संस्कृत श्लोक: "ज्ञानान्वितेषु युक्तेषु शास्त्रज्ञेषु कृतात्मसु " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "ज्ञानान्वितेषु युक्तेषु शास्त्रज्ञेषु कृतात्मसु " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "ज्ञानान्वितेषु युक्तेषु शास्त्रज्ञेषु कृतात्मसु " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "ज्ञानान्वितेषु युक्तेषु शास्त्रज्ञेषु कृतात्मसु " का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

श्लोक:

ज्ञानान्वितेषु युक्तेषु शास्त्रज्ञेषु कृतात्मसु।
न तेषु सज्जते स्नेहः पद्मपत्रेष्विवोदकम्॥


हिन्दी अनुवाद:

जो व्यक्ति ज्ञान से परिपूर्ण होते हैं, जो सदैव आत्मसंयमी एवं सतर्क रहते हैं, जो शास्त्रों में पारंगत होते हैं तथा जिन्होंने अपने मन और आत्मा पर नियंत्रण पा लिया है, वे सांसारिक आसक्तियों से प्रभावित नहीं होते, जैसे कि जल कमल पत्र पर नहीं ठहरता।


शाब्दिक विश्लेषण:

  • ज्ञानान्वितेषु – ज्ञान से युक्त (जो ज्ञान से भरपूर हों)
  • युक्तेषु – आत्मसंयमी एवं सतर्क
  • शास्त्रज्ञेषु – शास्त्रों के ज्ञाता
  • कृतात्मसु – जिन्होंने आत्मसंयम प्राप्त कर लिया है
  • न तेषु सज्जते स्नेहः – उनमें आसक्ति नहीं टिकती
  • पद्मपत्रेष्विवोदकम् – जैसे कमल-पत्र पर जल नहीं टिकता

व्याकरणीय विश्लेषण:

  • ज्ञानान्वितेषु, युक्तेषु, शास्त्रज्ञेषु, कृतात्मसु – सभी शब्द सप्तमी विभक्ति बहुवचन में हैं, जो गुणी पुरुषों के विभिन्न लक्षणों को दर्शाते हैं।
  • न तेषु सज्जते स्नेहः – "सज्जते" आत्मनेपदी धातु का प्रयोग हुआ है, जिसका अर्थ है "आसक्ति टिकती नहीं।"
  • पद्मपत्रेषु इव उदकम् – "इव" उपमा सूचक अव्यय है, जो कमल पत्र पर पानी की स्थिति को दर्शाता है।

आधुनिक संदर्भ में व्याख्या:

  1. आत्मसंयम एवं आध्यात्मिकता

    • इस श्लोक में यह बताया गया है कि जो व्यक्ति शास्त्रों के ज्ञाता होते हैं और जिन्होंने अपने मन पर नियंत्रण पा लिया है, वे सांसारिक मोह-माया से अप्रभावित रहते हैं।
    • वे भौतिक सुखों के प्रति आसक्त नहीं होते, क्योंकि वे अपने जीवन का उद्देश्य समझ चुके होते हैं।
  2. कमल के पत्ते पर जल का उदाहरण

    • जिस प्रकार जल कमल के पत्ते पर टिका नहीं रहता और आसानी से बह जाता है, उसी प्रकार ज्ञानीजन संसार के भोगों से प्रभावित नहीं होते।
    • वे संसार में रहते हुए भी उसके मोह में नहीं फँसते।
  3. व्यावहारिक शिक्षा

    • हमें भी अपने जीवन में ज्ञान अर्जन, आत्मसंयम और शास्त्रों के अध्ययन पर ध्यान देना चाहिए ताकि हम अनावश्यक मोह-माया से बच सकें।
    • यह हमें मानसिक शांति, संतुलित दृष्टिकोण और आत्मनिर्भरता प्रदान करेगा।
  4. योग और ध्यान का महत्व

    • आत्मसंयम प्राप्त करने के लिए ध्यान, योग और स्वाध्याय अत्यंत आवश्यक हैं।
    • एक नियंत्रित एवं शांत मन ही सांसारिक बंधनों से मुक्त रह सकता है।

निष्कर्ष:

यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें ज्ञान, शास्त्रों का अध्ययन और आत्मसंयम के द्वारा अपनी प्रवृत्तियों को नियंत्रित करना चाहिए। एक आत्मज्ञानी व्यक्ति संसार में रहते हुए भी उससे प्रभावित नहीं होता, जैसे कि कमल का पत्ता जल से प्रभावित नहीं होता।

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