प्रमाण: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि

Sooraj Krishna Shastri
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प्रमाण: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि
प्रमाण: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि


यहाँ मैं प्रमाण: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि – इन छह प्रमाणों का  गूढ़, विश्लेषणात्मक, और शास्त्रीय दृष्टिकोण से विस्तृत वर्णन कर रहा हूँ, जिसमें न्याय, वेदान्त, मीमांसा आदि दर्शनों की तुलनात्मक दृष्टि भी सम्मिलित है:


प्रमाण: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द, अर्थापत्ति और अनुपलब्धि

प्रमाण: परिभाषा और महत्व

संस्कृत में 'प्रमाण' शब्द की व्युत्पत्ति होती है –

प्र + मा + ण
यहाँ "मा" का अर्थ है मापना (ज्ञान प्राप्त करना) और "प्र" उपसर्ग विशेष अर्थ में प्रयुक्त होता है।

प्रमाण = ऐसा साधन जिससे नवीन, यथार्थ, अव्यभिचारी ज्ञान उत्पन्न हो।

शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य:

दर्शन प्रमाणों की स्वीकृत संख्या
न्याय 4 (प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द)
सांख्य 3 (प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द)
मीमांसा 6 (उपरोक्त छह)
वेदान्त 6 (कुछ संप्रदायों में केवल 3)
बौद्ध 2 (प्रत्यक्ष, अनुमान)

1. प्रत्यक्ष (Pratyakṣa) – प्रत्यक्षज्ञान

न्याय दर्शन के अनुसार:

"इन्द्रियार्थसन्निकर्षजं ज्ञानं प्रत्यक्षम्।"

अर्थात – जो ज्ञान इन्द्रियों और विषयों के संनिकर्ष (contact) से उत्पन्न होता है वह प्रत्यक्ष है।

संनिकर्ष (Contact) के प्रकार:

  1. संयोग (संघात) – आँख से दीखना

  2. संयुक्तसमवाय – स्पर्श के माध्यम से स्पर्शगुण का ज्ञान

  3. संवृतसंबन्ध – वस्तु के घटक गुण का ज्ञान

  4. समवाय – मन से सुख-दुख का ज्ञान

  5. विशेषणविशेष्यभाव – गुण और वस्तु के सम्बंध का ज्ञान

बोध की अवस्थाएँ:

  • अलौकिक – सामान्य जनों से परे (योगज, सामान्यलक्षण, आदि)

  • लौकिक – सामान्य इन्द्रियजन्य ज्ञान

प्रमाणभंग:

  • इन्द्रियदोष (नेत्ररोग)

  • विषयदोष (प्रकाश की कमी)

  • संनिकर्षदोष (दूरी या अत्यधिक निकटता)


2. अनुमान (Anumāna) – तर्क पर आधारित ज्ञान

न्याय दर्शन के अनुसार:

"पूर्वदृष्टलिङ्गादुत्तरकालबुद्धिः अनुमानम्।"

अनुमान का त्रैरूप्य (तीन लक्षण):

  1. पक्षधर्मता – धूमः पर्वते अस्ति

  2. सापक्षसत्त्व – यत्र यत्र धूमः तत्र तत्र वह्निः (रसोई)

  3. विपक्षासत्त्व – यत्र वह्निः नास्ति, तत्र धूमः अपि नास्ति (जलाशय)

अनुमान के तीन प्रकार:

प्रकार उदाहरण स्वरूप
पूर्ववत् बादल देख वर्षा का अनुमान कारण से कार्य
शेषवत् कीचड़ देख वर्षा का अनुमान कार्य से कारण
सामान्यतो दृष्ट ग्रहण में चंद्र की गति परोक्ष कारण से अनुमान

अनुमान त्रिक:

  1. हेतु – कारण (धूमः)

  2. साध्य – सिद्ध्यर्थ वस्तु (वह्निः)

  3. निगमन – निष्कर्ष


3. उपमान (Upamāna) – समानता से ज्ञान

न्यायकार का मत:

