“श्री सिद्धमहालक्ष्मी महाविद्या स्तोत्रमाला” देवी महालक्ष्मी का वह दुर्लभ और शक्तिशाली संकलन है जिसमें सिद्ध लक्ष्मी के बीज-मंत्र, नवचक्रेश्वरी साधना, और महाविद्या ध्यान समाहित हैं। यह स्तोत्रमाला ब्रह्माण्ड की सर्वश्रेष्ठ शक्ति—माँ लक्ष्मी—की दिव्यता, सिद्धि और करुणा का साक्षात् अनुभव कराती है।
इसमें नौचक्र लक्ष्मी, सिद्धिदात्री, त्रिशक्ति महालक्ष्मी और योगमाया के अनेक रूपों की उपासना का वर्णन है, जो साधक को धन, ऐश्वर्य, सौभाग्य, आध्यात्मिक तेज और मोक्ष प्रदान करती हैं। विशेषकर दीपावली, अक्षय तृतीया, पूर्णिमा, या पुष्य नक्षत्र पर इसका पाठ अत्यंत फलदायक है।
यह स्तोत्र न केवल आराधना का माध्यम है, बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्तियों को साधक के जीवन में संतुलित करने की “दिव्य कुंजी” भी है।
पढ़ें —
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं सिद्धमहालक्ष्म्यै नमः।
और अनुभव करें माँ लक्ष्मी के अलौकिक तेज, सिद्धि और कृपा को।
Shri Siddha Mahalakshmi Mahavidya Stotramala – सिद्धि, ऐश्वर्य और मोक्ष की दिव्य साधना
🔱 प्रस्तावना
🕉️ बीजमंत्र रूप परिचय
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमः।यह चतुर्बीजात्मक महामंत्र लक्ष्मी तत्त्व का सार है —
- श्रीं – वैभव, सौंदर्य और समृद्धि का बीज।
- ह्रीं – महाशक्ति और मोहिनी ऊर्जा का बीज।
- ऐं – ज्ञान, वाणी और प्रज्ञा का बीज।
- क्लीं – आकर्षण, प्रेम और सिद्धि का बीज।
🌸 स्तोत्रमाला की विशेषताएँ
- सर्वसिद्धिप्रद — साधना, जप या ध्यान, किसी भी रूप में पाठ करने से जीवन के सभी क्षेत्र में उन्नति होती है।
- चक्रजागरणकारी — इसमें नवचक्रेश्वरी लक्ष्मी का क्रमिक ध्यान है, जो मूलाधार से सहस्रार तक शक्ति को जाग्रत करता है।
- संपूर्ण कल्याणदायिनी — यह गृह-रक्षा, रोगनाश, धन-धान्य, सौभाग्य और आत्मोन्नति का योग है।
- रहस्यमयी विनियोग विधि — इसमें ऋष्यादिन्यास, महाविद्यान्यास, ध्यान और विनियोग का क्रम है, जो साधना को सिद्धि प्रदान करता है।
🪔 पाठ का शुभ समय
अवसर | लाभ |
---|---|
वैशाख शुक्ल चतुर्दशी | पूर्ण सिद्धि की प्राप्ति |
कार्तिक व फाल्गुन पूर्णिमा | लक्ष्मी कृपा व स्थायी वैभव |
अमावस्या / दीपावली / शरदपूर्णिमा | दरिद्रता नाश |
सूर्य या चन्द्र ग्रहण काल | गूढ़तम फल व त्वरित सिद्धि |
पुष्य नक्षत्र / अक्षय तृतीया | आयुष्य व ऐश्वर्य वृद्धि |
🌼 मुख्य स्तोत्र व ध्यान सारांश
१. सिद्ध लक्ष्मी ध्यान (बालरूपा)
पीताम्बरधरा देवीं नानालङ्कारभूषिताम् ।तेजःपुञ्जधरां श्रेष्ठां ध्यायेद्बालकुमारिकाम् ।।
💫 भावार्थ: माँ लक्ष्मी का बालरूप अत्यंत तेजस्वी, सरल, और निष्कलंक है — यही रूप साधक के हृदय में सिद्धि को जन्म देता है।
