जब मनुष्य ने पहली बार बोला: भाषा के जन्म की रहस्यमयी यात्रा!

Sooraj Krishna Shastri
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जब मनुष्य ने पहली बार बोला: भाषा के जन्म की रहस्यमयी यात्रा!
जब मनुष्य ने पहली बार बोला: भाषा के जन्म की रहस्यमयी यात्रा!

भाषा विकास का ऐतिहासिक कालक्रम: मानव सभ्यता के उदय से पाणिनि-व्यास युग तक

भाषा और संचार का विकास मानव सभ्यता के विकास का आधार रहा है। हाल ही में प्रस्तुत किए गए शोध के अनुसार, भाषा के विकास को निम्नलिखित चरणों में विभाजित किया जा सकता है:

1. एकल वर्ण वाचिक संचार (होमो इरेक्टस युग)

भाषा के विकास का सबसे प्रारंभिक चरण एकल ध्वनि (वर्ण) पर आधारित था। यह वह काल था जब होमो इरेक्टस नामक मानव प्रजाति ने पहली बार वाचिक संचार की क्षमता विकसित की। इस कारण इसे "इरेक्ट स्पीकर" भी कहा जाता है।

2. बहुवर्ण संचार का उदय

समय के साथ, एकल वर्ण से आगे बढ़ते हुए मनुष्य ने बहुवर्ण संचार को अपनाया, जिससे अधिक जटिल अभिव्यक्तियाँ संभव हो सकीं।

3. व्यंजन और स्वर का वर्गीकरण

भाषा के क्रमिक विकास में वर्णों का स्वर और व्यंजन के रूप में वर्गीकरण हुआ, जिससे भाषा अधिक संगठित और प्रभावी हुई।

4. धातु (क्रियामूल) का प्रारंभिक विकास

किसी कार्य को करने के निर्देश के रूप में "धातु" अस्तित्व में आई। इस स्तर पर, स्वरों का प्रयोग प्रोटो-विभक्ति के रूप में किया जाने लगा, जिससे भाषा अधिक संरचित होने लगी।

5. विभक्ति, लिंग, वचन और काल का विकास

धातुओं के विकसित होते ही भाषा में विभक्ति, लिंग, वचन और काल जैसी संरचनाएँ उभरने लगीं। यह भाषा के व्याकरणिक स्वरूप के निर्माण का महत्वपूर्ण चरण था।

6. नासिका-संचय की क्षमता में कमी और होमो सैपियंस का वर्चस्व

भाषा की इस यात्रा के दौरान, नासिका-संचय की क्षमता (अर्थात नासिक्य ध्वनियों का प्रयोग) घटने लगी, जो संभवतः होमो सैपियंस के उभरने के कारण हुआ, जिसने होमो इरेक्टस की जगह ले ली।

7. साहित्य के संरक्षण का निर्णय

भाषा और व्याकरण के स्थायित्व के लिए साहित्य को संरक्षित करने की आवश्यकता महसूस की गई। इस चरण में मूल (अब लुप्त) व्याकरण और वेदों का संकलन किया गया, जिससे मौखिक परंपरा को एक निश्चित रूप मिला।

8. सरस्वती नदी के सूखने के बाद पाणिनि-व्यास युग की भूमिका

सरस्वती नदी के विलुप्त होने के समय, पाणिनि वंश ने व्याकरण को और व्यास वंश ने वेदों के संरक्षण को व्यवस्थित किया। यह भाषा और वैदिक ज्ञान के संरक्षक बनने का एक ऐतिहासिक निर्णय था, जिसने संस्कृत भाषा को संरचित और सुरक्षित किया।

निष्कर्ष

भाषा का यह क्रमिक विकास मानव सभ्यता के विस्तार का प्रतिबिंब है। यह प्रक्रिया न केवल व्याकरण और साहित्य को जन्म देती है, बल्कि सभ्यता की सांस्कृतिक और बौद्धिक समृद्धि का भी द्योतक है। इस शोध से स्पष्ट होता है कि भाषा का विकास प्राकृतिक प्रगति का परिणाम था, जिसमें सामाजिक आवश्यकताओं और बौद्धिक विस्तार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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