Tabhi To Lok Katha in Hindi | बुंदेली लोककथा और जीवन का संदेश
यह लोककथा अपने आप में गहन जीवन-संदेश लिए हुए है। आइए इसे व्यवस्थित और विस्तारपूर्वक रूप में प्रस्तुत करते हैं:
🌳 "तभी तो" – बुंदेली लोककथा 🌳
प्रस्तावना
भारत की लोककथाएँ केवल मनोरंजन का साधन नहीं होतीं, बल्कि उनमें जीवन के गहरे सत्य और मूल्य छिपे होते हैं। यह बुंदेली लोककथा "तभी तो" मनुष्य की भाषा-शैली और व्यवहार के महत्व को उजागर करती है।
कथा
एक दिन एक साधु बाबा विचरण करते हुए एक नगरी में पहुँचे। उन्होंने देखा कि नगर समृद्ध है, प्रजा खुशहाल है और राजा का बहुत सम्मान करती है। साधु ने सोचा कि क्यों न राजा से मिलकर उनके गुणों को जाना जाए।
सैनिकों से भेंट
द्वारपाल से भेंट
मंत्री से भेंट
राजा से भेंट
जब राजा को समाचार मिला कि साधु पधारे हैं, तो उन्होंने भोजन स्थगित कर स्वयं साधु के पास जाकर उनका स्वागत किया। उन्होंने साधु के चरण धोए, उन्हें अपने से ऊँचे आसन पर बैठाया और पहले उन्हें भोजन कराया।
साधु का रहस्योद्घाटन
साधु मुस्कुराए और बोले –
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सैनिकों से मैंने "तभी तो" कहा क्योंकि उनका व्यवहार रूखा और भाषा कठोर थी। तभी तो वे केवल सैनिक के पद तक ही सीमित हैं।
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द्वारपालों से मैंने "तभी तो" कहा क्योंकि उनका व्यवहार सैनिकों से बेहतर था, किंतु सम्मान और संवेदनशीलता की कमी थी। तभी तो वे केवल द्वारपाल बने।
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मंत्री से मैंने "तभी तो" कहा क्योंकि उनका व्यवहार शिष्ट और संयमित था। वे साधु के सम्मान का ज्ञान रखते थे, लेकिन राजा की सुविधा को प्राथमिकता दे रहे थे। तभी तो वे मंत्री बने।
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और अंत में आप, राजन – आपने सभी कार्य छोड़कर अतिथि का सम्मान किया, पहले साधु को भोजन कराया, विनम्रता और मधुर भाषा दिखाई। तभी तो आप राजा हैं।
संदेश
निष्कर्ष
"तभी तो" लोककथा हमें यह सिखाती है कि –
- हमारी बोली और व्यवहार ही हमारे जीवन का आईना हैं।
- जिस प्रकार राजा ने अतिथि का सम्मान किया, उसी प्रकार जो भी व्यक्ति दूसरों के प्रति आदर, करुणा और शिष्टता रखता है, वही जीवन में महान बनता है।