२. महालक्ष्मी ध्यान (त्रिनेत्री रूपा)
वन्दे लक्ष्मींं परब्रह्ममयीं शुद्धजाम्बूनदाभाम् ।तेजोरूपां कनकवसनां सर्वभूषोज्ज्वलांगीम् ॥
💫 भावार्थ: यह रूप परब्रह्ममयी शक्ति का प्रतीक है — जो ज्ञान, बल और मोक्ष तीनों का संगम है।
३. नवचक्रेश्वरी लक्ष्मी नामावली
चक्र | देवी का नाम | फल |
---|---|---|
मूलाधार | सिद्धिलक्ष्मी | समस्त सिद्धि |
स्वाधिष्ठान | सौभाग्यलक्ष्मी | सौभाग्य व दाम्पत्य सुख |
मणिपूर | रमालक्ष्मी | धन व प्रसन्नता |
अनाहत | साम्राज्यलक्ष्मी | प्रतिष्ठा व शासन बल |
विशुद्धि | त्रिलोकलक्ष्मी | आध्यात्मिक उन्नति |
आज्ञा | त्रिशक्तिलक्ष्मी | विवेक व विजय |
ललाट | कमलालक्ष्मी | सौंदर्य व तेज |
सहस्राराधोभाग | पद्मालक्ष्मी | कल्याण व स्थैर्य |
सहस्रार | अमृतसंजीवनी लक्ष्मी | मोक्ष व अमृतत्व |
🔯 सारभूत प्रार्थना
जय जय महालक्ष्मि जगदाद्ये,सर्वकारणकारिण्यै नमः।सर्वसिद्धिदायिन्यै सर्वमंगलकारिण्यै नमः॥
💫 भावार्थ: माँ लक्ष्मी ही जगत् की आदि कारण हैं। वे ही सिद्धि, सुख और शांति की मूल हैं। जो उनका ध्यान करता है, वही पूर्ण जीवन का अनुभव करता है।
🌕 साधक के लिए संक्षिप्त मार्गदर्शिका
- शुद्ध स्नान कर पीतवस्त्र धारण करें।
- पूर्वमुखी होकर, सिद्धलक्ष्मी यंत्र या दीपक के सम्मुख आसन पर बैठें।
- ११, २१, या १०८ बार मुख्य बीज मंत्र “ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमः” का जप करें।
- फिर सम्पूर्ण स्तोत्रमाला का पाठ श्रद्धा से करें।
- पाठ के अंत में यह प्रार्थना अवश्य करें —“माँ सिद्धमहालक्ष्मि! भक्तवत्सले! मम सर्वाभीष्ट सिद्धिं देहि।”
- साधना का समापन ‘शान्तिपाठ’ से करें।
🌸 फलश्रुति
जो इस स्तोत्रमाला का एकाग्रता से पाठ करता है —वह संसारिक बन्धनों से मुक्त होकरसिद्धि, वैभव, आरोग्य, सौभाग्य औरमोक्ष – पाँचों का अधिकारी होता है।
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Shri Siddha Mahalakshmi Mahavidya Stotramala – सिद्धि, ऐश्वर्य और मोक्ष की दिव्य साधना |
‼️श्रीसिद्धमहालक्ष्मी महाविद्या स्तोत्रमाला‼️
(१) मंगलाचरण और परिचय
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमः। विश्व में समस्त सुख, सौभाग्य, वैभव और आध्यात्मिक शक्तियों की प्रधान अधिष्ठात्री देवी हैं श्री सिद्धमहालक्ष्मी। वे न केवल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना, पालन और संहार में सहभागी हैं, अपितु मनुष्य के हृदय में सिद्धि, ऐश्वर्य, शक्ति, और मोक्ष का स्रोत भी हैं। प्राचीन वेद, पुराण और उपनिषदों में उनका नाम आद्या, त्रिपुरसुंदरी, महालक्ष्मी, सिद्धकमला और चण्डिका रूप में उल्लिखित है।
यह “श्री सिद्धमहालक्ष्मी महाविद्या स्तोत्रमाला” उनके विभिन्न स्तोत्रों और शक्तिमंत्रों का सम्मिश्रित रूप है, जिसमें:
