केवट का अभूतपूर्व प्रेम

Sooraj Krishna Shastri
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रामायण रहस्य,  केवट का अभूतपूर्व प्रेम
रामायण रहस्य,  केवट का अभूतपूर्व प्रेम


केवट का अभूतपूर्व प्रेम

केवट पिछले तीन जन्मो से प्रभु श्री राम के चरणों के दर्शन करने के लिए लालायित था। सर्वप्रथम रघुवंश के कुलगुरु वशिष्ठ जी के पुत्र के रूप में जनम लिया। उन्होंने अपने पिता वशिष्ठ से यह जाना कि इसी कुल में परम पुरुष परमात्मा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम का अवतार होने वाला है। वशिष्ठ को यह बात अपने पिता ब्रह्मा से मालूम पड़ी थी.जब वशिष्ठ को ब्रह्मा रघुवंश के कुल गुरु का पद दे रहे थे तो वशिष्ठ ने न कर दिया,कारण उपरोहित्य कर्म अति मंदा,वेद पुराण स्मृति कर निंदा। क्योंकि कुलगुरु को पुरे कुल का पाप भोगना पड़ता है अन्यथा उतना भजन करके उन पापों को मिटाए..इसीलिए ये पद मैं नहीं लूँगा। इस पर ब्रह्मा ने समझाया कि कितना ही पाप तेरे सिर पर क्यों न लद जाये लेकिन एक ऐसा अवसर तुझे मिलने वाला है परम पुरुष परमात्मा प्रभु श्री राम इस कुल में अवतार लेंगे। जिनके स्मरण मात्र से जनम जन्मों के पाप मिट जाया करते हैं। तुझे उनका भी गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त होगा।

जब न लेहुँ मैं तब विधि मोही। कहा लाभ आगे सुत तोही॥

परमात्मा  ब्रह्म  नर  रूपा । होइहि  रघुकुल  भूषण  भूपा॥

तब   मैं   ह्रदय   बिचार, जोग   जग्य  व्रत  दान ।

जाकहुँ करिअ सो पइयहुँ, धन्य न मो सम आन॥

तब मैंने ह्रदय में विचार किया कि सब ऋषि मुनि जोग जग्य व्रत दान जिस प्रभु के दर्शन के लिए करतें हैं वह मुझे सहज सुलभ हो रहा है तब मैंने पिता की बात मान ली.यह बात जब वशिष्ठ से वशिष्ठ पुत्र को मालूम हुई तो उनके ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। और प्रभु श्री राम के चरण दर्शन के लिए बेताबी से इंतजार करने लगे।

किन्तु दुर्भाग्य वश एक ऐसी दुर्घटना घटित हुई दशरथ के हाथों श्रवण कुमार का वध हो गया,वो ब्रह्म हत्या दशरथ के सिर पर सवार हो गयी। जिसके प्राश्चित का उपाय पूछने के लिए दशरथ ,गुरुदेव वशिष्ठ के पास पहुंचे,तो वशिष्ठ ने प्राश्चित में बतलाया कि कोई पीपल का सुखा हुआ विशाल वृछ ढूढो जो खोखला हो। उसके चारो तरफ पीपल के वजन के बराबर सुखी लकड़ियाँ लग वादों उस खोखले में तुम बैठ जाओ तुम्हारे सेवक उसमे अग्नि लगा दें अग्नि भुझ जाने पर यदि तुम जिन्दा बच जाओ तो प्राश्चित हो गया अगर मर भी गए तो भी प्राश्चित हो गया. यह सुनकर दशरथ बड़े सोच मुद्रा में वशिष्ठ के पास से चल दिए और मन ही मन विचार करने लगे ये तो बड़ा दुर्लभ प्राश्चित है....

लेकिन रास्ते में दशरथ की मुलाकात वशिष्ठ पुत्र से हो गयी, तो उन्होंने दशरथ के सोच का कारण पूँछा। दशरथ ने सारी बात बतला दी। इस पर वशिष्ठ पुत्र ने दशरथ से कहा कि राजन! चिंता मत करो मैं तुम्हे बहुत सरल उपाय बताता हूँ ,पृथ्वी पर राम नाम लिख लो और उसकी तीन परिक्रमा कर लो तुम्हारे पापों का प्राश्चित हो जायेगा। यह बात अंदर वशिष्ठ ने सुन ली और क्रोधित होकर बाहर निकले और अपने पुत्र को फटकार लगायी कि मुर्ख! ये बात तो मैं भी बता सकता था इसमें प्राश्चित क्या हुआ ?और श्राप देकर अपने ही पुत्र को भस्म कर दिया।

वह वशिष्ठ पुत्र क्षीर सागर में कछुए के रूप में प्रगट हुआ और भगवान के श्री चरणों के स्पर्श करने के लिए आगे दौड़ा लेकिन चरणों कि सेवा लक्ष्मी जी कर रही थी और उन्होंने उसे दुत्कार दिया। तब वो दूसरी ओर सिर कि ओर से चढ़ने कि कोसिस करने लगा, वहाँ से शेष ने फुंकार दिया और शेष की ज्वाला से भष्म हो गया और वह फिर केवट के रूप में अवतरित होकर श्री राम के चरण कमलों का इंतजार करने लगा।

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