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यह रहा चित्र: केन उपनिषद के पहले खंड के नौ मंत्रों की भावनाओं को दर्शाता हुआ एक दृश्य, जिसमें ब्रह्म की इंद्रियों से परे और सर्वव्यापक प्रकृति को समझाने का प्रतीकात्मक रूप दिखाया गया है। |
केन उपनिषद के खंड 1
केन उपनिषद के खंड 1 में वास्तव में 9 मन्त्र हैं। ये सभी मन्त्र ब्रह्म के स्वरूप और उसकी इंद्रियों से परे प्रकृति को समझाने पर केंद्रित हैं।
मन्त्र 1:
ॐ केनेषितं पतति प्रेषितं मनः
केन प्राणः प्रथमः प्रैति युक्तः।
केनेषितां वाचमिमां वदन्ति
चक्षुः श्रोत्रं क उ देवो युनक्ति॥
अर्थ:
मन किसके द्वारा प्रेरित होता है? प्राण किसके निर्देश से गति करता है? वाणी किसके आदेश से बोलती है? कौन-सा देवता आँखों और कानों को सक्रिय करता है?
संदेश:
यह प्रश्न उठाता है कि इंद्रियां, मन, और प्राण, जो हमारी चेतना का हिस्सा हैं, उनके पीछे की शक्ति क्या है। इसका उत्तर ब्रह्म के अस्तित्व की ओर इशारा करता है।
मन्त्र 2:
श्रोत्रस्य श्रोत्रं मनसो मनो यद्वाचो ह वाचं
स उ प्राणस्य प्राणः चक्षुषश्चक्षुः।
अतिमुच्य धीराः प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति॥
अर्थ:
जो श्रवण का श्रवण, मन का मन, वाणी की वाणी, प्राण का प्राण, और नेत्रों का नेत्र है, वह ब्रह्म है। ज्ञानीजन इसे समझकर मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर अमर हो जाते हैं।
संदेश:
यह ब्रह्म को इंद्रियों की शक्ति का स्रोत बताता है और यह सिखाता है कि इसे जानने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मन्त्र 3:
न तत्र चक्षुर्गच्छति न वाग्गच्छति नो मनः।
न विद्मो न विजानीमो यथैतदनुशिष्यात्॥
अर्थ:
आंखें उसे नहीं देख सकतीं, वाणी उसे व्यक्त नहीं कर सकती, और मन उसे समझ नहीं सकता। हम यह नहीं जानते कि इसे कैसे सिखाएं।
संदेश:
ब्रह्म को इंद्रियों और तर्क से नहीं समझा जा सकता। इसे केवल अनुभव किया जा सकता है।
मन्त्र 4:
अन्यदेव तद्विदितादथो अविदितादधि।
इति शुश्रुम पूर्वेषां ये नस्तद्व्याचचक्षिरे॥
अर्थ:
ब्रह्म ज्ञात से अलग है और अज्ञात से भी परे है। यह हमें पूर्वजों और ज्ञानीजनों से सुनने को मिला है।
संदेश:
ब्रह्म को साधारण ज्ञान या अज्ञान के माध्यम से नहीं समझा जा सकता। यह केवल आध्यात्मिक अनुभव के माध्यम से समझा जा सकता है।
मन्त्र 5:
यद्वाचाऽनभ्युदितं येन वागभ्युद्यते।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥
अर्थ:
जो वाणी से व्यक्त नहीं होता, लेकिन वाणी को शक्ति देता है, वही ब्रह्म है। जो उपासना के लिए दिखाई देता है, वह ब्रह्म नहीं है।
संदेश:
ब्रह्म वह नहीं है जो भौतिक रूप से समझा या व्यक्त किया जा सकता है। यह अज्ञेय और अनुभवजन्य है।
मन्त्र 6:
यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम्।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥
अर्थ:
जो मन से नहीं समझा जा सकता, लेकिन जो मन को सोचने की शक्ति देता है, वही ब्रह्म है।
संदेश:
ब्रह्म मन से परे है। यह चेतना का मूल है, जिसे मन के परे जाकर अनुभव किया जा सकता है।
मन्त्र 7:
यच्चक्षुषा न पश्यति येन चक्षूँषि पश्यति।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥
अर्थ:
जो नेत्रों से नहीं देखा जा सकता, लेकिन जो नेत्रों को देखने की शक्ति देता है, वही ब्रह्म है।
संदेश:
ब्रह्म दृश्य रूप से नहीं देखा जा सकता। यह इंद्रियों के कार्य का आधार है।
मन्त्र 8:
यच्छ्रोत्रेण न शृणोति येन श्रोत्रमिदं श्रुतम्।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥
अर्थ:
जो कानों से सुना नहीं जा सकता, लेकिन जो कानों को सुनने की शक्ति देता है, वही ब्रह्म है।
संदेश:
ब्रह्म श्रवण शक्ति का स्रोत है, लेकिन इसे कानों के माध्यम से समझा नहीं जा सकता।
मन्त्र 9:
यत्प्राणेन न प्राणिति येन प्राणः प्रणीयते।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥
अर्थ:
जो प्राण से प्राण नहीं लेता, लेकिन जो प्राण को जीवन शक्ति देता है, वही ब्रह्म है।
संदेश:
ब्रह्म जीवन शक्ति का स्रोत है। यह सांसारिक प्राणों से परे है।
निष्कर्ष
खंड 1 के 9 मन्त्र ब्रह्म के स्वरूप और उसकी अज्ञेयता पर गहराई से प्रकाश डालते हैं। ये सिखाते हैं कि ब्रह्म को इंद्रियों और मन से नहीं, बल्कि अनुभव और आत्मज्ञान से ही जाना जा सकता है।