- सिद्ध लक्ष्मी के बीज-मंत्र
- महाविद्या ध्यान और नवचक्रेश्वरी लक्ष्मी साधना
- सिद्धि, ऐश्वर्य, वैभव और मोक्ष के स्तोत्र
समाहित हैं। यह स्तोत्र सर्वकारण, सर्वसिद्धि और सर्वकल्याणदायक है। इसे पाठ करने से साधक के हृदय और चित्त में माँ लक्ष्मी की संपूर्ण दिव्यता और पराक्रमी शक्ति का अनुभव होता है।
विशेषताएँ:
- यह स्तोत्र साधना और जप दोनों के लिए प्रभावकारी है।
- इसमें सिद्ध लक्ष्मी के नौचक्र और महाविद्या ध्यान का वर्णन है, जो चक्र जागरण और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है।
- यह स्तोत्र संपूर्ण लोकवशीकरण, गृह-संरक्षण, स्वास्थ्य, वैभव, धन-धान्य और मोक्ष की प्राप्ति में अत्यंत प्रभावकारी माना गया है।
- साधक इसे वैशाख शुक्ल चतुर्दशी या पूर्णिमा की रात में विशेष रूप से पाठ करके, माँ लक्ष्मी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त दीपावली, शरदपूर्णिमा, कार्तिक पूर्णिमा, फाल्गुन पूर्णिमा, अक्षय-तृतीया, पुष्य नक्षत्र, सूर्य चन्द्र ग्रहण सहित किसी भी अमावस्या पूर्णिमा पर पाठ लाभदायक है।
अतः यह स्तोत्र केवल पूज्य और आराध्य स्तुति का माध्यम नहीं, बल्कि सिद्धि, शक्ति और वैभव की दिव्य कुंजी भी है। श्री सिद्धमहालक्ष्मी स्तोत्रमाला का पाठ करें और अपनी समस्त इच्छाओं, भय और बाधाओं से मुक्त होकर, माँ लक्ष्मी की कृपा से संपन्न और सिद्ध बनें। ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं सिद्धमहालक्ष्म्यै नमः। यह स्तोत्र माता महालक्ष्मी देवी के विभिन्न स्तोत्रों का सम्मिश्रित स्वरूप है। जो अद्भुत प्रभावयुक्त है।
(२) सिद्ध लक्ष्मी के मंत्र (बीज-मंत्र संहिता)
१. ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं खफ्रे ॐ ह्रीं श्रीं सिद्ध लक्ष्मी च विदमहे नवरत्नादि धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्।
२. ॐ ह्रीं हूं फ्रें छीं स्हौ; क्रीं क्रौं फ्रें क्लीं श्रीं फ्रों जूं दं सिद्धकमलायै नमः ।
३. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध लक्ष्म्यै नमः।
४. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं श्रीं सिद्धियोगलक्ष्म्यै नमः।
५. ॐ सिद्धलक्ष्म्यै च विदमहे सर्वशक्त्यै धीमहि तन्नो आद्या भगवति: प्रचोदयात्।
६. ॐ सिद्धिदात्र्यै च विदमहे महाअचिन्त्यशक्तिकायै धीमहि तन्नो सिद्बलक्ष्मी: प्रचोदयात्।
७. ॐ सर्वविद्या महाराज्ञ्यै च विदमहे सर्वशक्त्यै धीमहि सिद्ध महालक्ष्मी: प्रचोदयात्।
८. ॐ नमः कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नमः ।
९. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमो नारायण्यै जगतस्थिति कारिण्यै क्लीं क्लीं क्लीं श्रीं श्रीं श्रीं आं जूं सः । ।
