कथा: कर्म और भाग्य की गूढ़ व्याख्या

Sooraj Krishna Shastri
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कथा: कर्म और भाग्य की गूढ़ व्याख्या
कथा: कर्म और भाग्य की गूढ़ व्याख्या


कथा: कर्म और भाग्य की गूढ़ व्याख्या

एक बार देवी लक्ष्मी और भगवान नारायण पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आए। कुछ समय तक विचरण करने के बाद वे विश्राम हेतु एक सुंदर बगीचे में रुके। भगवान नारायण वृक्ष की छाया में विश्राम करने लगे, जबकि लक्ष्मी जी बगीचे के सौंदर्य को निहारने लगीं।

पहली घटना: अधर्मी व्यक्ति को धन प्राप्ति

थोड़ी देर बाद लक्ष्मी जी ने देखा कि एक व्यक्ति मद्यपान किए हुए, बेसुध गाना गाते हुए मार्ग से गुजर रहा है। अचानक उसे एक पत्थर से ठोकर लगी, जिससे वह क्रोधित हो गया और उस पत्थर को अपशब्द कहते हुए लात मारने लगा। आश्चर्यजनक रूप से, उस पत्थर के हटते ही वहां से एक पोटली निकली, जिसमें बहुमूल्य रत्न और आभूषण भरे हुए थे। वह व्यक्ति प्रसन्नता से झूम उठा और खुशी-खुशी पोटली लेकर चला गया।

लक्ष्मी जी को यह देखकर विस्मय हुआ। उन्होंने सोचा— "यह व्यक्ति तो नितांत अधर्मी, झूठा, चोर और नशेड़ी है। इसके आचरण में कोई सात्त्विकता नहीं है, फिर भी इसे इतना बहुमूल्य धन कैसे प्राप्त हुआ?" उन्होंने तुरंत भगवान नारायण की ओर देखा, किंतु वे नेत्र मूंदे शांत बैठे थे।

दूसरी घटना: पुण्यात्मा की पीड़ा

थोड़ी ही देर में एक दूसरा व्यक्ति उसी मार्ग से गुजरा। वह अत्यंत साधारण वेशभूषा में था— वस्त्र पुराने थे, किंतु स्वच्छ एवं सलीकेदार थे। उसके मुख पर शांति और संतोष का तेज झलक रहा था। अचानक, चलते समय उसके पांव में एक बड़ा कांटा चुभ गया, जिससे रक्त प्रवाहित होने लगा। उसने धैर्यपूर्वक कांटे को निकाला, अपने गमछे से पांव को बांधा और प्रभु को धन्यवाद देते हुए लंगड़ाते हुए आगे बढ़ गया।

लक्ष्मी जी यह देखकर और अधिक चकित हो गईं। उन्होंने सोचा— "इतना सज्जन, भक्त और ईमानदार व्यक्ति, जो सद्गुणों से परिपूर्ण है, उसे इतना कष्ट क्यों मिला?" उन्होंने भगवान नारायण को पुनः जगाया और इस भेदभाव का कारण पूछा।

भगवान नारायण का उत्तर: कर्मों का लेखा-जोखा

भगवान नारायण ने नेत्र खोलकर मंद मुस्कान के साथ उत्तर दिया—

"हे देवी! मैं किसी को सुख-दुख नहीं देता, यह तो प्रत्येक जीव अपने कर्मों के अनुसार स्वयं प्राप्त करता है। मैं केवल एक लेखाकार (Accountant) की भांति उनके कर्मों का लेखा-जोखा रखता हूं।"

इसके पश्चात उन्होंने दोनों घटनाओं की व्याख्या की—

  1. अधर्मी व्यक्ति की पूर्व जन्म की पुण्य-संपदा
    "वह पहला व्यक्ति, जो दुराचारी और मद्यपान में लिप्त है, अपने पूर्व जन्म में बहुत पुण्यकर्मी था। उसके अच्छे कर्मों के कारण इस जन्म में उसे एक समृद्ध राज्य का उत्तराधिकारी बनना था, किंतु वर्तमान जन्म में उसने इतने पापकर्म किए कि उसका समस्त राजभाग घटकर केवल एक छोटी पोटली रह गया। उसे यह धन उसके पिछले जन्म के पुण्य के कारण मिला, किंतु इस जीवन में किए गए अधर्म के कारण उसका भविष्य संकटमय होगा।"

  2. सज्जन व्यक्ति के पापों का क्षय
    "दूसरा व्यक्ति, जो अत्यंत धार्मिक और साधुता से युक्त है, उसने अपने पूर्व जन्म में इतने पापकर्म किए थे कि इस जन्म में उसे फांसी पर चढ़ाया जाना था। किंतु इस जीवन में उसने इतने सद्कर्म किए कि उसकी फांसी की सजा केवल एक कांटे की पीड़ा में बदल गई। उसने पूर्व जन्म के कर्मों के कारण जो कष्ट भुगतना था, वह अत्यंत न्यून हो गया।"

महत्वपूर्ण शिक्षा

भगवान नारायण ने आगे समझाया—
"ज्ञानी व्यक्ति को यदि कोई कष्ट मिलता है, तो वह उसे सहन करता है, किंतु वह दुखी नहीं होता। वह इसे ईश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करता है और यह जानता है कि इसमें भी कोई न कोई शुभता अवश्य होगी। इसीलिए वह ईश्वर का आभार व्यक्त करता है और अपने पथ पर आगे बढ़ता है।"

निष्कर्ष

  • प्रत्येक जीव अपने कर्मों का फल अवश्य भोगता है, चाहे वह इस जन्म में हो या अगले जन्म में।
  • किसी को मिलने वाला सुख-दुख ईश्वर की कृपा या क्रूरता नहीं, बल्कि उसके स्वयं के कर्मों का प्रतिफल होता है।
  • यदि कोई व्यक्ति कष्ट में है, तो उसे यह विचार करना चाहिए कि वह केवल पीड़ा में है या वास्तव में दुखी है।
  • जो व्यक्ति सच्चे हृदय से प्रभु पर विश्वास करता है, उसके कष्टों का आधा भार कम हो जाता है।
  • ईश्वर कठिनाइयों को सहने की शक्ति और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जिससे व्यक्ति उन कठिनाइयों को भी प्रसन्नतापूर्वक सहन कर सकता है।

सारगर्भित संदेश

"इसलिए यदि जीवन में कोई कठिनाई आए, तो उसे प्रभु की इच्छा मानकर सहर्ष स्वीकार करें और अपने शुभ कर्मों को बढ़ाते रहें। इससे न केवल आपका पूर्व जन्म का पाप नष्ट होगा, बल्कि भविष्य में सुख और समृद्धि भी प्राप्त होगी।"

यदि यह कथा आपको प्रेरणादायक लगी हो, तो इसे दूसरों के साथ साझा करें, जिससे वे भी जीवन के गूढ़ सत्य को समझ सकें।


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