Tabhi To Lok Katha in Hindi | बुंदेली लोककथा और जीवन का संदेश

Sooraj Krishna Shastri
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Tabhi To Lok Katha in Hindi | बुंदेली लोककथा और जीवन का संदेश

"Tabhi To Lok Katha in Hindi" एक प्रेरणादायी बुंदेली लोककथा है, जो हमें सिखाती है कि भाषा-शैली और व्यवहार ही इंसान के पद और पहचान को दर्शाते हैं। पढ़ें पूरी कहानी और जानें जीवन का गहरा संदेश।

 यह लोककथा अपने आप में गहन जीवन-संदेश लिए हुए है। आइए इसे व्यवस्थित और विस्तारपूर्वक रूप में प्रस्तुत करते हैं:


🌳 "तभी तो" – बुंदेली लोककथा 🌳

प्रस्तावना

भारत की लोककथाएँ केवल मनोरंजन का साधन नहीं होतीं, बल्कि उनमें जीवन के गहरे सत्य और मूल्य छिपे होते हैं। यह बुंदेली लोककथा "तभी तो" मनुष्य की भाषा-शैली और व्यवहार के महत्व को उजागर करती है।


कथा

एक दिन एक साधु बाबा विचरण करते हुए एक नगरी में पहुँचे। उन्होंने देखा कि नगर समृद्ध है, प्रजा खुशहाल है और राजा का बहुत सम्मान करती है। साधु ने सोचा कि क्यों न राजा से मिलकर उनके गुणों को जाना जाए।

सैनिकों से भेंट

राजमहल के मार्ग में सैनिकों ने साधु को रोक दिया। वे ऊँचे स्वर और कर्कश भाषा में बोले –
"कौन है बुड्ढे तू? क्यों जा रहा है राजमहल की ओर? कहीं दुश्मन देश का घुसपैठिया तो नहीं? अभी लौट जा, वरना अंजाम बुरा होगा।"

साधु ने बस इतना ही उत्तर दिया –
👉 "तभी तो"

Tabhi To Lok Katha in Hindi | बुंदेली लोककथा और जीवन का संदेश
Tabhi To Lok Katha in Hindi | बुंदेली लोककथा और जीवन का संदेश



द्वारपाल से भेंट

महल के द्वारपाल ने भी साधु को रोकते हुए कहा –
"साधुजी, यदि आप दक्षिणा के लिए आए हैं तो अगली पूर्णिमा पर आइए। उस दिन राजा सबको दान देते हैं। आज यहाँ आपको कुछ नहीं मिलेगा।"

साधु ने फिर उत्तर दिया –
👉 "तभी तो"


मंत्री से भेंट

द्वारपाल ने मंत्री को सूचना दी। मंत्री जी ने साधु का सम्मानपूर्वक स्वागत किया, पर बोले –
"महात्मन, अभी राजा भोजन करने जा रहे हैं। अतः आप मुझे ही कारण बताइए।"

साधु का उत्तर वही था –
👉 "तभी तो"


राजा से भेंट

जब राजा को समाचार मिला कि साधु पधारे हैं, तो उन्होंने भोजन स्थगित कर स्वयं साधु के पास जाकर उनका स्वागत किया। उन्होंने साधु के चरण धोए, उन्हें अपने से ऊँचे आसन पर बैठाया और पहले उन्हें भोजन कराया।

तब राजा ने विनम्रता से पूछा –
"महात्मा जी, अब कृपा कर इस रहस्य को बताइए। आप सबको देखकर 'तभी तो' ही क्यों कहते रहे?"


साधु का रहस्योद्घाटन

साधु मुस्कुराए और बोले –

  1. सैनिकों से मैंने "तभी तो" कहा क्योंकि उनका व्यवहार रूखा और भाषा कठोर थी। तभी तो वे केवल सैनिक के पद तक ही सीमित हैं।

  2. द्वारपालों से मैंने "तभी तो" कहा क्योंकि उनका व्यवहार सैनिकों से बेहतर था, किंतु सम्मान और संवेदनशीलता की कमी थी। तभी तो वे केवल द्वारपाल बने।

  3. मंत्री से मैंने "तभी तो" कहा क्योंकि उनका व्यवहार शिष्ट और संयमित था। वे साधु के सम्मान का ज्ञान रखते थे, लेकिन राजा की सुविधा को प्राथमिकता दे रहे थे। तभी तो वे मंत्री बने।

  4. और अंत में आप, राजन – आपने सभी कार्य छोड़कर अतिथि का सम्मान किया, पहले साधु को भोजन कराया, विनम्रता और मधुर भाषा दिखाई। तभी तो आप राजा हैं।


संदेश

👉 किसी व्यक्ति की भाषा-शैली और व्यवहार ही उसके व्यक्तित्व और पद की पहचान कराती है।
👉 कठोरता और अभद्रता इंसान को नीचे रोके रखती है, जबकि विनम्रता, सम्मान और सेवा-भाव मनुष्य को ऊँचाई पर ले जाते हैं।
👉 असली श्रेष्ठता पद या शक्ति से नहीं, बल्कि व्यवहार से सिद्ध होती है।


निष्कर्ष

"तभी तो" लोककथा हमें यह सिखाती है कि –

  • हमारी बोली और व्यवहार ही हमारे जीवन का आईना हैं।
  • जिस प्रकार राजा ने अतिथि का सम्मान किया, उसी प्रकार जो भी व्यक्ति दूसरों के प्रति आदर, करुणा और शिष्टता रखता है, वही जीवन में महान बनता है।


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