१०. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं जयलक्ष्मी युद्धम् में विजयम् देही ह्रौं आं क्रौं फट् स्वाहा।
११. ॐ ह्रीं हूं फ्रें छीं स्हौ; क्रीं क्रौं फ्रें क्लीं श्रीं फ्रों जूं ब्लौम् दं सिद्धकमलायै नमः ।
(३) ध्यानं (मूल श्लोक)
कान्त्या काञ्चनसन्निभां हिमगिरिप्रख्यैश्चतुर्भिर्गजैः
हस्तोत्क्षिप्तहिरण्मयामृतघटैरासिच्यमानां श्रियम् ।
बिभ्राणां वरमब्जयुग्ममभयं हस्तैः किरीटोज्ज्वलां
क्षौमाबद्ध नितम्बबिम्बललितां वन्देऽरविन्दस्थिताम् ॥
ॐ या माया मधु-कैटभ-प्रमथनी, या माहिषोन्मूलनी
या धूम्रेक्षण-चण्ड-मुण्ड-दलनी, या रक्त-बीजाशनी।
शक्तिः शुम्भ-निशुम्भ-दैत्य-मथनी, या सिद्ध-लक्ष्मी परा
सा देवी नव-कोटि-मूर्ति-सहिता, मां पातु विश्वेश्वरी।।
लक्ष्मीं कोल्हापुरस्थां भुवि गणपतिनाऽग्रे च पार्श्वद्वये तां
काल्या वाण्याऽऽसमन्तात्परिजननिकरैः सेवितां देवताभिः ।
नागं लिङ्गं च योनिं स्वशिरसि दधतीं मातुलिङ्गं गदां तत्
खेटं श्रीपानपात्रं त्रिभुवनजननीं नौमि दोर्भिश्चतुर्भिः ॥
प्रकाशमध्यस्थितचित्स्वरूपां वराभये सन्दधतीं त्रिनेत्राम् ।
सिन्दूरवर्णामतिकोमलाङ्गीं मायामयीं तत्त्वमयीं नमामि ॥
सर्वाद्यामगुणामलक्ष्यवपुषं व्याप्याखिलं संस्तुतां
लक्ष्यां च त्रिगुणात्मिकां कनकभां सौवर्णभूषान्विताम् ।
बीजापूरगदे च खेटकसुधापात्रे करैर्बिभ्रतीं
योनिं लिङ्गमहिं च मूर्ध्नि दधतीं चण्डीं भजे चिन्मयीम् ॥
धृत्वा श्रीर्मातुलिङ्गं तदुपरि च गदां खेटकं पानपात्रं
नागं लिङ्गं च योनिं शिरसि धृतवती राजते हेमवर्णा ।
आद्या शक्तिस्त्रिरूपा त्रिगुणपरिवृता ब्रह्मणो हेतुभूता
विश्वाद्या सृष्टिकर्त्री वसतु मम गृहे सर्वदा सुप्रसन्ना ॥
अक्षस्रक्परशुं गदेषु कुलिशं पद्मं धनुः कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिञ्च चर्मजलजं घण्टां सुराभाजनम् ।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रवालप्रभां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्।।
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटीपद्मपत्रायताक्षी
गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।
लक्ष्मीर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुभै-
र्नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ॥
(४) विनियोगः
ॐ अस्य सर्व-विद्या-महाराज्ञी-सप्तशती रहस्याति-रहस्य-मयी-परा-शक्ति श्रीमदाद्यामहालक्ष्मी-भगवती-सिद्धि-चण्डिका त्रिशक्ति सिद्ध महालक्ष्मीं--महा-विद्या-मन्त्रस्य श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषि, गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्दांसि, नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवता, श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी सर्व शक्ति रूपा सिद्ध महालक्ष्मी -प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगः ।