"सादृश्यात् तत्संबन्धप्रवृत्तिनामज्ञानं उपमानम्।"

प्रक्रिया:

  • एक ज्ञात वस्तु (गाय)

  • एक अज्ञात वस्तु (गव्य)

  • समानता द्वारा ज्ञान (जैसे गव्य गाय के समान है)

उपयोग:

  • भाषाशिक्षा (शब्दों के अर्थ जानने में)

  • जीव-जंतुओं की पहचान


4. शब्द (Śabda) – आप्तवाक्यजन्य ज्ञान

परिभाषा:

"आप्तवचनजन्यं ज्ञानं शब्दप्रमाणम्।"

आप्त = सत्य भाषण करने वाला, जो त्रिकालदर्शी, पक्षपातरहित हो।

मीमांसा और वेदान्त का दृष्टिकोण:

  • शब्द को स्वतंत्र प्रमाण माना गया है।

  • वेद को अपौरुषेय कहा गया है – अतः उनके वाक्य नित्य और त्रुटिरहित हैं।

दो भेद:

  1. वैदिक शब्द – ऋचाएँ, उपनिषद्, ब्राह्मण वाक्य

  2. लौकिक शब्द – गुरुवाक्य, इतिहास, पुराण आदि

शर्तें:

  • वक्ता आप्त हो

  • भाषा ज्ञात हो

  • संदर्भ स्पष्ट हो


5. अर्थापत्ति (Arthāpatti) – आवश्यक कल्पना

परिभाषा:

"अन्यथा-अनुपपत्तेः अनिवार्यतः ग्रहणीय कल्पना अर्थापत्तिः।"

न्याय में इसकी स्वीकृति नहीं है, परन्तु मीमांसा और वेदान्त दर्शन में यह प्रमाण रूप में मान्य है।

उदाहरण:

  • "देवदत्त दिन में नहीं खाता, फिर भी मोटा है" → अनिवार्य निष्कर्ष = "वह रात में खाता है।"

दो प्रकार:

  1. दृष्टार्थापत्ति – प्रत्यक्ष वस्तु से जुड़ी

  2. श्रुतार्थापत्ति – वचनों के अर्थ से जुड़ी


6. अनुपलब्धि (Anupalabdhi) – अभाव का ज्ञान

परिभाषा:

"यत्र यद्भाव उपलभ्यते, तत्र तस्याभावस्य ज्ञानं अनुपलब्धिः।"

केवल वेदान्त और मीमांसा में प्रमाण रूप में मान्य, न्याय में प्रत्यक्ष का ही एक प्रकार मानी जाती है।

उदाहरण:

  • "कक्षे घटः नास्ति" – दृष्टिगोचर क्षेत्र में घट के न दिखने से ज्ञान।

चार भेद:

  1. करणानुपलब्धि – कारण के अभाव से कार्य का न होना

  2. कार्यानुपलब्धि – कार्य के अभाव से कारण का निषेध

  3. संयोगानुपलब्धि – युक्त वस्तु का न दिखाई देना

  4. विरोध्यानुपलब्धि – विरोधी के रहते वस्तु का अभाव


तुलनात्मक सारणी:

प्रमाण ज्ञान का प्रकार विशेषता दर्शनों में स्थिति
प्रत्यक्ष इन्द्रियजन्य तात्कालिक, प्रमाणिक सर्वदर्शन
अनुमान तर्कजन्य लिंग से साध्य की प्राप्ति सर्वदर्शन
उपमान उपमा-निर्भर नूतन शब्द ज्ञान न्यायदर्शन
शब्द आप्तवचनजन्य अपौरुषेय वेद विशेषतः वेदान्त
अर्थापत्ति अनिवार्य कल्पना अन्यथा असंभवता का निवारण वेदान्त/मीमांसा
अनुपलब्धि नकारात्मक ज्ञान अभाव का अनुभव वेदान्त/मीमांसा


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