धार्मिक स्थल: "बेलवन", जहाँ लगता है खिचड़ी का भोग

Sooraj Krishna Shastri
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धार्मिक स्थल: "बेलवन", जहाँ लगता है खिचड़ी का भोग
धार्मिक स्थल: "बेलवन", जहाँ लगता है खिचड़ी का भोग


धार्मिक स्थल: "बेलवन", जहाँ लगता है खिचड़ी का भोग

बेलवन का परिचय
वृंदावन से यमुना पार मांट की ओर जाने पर रास्ते में स्थित है पावन स्थल बेलवन। प्राचीन काल में यहाँ बेल के वृक्षों का घना जंगल था, जिसके कारण इसे बेलवन कहा जाता है। यह स्थान अपनी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है।

महालक्ष्मी ग्राम और मंदिर
बेलवन में स्थित महालक्ष्मी ग्राम विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यहाँ माता महालक्ष्मी का भव्य मंदिर स्थित है, जहाँ यह मान्यता है कि माता महालक्ष्मी आज भी गोपीभाव प्राप्त करने हेतु तपस्या कर रही हैं।

महालक्ष्मी मंदिर की कथा

जब भगवान श्रीकृष्ण ने व्रजभूमि में अवतार लिया, तो सभी देवता विभिन्न रूप धारण कर वृंदावन में आकर बस गए। इससे देवलोक प्रायः रिक्त हो गया।

जब भगवान शिव भी महारास के दर्शन हेतु वृंदावन जाने लगे, तब माता महालक्ष्मी को यह देखकर आश्चर्य हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु से पूछा—

“हे स्वामी! सभी देवता देवलोक छोड़कर वृंदावन क्यों जा रहे हैं?”

भगवान विष्णु ने उत्तर दिया—

“वृंदावन में एक आठ वर्ष का बालक महारास कर रहा है, उसी के दर्शन हेतु सभी देवगण वहाँ जा रहे हैं।”

महालक्ष्मी को विश्वास नहीं हुआ कि मात्र आठ वर्ष का बालक महारास का आयोजन कर सकता है। उनकी जिज्ञासा जाग्रत हुई और वे स्वयं बैकुंठ से वृंदावन की ओर चल दीं।

राधाजी की चिंता

जब श्रीराधा को यह ज्ञात हुआ कि माता महालक्ष्मी महारास में सम्मिलित होने आ रही हैं, तो वे चिंतित हो उठीं।

उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा—

_“हे माधव! यदि महालक्ष्मी महारास में सम्मिलित हो गईं और उनमें गोपीभाव उत्पन्न हो गया, तो समस्त संसार का वैभव समाप्त हो जाएगा।

यदि संसार लक्ष्मीविहीन हो गया, तो वह संन्यासियों का स्थान बन जाएगा और जीवनयापन कठिन हो जाएगा।

कृपया आप किसी प्रकार से उन्हें वृंदावन में प्रवेश करने से रोकें।”_

श्रीकृष्ण का लीला-विन्यास

जब माता महालक्ष्मी बेलवन पहुँचीं, तो वहाँ श्रीकृष्ण ग्वालबाल के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने महालक्ष्मी से प्रश्न किया—

“हे देवी! आप कहाँ जा रही हैं?”

महालक्ष्मीजी ने उत्तर दिया—

“मैं उस बालक को देखने जा रही हूँ, जिसके कारण सभी देवगण वृंदावन पहुँचे हैं। मैं भी उसके महारास का आनंद लेना चाहती हूँ।”

ग्वालबाल रूपधारी श्रीकृष्ण बोले—

“आप वृंदावन में प्रवेश नहीं कर सकतीं।”

महालक्ष्मीजी विस्मित हुईं और बोलीं—

“हे ग्वालबाल! क्या तुम मुझे नहीं पहचानते? मैं स्वयं भगवान विष्णु की अर्धांगिनी लक्ष्मी हूँ। मेरे वैभव से सम्पूर्ण संसार संचालित होता है, और तुम मुझे रोक रहे हो?”

श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया—

“हे देवी! महारास में प्रवेश हेतु आपको अपने वैभव, गर्व और अधिकारभाव का परित्याग करना होगा। जब तक आप गोपीभाव को आत्मसात् नहीं करेंगी, तब तक महारास में प्रवेश संभव नहीं।”

महालक्ष्मी की तपस्या

यह सुनकर महालक्ष्मी ने वहीं तपस्या प्रारंभ कर दी ताकि वे गोपीभाव प्राप्त कर सकें।

कुछ समय पश्चात्, ग्वाल रूपधारी श्रीकृष्ण ने महालक्ष्मी से कहा—

“हे देवी! मुझे भूख लगी है, कुछ भोजन दीजिए।”

महालक्ष्मी बोलीं—

“मेरे पास भोजन हेतु कुछ भी नहीं है।”

तब उन्होंने अपनी साड़ी से अग्नि उत्पन्न कर खिचड़ी बनाई और श्रीकृष्ण को भोग अर्पित किया।

खिचड़ी भोग की परंपरा

यह मान्यता है कि आज भी महालक्ष्मी वहीं तपस्या कर रही हैं और ग्वाल रूप में श्रीकृष्ण उनके पास विराजमान रहते हैं, जहाँ प्रतिदिन खिचड़ी का भोग अर्पित किया जाता है।

विशेषतः पौष मास के प्रत्येक गुरुवार को यहाँ विशाल मेला लगता है। इस अवसर पर—

  • जगह-जगह चूल्हे जलाकर खिचड़ी पकाई जाती है
  • श्रीकृष्ण को भोग अर्पण कर प्रसाद रूप में वितरण किया जाता है।

बेलवन का धार्मिक महत्व

बेलवन का उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण में भी मिलता है। इस स्थान की महिमा को भविष्योत्तरपुराण में इस प्रकार वर्णित किया गया है—

“तप: सिद्धि प्रदायैवनमोबिल्ववनायच।

जनार्दन नमस्तुभ्यंविल्वेशायनमोस्तुते॥”

बेलवन की अन्य विशेषताएँ

  • श्रीकृष्ण और बलराम अपने सखाओं के साथ यहाँ गायें चराने आया करते थे
  • प्राचीन काल में यहाँ बेल के वृक्षों की अधिकता थी, जिससे यह स्थान बेलवन कहलाया।
  • आज भी यह स्थल भक्तों और श्रद्धालुओं के लिए परम पावन तीर्थस्थल है।

निष्कर्ष

बेलवन न केवल श्रीकृष्ण लीलाओं से संलग्न एक दिव्य स्थल है, बल्कि यह महालक्ष्मी की तपस्या और भक्ति की शक्ति का प्रतीक भी है। खिचड़ी महोत्सव और यहाँ की धार्मिक मान्यताएँ इस स्थान की आध्यात्मिक ऊर्जा और भक्तिरस को और भी बढ़ा देती हैं।

व्रजभूमि के इस पावन स्थल पर आकर भक्तगण श्रीकृष्ण और महालक्ष्मी की दिव्य लीलाओं का दर्शन कर धन्य होते हैं।


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