(५) ऋष्यादिन्यासः
- श्रीमार्कण्डेय-सुमेधा ऋषिभ्यां नमः शिरसि,
- गायत्र्यादि नाना-विधानि छन्देभ्यो नमः मुखे,
- नव-कोटि-शक्ति-युक्ता-श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-चण्डी देवतायै नमः हृदि,
- श्रीमदाद्या-भगवती-सिद्धि-महालक्ष्मी-प्रसादादखिलेष्टार्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
(६) महाविद्यान्यासः
ॐ श्रीं नमः सहस्रारे । ॐ हें नमः भाले। क्लीं नमः नेत्र-युगले। ॐ ऐं नमः कर्ण-द्वये। ॐ सौं नमः नासा-पुट-द्वये। ॐ ॐ नमो मुखे। ह्रीं ॐ नमः कण्ठे। ॐ श्रीं नमो हृदये। ॐ ऐं नमो हस्त-युगे। ॐ क्लें नमः उदरे। ॐ सौं नमः कट्यां। ॐ ऐं नमो गुह्ये। ॐ क्लीं नमो जङ्घा-युगे। ॐ ह्रीं नमो जानु-द्वये। ॐ श्रीं नमः पादादि-सर्वांगे।।
(७) सिद्ध लक्ष्मी ध्यान
सिद्ध लक्ष्मी ध्यान (१)
ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां षड्भुजां च चतुर्मुखाम् ।
त्रिनेत्रां च त्रिशूलां च पद्मचक्रगदाधराम् ।।
पीताम्बरधरां देवीं नानालङ्कारभूषिताम् ।
तेजःपुञ्जधरां श्रेष्ठां ध्यायेद्बालकुमारिकाम् ।।
सिद्ब लक्ष्मी ध्यान (२)
ऐं ऐं ऐं ऐं ऐं ॐ ह्रीं श्रीं खफ्रैम्
महातेजोमयी सिद्धकमला लक्षकोट्यायुत प्रभा।
पंचवक्त्रां दशभुजाम् त्रिपंच नयनैर्युताम्।
श्वेतवर्णाम् महादेवी महाप्रेतो परिस्थिता ।।
वन्दे लक्ष्मींं परब्रहममयीं शुद्ध जांबूनदाभां ।
तेजोरूपां कनकवसनां सर्वभूषोज्ज्वलांगीम् ।।
बीजापुरं कनक कलशः हेमपद्मं दधानामाँद्यांशक्तिंं
भुक्तिं सकलजननीं आद्यविष्णुवामाङ्ग संस्थाम् ।।
शरणं त्वां प्रपन्नोऽस्मि महालक्ष्मी हरिप्रिये ।
प्रसादं कुरु देवेशि मयि दुष्टेऽपराधिनी ।।
कोटिकन्दर्प लावण्यां सौंदर्येक स्वरूपताम् ।
सर्वमङ्गल मांगल्यां श्रीरामां शरणं व्रजे ।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
ॐकारं लक्ष्मी रुपं तु, विष्णुं हृदयमव्ययम्।
विष्णुमानन्दमव्यक्तं, ह्रींकारं बीज रुपिणीम्।।
क्लीं अमृतानन्दिनीं भद्रां, सत्यानन्द दायिनीं।
श्री दैत्य शमनीं शक्तीं, मालिनीं शत्रु मर्दिनीम्।।
तेज प्रकाशिनीं देवी, वरदां, शुभ कारिणीम् ।
ब्राह्मी च वैष्णवीं रौद्रीं, कालिका रुप शोभिनीम्।।
अ कारे लक्ष्मी रुपं तू, उ कारे विष्णुमव्ययम्।
म कारः पुरुषोऽव्यक्तो, देवी प्रणव उच्यते।।
सूर्य कोटी प्रतीकाशं, चन्द्र कोटि सम प्रभम्।
तन्मध्ये निकरं सूक्षमं, ब्रह्म रुपं व्यवस्थितम्।।
ॐ–कारं परमानन्दं सदैव सुख सुन्दरीम्।
सिद्ध लक्ष्मि! मोक्ष लक्ष्मि! आद्य लक्ष्मि नमोऽस्तु ते।।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे! सर्वार्थ साधिके!
