हनुमानजी की दिव्य उधारी (संवेदना, भक्ति और कृतज्ञता से ओतप्रोत कथा)

Sooraj Krishna Shastri
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🌺🙏 हनुमानजी की दिव्य उधारी 🙏🌺

(संवेदना, भक्ति और कृतज्ञता से ओतप्रोत कथा)


यह कथा केवल एक सांस्कृतिक आख्यान नहीं, अपितु रामकथा के उन अनकहे भावों को उजागर करती है, जहाँ प्रभु श्रीराम स्वयं कृतज्ञ होकर विनम्र हो जाते हैं और भक्ति अपने चरम वैभव को प्राप्त करती है।

हनुमानजी की दिव्य उधारी  (संवेदना, भक्ति और कृतज्ञता से ओतप्रोत कथा)
हनुमानजी की दिव्य उधारी (संवेदना, भक्ति और कृतज्ञता से ओतप्रोत कथा)



🪔 भूमिका: कौन उऋण हो सकता है हनुमान से?

"सब पर कर्जा हनुमानजी का है" — यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, वरन् रामकथा का मर्म है। जिनकी सेवा स्वयं राम, सीता, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जैसे दिव्य आत्माएँ भी चुकता न कर सकीं — वे हैं भगवान के अनन्य भक्त श्री हनुमान


👑 अयोध्या लौटने के बाद: सबको विदाई, पर हनुमान..?

जब लंका विजय के उपरांत राम अयोध्या लौटते हैं, तो विभीषण, सुग्रीव, अंगद और अन्य वानरों को विदा कर देते हैं। परंतु हनुमान को नहीं। इस पर सब आश्चर्य करने लगते हैं।

🤫 दरबार में कानाफूसी:

“कौन कहे हनुमान जी से अयोध्या छोड़ने को?”


👸 सीता माता: हनुमान तो मेरे बेटे जैसे हैं!

हनुमान वह हैं, जिन्होंने अशोक वाटिका में सीता को प्रभु की मुद्रिका दे आश्वस्त किया था:

"कछुक दिवस जननी धरु धीरा।
कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥"

सीता माता ने स्पष्ट कह दिया:

"अपने बेटे से मैं नहीं कह सकती कि वह अयोध्या से जाए।"


🧡 लक्ष्मणजी: हनुमान ने मेरे प्राण बचाए!

रणभूमि में लक्ष्मण मूर्छित पड़े थे। राम विलाप कर रहे थे, तभी आए हनुमान:

"प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महँ बीर रस।।"

लक्ष्मण कहते हैं – "मैं किस मुँह से कहूं?"

💔 भरतजी: जिसने चिता से उठाया मुझे…

नंदीग्राम में तप कर रहे भरतजी को हनुमानजी ने यह संदेश दिया:

"रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।
सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥"

भरत रो पड़े – “राम वन गए – उस पीड़ा का दोष मुझ पर पहले ही है, हनुमान का दोष और कैसे जोड़ूं!”


🤐 शत्रुघ्न: मैंने तो रामायण में बोला ही कब है?

शत्रुघ्न ने विनम्रतापूर्वक कहा – "मैंने पूरी रामकथा में नहीं बोला, तो अब क्यों कहूं हनुमान जी से जाने को?"


💬 अब बचे श्रीराम! क्या प्रभु कहें..?

सीता ने कहा – "प्रभु! आप ही कहिए। आप तो त्रैलोक्यनाथ हैं।"

राम बोले:

“प्रति उपकार करौं का तोरा।
सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥”

"हनुमानजी का कर्ज है मुझपर देवी, और कर्ज उतारने के लिए सामर्थ्य चाहिए। राम में नहीं, राम नाम में है।"


🛐 हनुमानजी का कर्ज कैसे चुके?

रामजी ने भावपूर्ण शब्दों में कहा:

पहले हनुमान विवाह करें,
लंकेश हरें इनकी जब नारी।
मुदरी लै रघुनाथ चलै, निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।
तब रघुनाथ चुकायि सकें, ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।

मतलब? — जब हनुमान भी संसार के बंधनों में पड़ें, तभी प्रभु उनके ऋण से उऋण हो सकेंगे — और वह असम्भव है।


🏛 राजसभा में रामजी का प्रस्ताव: "मांगो हनुमान!"

रामजी ने सभा में कहा – “सबको मैंने कुछ न कुछ दिया है, विभीषण को लंका, सुग्रीव को किष्किंधा... अंगद को युवराज पद। हनुमान! तुम भी मांगो।”

हनुमानजी बोले – "प्रभु! आपने कहा 'तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना' — तो मुझे दो पद चाहिए।"

🎁 कौन-से दो पद?

हनुमानजी ने प्रभु के चरण पकड़ लिए और बोले:

"मुझे ‘पद’ नहीं चाहिए...
मुझे केवल दो 'पद' चाहिए — आपके चरण!"


🧎‍♂️ रामजी की मुस्कान और कृतज्ञता

रामजी ने सीता की ओर देखा और कहा:

"अब उतर गया हनुमान का कर्ज।"
फिर भरत की ओर देख कर बोले:

“हे भरत भाई! कपि से उऋण हम नाही।”


🏁 निष्कर्ष: हनुमान — भक्ति की परम पराकाष्ठा

  • जहाँ ईश्वर भी ऋणी हो जाएं, वहाँ भक्ति अपने सर्वोच्च शिखर पर होती है।

  • हनुमानजी की सेवा, निष्ठा और समर्पण अद्वितीय है।

  • यही कारण है कि तुलसीदासजी ने लिखा:

"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं”


🚩 जय श्रीराम, जय हनुमान!

“रामकाज कीन्हे बिना, मोहि कहां विश्राम।”
जो श्रीराम के चरणों का ध्यान करे — उस पर हनुमान की विशेष कृपा रहती है।

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