काव्य का वर्गीकरण और रस का स्थान

Sooraj Krishna Shastri
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यह चित्र संस्कृत काव्यशास्त्र (साहित्य और अलंकारशास्त्र) से प्रेरित है। इसमें प्राचीन भारतीय विद्वानों को एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर काव्य और सौंदर्यशास्त्र पर चर्चा करते हुए दर्शाया गया है। ताड़पत्र की पांडुलिपियों, प्राकृतिक वातावरण, और बहती नदी के साथ यह दृश्य संस्कृत काव्य की गहराई और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करता है।

यह चित्र संस्कृत काव्यशास्त्र (साहित्य और अलंकारशास्त्र) से प्रेरित है। इसमें प्राचीन भारतीय विद्वानों को एक वट वृक्ष के नीचे बैठकर काव्य और सौंदर्यशास्त्र पर चर्चा करते हुए दर्शाया गया है। ताड़पत्र की पांडुलिपियों, प्राकृतिक वातावरण, और बहती नदी के साथ यह दृश्य संस्कृत काव्य की गहराई और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रदर्शित करता है।



काव्य का वर्गीकरण और रस का स्थान:

"वाक्यं रसात्मकं काव्यम्।"

  • वाक्यम् (वाक्य)
  • रसात्मकम् (रस से युक्त)
  • काव्यम्। (काव्य है)।

अनुवाद: वह वाक्य जो रस से युक्त हो, काव्य कहलाता है।


रस की उत्पत्ति के साधन:

"विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः।"

  • विभाव-अनुभाव-व्यभिचारि-संयोगात् (विभाव, अनुभाव, और व्यभिचारी भावों के संयोग से)
  • रस-निष्पत्तिः। (रस की उत्पत्ति होती है)।

अनुवाद: विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की उत्पत्ति होती है।


विभाव का स्वरूप:

"विभावाः कारणं रसस्य।"

  • विभावाः (विभाव)
  • कारणम् (कारण हैं)
  • रसस्य। (रस के)।

अनुवाद: विभाव रस उत्पन्न करने के कारण होते हैं।


"विभावस्यालम्बन-उद्दीपन-भेदः।"

  • विभावस्य (विभाव का)
  • आलम्बन-उद्दीपन-भेदः। (आलंबन और उद्दीपन के रूप में भेद होता है)।

अनुवाद: विभाव दो प्रकार के होते हैं—आलंबन विभाव और उद्दीपन विभाव।


अनुभाव और व्यभिचारी भाव:

"अनुभावः तत्कारणजन्यक्रिया।"

  • अनुभावः (अनुभाव)
  • तत्-कारण-जन्य-क्रिया। (उस कारण से उत्पन्न क्रिया)।

अनुवाद: अनुभाव वह क्रिया है, जो विभाव के कारण उत्पन्न होती है।

"व्यभिचारिभावाः सहायकः।"

  • व्यभिचारी-भावाः (व्यभिचारी भाव)
  • सहायकः। (सहायक होते हैं)।

अनुवाद: व्यभिचारी भाव रस उत्पन्न करने में सहायक होते हैं।


रस की पूर्णता:

"स्थायिभावः रसस्य मूलम्।"

  • स्थायिभावः (स्थायी भाव)
  • रसस्य (रस का)
  • मूलम्। (मूल है)।

अनुवाद: स्थायी भाव ही रस का मूल है।


रस और स्थायी भाव का संबंध:

"स्थायिभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः।"

  • स्थायी-भाव-अनुभाव-व्यभिचारी-संयोगात् (स्थायी भाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से)
  • रस-निष्पत्तिः। (रस की उत्पत्ति होती है)।

अनुवाद: स्थायी भाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की उत्पत्ति होती है।


रस का अनुभव:

"रसः सहृदयैः अनुभव्यमानः।"

  • रसः (रस)
  • सहृदयैः (संवेदनशील व्यक्तियों द्वारा)
  • अनुभव्यमानः। (अनुभव किया जाता है)।

अनुवाद: रस संवेदनशील और सहृदय व्यक्तियों द्वारा अनुभव किया जाता है।


काव्य के दोष और गुण:

"दोषास्तस्यापकर्षकाः।"

  • दोषाः (दोष)
  • तस्य (काव्य के)
  • अपकर्षकाः। (गुणों को कम करने वाले)।

अनुवाद: काव्य के दोष वे होते हैं, जो उसके गुणों को कम करते हैं।


"गुणाः काव्यस्य उत्कर्षकाः।"

  • गुणाः (गुण)
  • काव्यस्य (काव्य के)
  • उत्कर्षकाः। (उन्नति बढ़ाने वाले)।

अनुवाद: काव्य के गुण वे होते हैं, जो उसकी श्रेष्ठता को बढ़ाते हैं।


अलंकार का महत्व:

"अलंकाराः काव्यस्य शोभा।"

  • अलंकाराः (अलंकार)
  • काव्यस्य (काव्य का)
  • शोभा। (सौंदर्य हैं)।

अनुवाद: अलंकार काव्य का सौंदर्य बढ़ाते हैं।


रीति और काव्य का सौंदर्य:

"रीतयः काव्यस्य शैलीविशेषाः।"

  • रीतयः (रीतियाँ)
  • काव्यस्य (काव्य की)
  • शैली-विशेषाः। (शैली के विशेष रूप हैं)।

अनुवाद: रीतियाँ काव्य में शैली के विशेष प्रकार को दर्शाती हैं।


काव्य का सार:

"रसात्मकं वाक्यं काव्यस्य परं लक्षणम्।"

  • रसात्मकम् (रस से युक्त)
  • वाक्यम् (वाक्य)
  • काव्यस्य (काव्य का)
  • परम् लक्षणम्। (सर्वोच्च लक्षण है)।

अनुवाद: रस से युक्त वाक्य काव्य का सर्वोच्च लक्षण है।


निष्कर्ष:

साहित्यदर्पण में काव्य की परिभाषा, रस की उत्पत्ति, दोष-गुण, और अलंकारों की भूमिका का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह बताया गया है कि काव्य का उद्देश्य रस की उत्पत्ति और उसकी अभिव्यक्ति है। स्थायी भाव, अनुभाव, और व्यभिचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है, जो काव्य की आत्मा है।

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