शरण्ये त्रयम्बके गौरि, नारायणि! नमोऽस्तु ते।।
प्रथमं त्र्यम्बका गौरी, द्वितीयं वैष्णवी तथा।
तृतीयं कमला प्रोक्ता, चतुर्थं सुन्दरी तथा।।
पञ्चमं विष्णु शक्तिश्च, षष्ठं कात्यायनी तथा।
वाराही सप्तमं चैव, ह्यष्टमं हरि वल्लभा।।
नवमी खडिगनी प्रोक्ता, दशमं चैव देविका।
एकादशं सिद्ध लक्ष्मीर्द्वादशं हंसवाहिनी ।।
आकारब्रह्मरूपेण ओंकारं विष्णुमव्ययम् ।
सिद्धिलक्ष्मि! परालक्ष्मि! लक्ष्यलक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥
याः श्रीः पद्मवने कदम्बशिखरे राजगृहे कुंजरे
श्वेते चाश्वयुते वृषे च युगले यज्ञे च यूपस्थिते ।
शंखे देवकुले नरेन्द्रभवने गंगातटे गोकुले ।
या श्रीस्तिष्ठति सर्वदा मम गृहे भूयात् सदा निश्चला ॥
या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गम्भीरावर्तनाभिः स्तनभरनमिता शुद्धवस्त्रोत्तरीया ।
लक्ष्मिर्दिव्यैर्गजेन्द्रैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भै-
र्नित्यं सा पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता ।।
(८) नवचक्रेश्वरी लक्ष्मी नामावली
१. मूलाधारे स्थिता सिद्धिलक्ष्मीः, सर्वसिद्धिदायिनी सदा मां रक्षतु ॥
२. स्वाधिष्ठाने सौभाग्यलक्ष्मी, सकलसौभाग्यप्रदा सदा मां पातु ॥
३. मणिपूरे स्थिता रमा लक्ष्मी, सर्वसुखसंपन्ना भवतु सर्वदा ॥
४. अनाहते साम्राज्यलक्ष्मी, सर्वशक्तिसंपन्ना, राज्यदायिनी सदा ॥
५. विशुद्धौ त्रिलोकलक्ष्मी, त्रिलोकपालिनी, सर्वत्र नित्यं मां रक्षतु ॥
६. आज्ञाचक्रे त्रिशक्तिलक्ष्मी, त्रिगुणसमन्विता,मां विजयोपस्थितं कुरु ॥
७. ललाटपद्मे कमलालक्ष्मी, सौंदर्य, शोभा, प्राणशक्ति दायिनी सदा ॥
८. सहस्राराधोभागे पद्मालक्ष्मी, सहस्रदलप्रदा, सर्वकल्याणदायिनी सदा ॥
९. सहस्रारे स्थिताः श्रीदेवी / अमृतसंजीवनी लक्ष्मीः। मोक्षानन्दप्रदा सर्वरोगनिवारिणी सदा मां पातु॥
(९) अंतिम स्तोत्र (मन्त्र-स्तोत्र संहिता)
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्मौं श्रीं ह्रीं क्लौं ऐं सौं ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं जय जय महा-लक्ष्मी जगदाद्ये, बीज-सुरासुर-त्रिभुवन-निदाने, दयांकुरे, सर्वदेव-तेजोरुपिणि, महा-महामहिमे, महा-महारुपिणि, महा-महामाये, महा-योगमाया-स्वरूपिणि, विरञ्चि-संस्तुते। विधि-वरदे, सच्चिदानन्दे, महाविष्णु-देहावासिनी, महा-मोहिनी, मधु-कैटभ-जिह्वासिनि, नित्य-वरदान-तत्परे। महा-सुधाब्धिवासिनि, महा-महा-तेजोधारिणि, सर्वाधारे, सर्व-कारण-कारणे, अचिन्त्य-रूपे। आदित्य