
  2. जीवन-शक्ति (प्राण):

    • प्राण का वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधुनिक जीवविज्ञान में ऊर्जा और चेतना के अध्ययन से मेल खाता है।
  3. इंद्रियों का नियंत्रण:

    • इंद्रियों को सक्रिय करने वाली शक्ति का पता आज तक विज्ञान भी पूरी तरह नहीं लगा सका है। यह मन्त्र उस "अज्ञेय शक्ति" की ओर इशारा करता है।

आध्यात्मिक संदेश:

  1. ब्रह्म की खोज:
    जीवन और इंद्रियों के पीछे की शक्ति को समझना ही ब्रह्म की खोज का पहला कदम है।

  2. इंद्रियों की सीमितता:
    केवल इंद्रियों के माध्यम से सत्य को नहीं जाना जा सकता। इसके लिए आत्मज्ञान आवश्यक है।

  3. जिज्ञासा का महत्व:
    इस मन्त्र का मूल उद्देश्य जिज्ञासा को जगाना है। जो व्यक्ति प्रश्न पूछता है, वही ज्ञान प्राप्त करता है।


आधुनिक संदर्भ में उपयोग:

  • यह मन्त्र हमें सिखाता है कि हमारे जीवन की गहराई को समझने के लिए सतही ज्ञान से परे जाना चाहिए।
  • आत्मचिंतन और ध्यान के माध्यम से अपने अस्तित्व के मूल स्रोत को जानने की कोशिश करनी चाहिए।
  • यह हमें यह भी सिखाता है कि जीवन की जटिलताओं को समझने के लिए आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संतुलन आवश्यक है।

निष्कर्ष:

मन्त्र 1 ब्रह्म की खोज की शुरुआत है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम जीवन और चेतना के पीछे छिपी दिव्य शक्ति को जानने का प्रयास करें।

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