रूपे, इन्द्रादि-निखिल-निर्जर-सेविते। साम-गानं गायन्ति, पूर्णोदय-कारिणि। विजये जयन्ति, अपराजिते, सर्व-सुन्दरी, रक्तांशुके, सूर्यकोटि-संकाशे, चन्द्रकोटि-सुशीतले, अग्नि-कोटि-दहन-शीले, यम-कोटि-क्रूरे, वायु-कोटि-वहन-सुशीतले। ॐ-कार-नाद-बिन्दु-रूपिणि, निगमागम-मार्ग-दायिनी। महिषासुर-निर्दलनी, धूम्र-लोचन-वध-परायणे। चण्ड-मुण्डादि-शिरच्छेदिनी, रक्त-बीजादि-रुधिर-शोषणी, रक्त-पान-प्रिये, महा-योगिनी, भूत-वैताल-भैरव आदि तुष्टि-विधायिनी। शुम्भ-निशुम्भ-शिरच्छेदिनी, निखिला-सुर-बल-खादिनी, त्रिदश-राज्य-दायिनी, सर्व-स्त्री-रत्न-रूपिणि, दिव्य-देह-निर्गुणे, सगुणे, शत्-सहस्र-रूपधारिणि, सुर-वरदे, भक्त-त्राण-तत्परे। वर-वरदे, सहस्त्राक्षरे, अयुताक्षरे, सप्त-कोटि-चामुण्डा-रूपिणि, नव-कोटि-कात्यायनी-रूपे, अनेक-लक्षालक्ष-स्वरूपे। इन्द्राग्नि, ब्रह्माणि, रुद्राणि, ईशानि, भ्रामरि, भीमे, नारसिंहे। त्रय-त्रिंशत्-कोटि-दैवते, अनन्त-कोटि-ब्रह्माण्ड-नायिके, चतुरशीति-मुनि-जन-संस्तुते। सप्त-कोटि-मन्त्र-स्वरूपे, महा-काले, रात्रि-प्रकाशे, कला-काष्ठादि-रूपिणि, चतुर्दश-भुवन-भावाविकारिणि, गरुड-गामिनी। क्रों-कार, ह्रौं-कार, ह्रीं-कार, श्रीं-कार, दलें-कार, जूँ-कार, सौं-कार, ऐं-कार, क्लीं-कार, ब्लीं-कार, हूवलं-कार, ह्रौं-कार, हूं-कार — नाना-बीज-कूट-निर्मित-शरीरे, नाना-बीज-मन्त्र-राज-विराजित। सकल-सुन्दरी-गण-सेवित चरणारविन्दे, श्रीमहारज्ञी महात्रिपुरसुंदरी, महाकामेश-दयिते, कल्पवृक्षाधिष्ठिते, चिन्तामणि-दीपावस्थित, मणिमन्दिर-निवासे। चापिनी, खड्गिनी, चकिणी, गदिनी, शखिनी, पद्मिनी, निखिल-भैरवाराचिते, समस्तयोगिनी-चक्रपरिवृते। कंकालि-तारे, तोतुले, सुतारे, ज्वालामुखि, छिन्नमस्तके, त्रिभुवनेश्वरि, त्रिपुरे, त्रिलोक-जननी, महाविष्णु-वक्ष-स्थलालंकारिणि। अजिते, अमिते, अपराजिते, अनूप-चरिते, गर्भवासादि-दुःखापहारिणि, मुक्ति-क्षेमाधिषयिनी, शिवे-शान्तिकुमारि। देवीसूक्त-संस्तुते, दश-शताक्षरे, चण्डि-चामुण्डे, महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, त्रयी-विग्रहे। प्रसीद-प्रसीद, सर्व-मनोरथान् पूरय, पूरय सर्वारिष्ट-विघ्नान्, छेदय-छेदय, सर्व-ग्रह-पीडा-ज्वरोग्र-भयं, विध्वंसय-विध्वंसय, सर्व-त्रिभुवन-जीवजातं वशमानय-वशमानय। मोक्ष-मार्गं दर्शय-दर्शय, ज्ञान-मार्गं प्रकाशय-प्रकाशय, अज्ञान-तमो नाशय-नाशय, धन-धान्यादि-वृद्धिम् कुरु-कुरु, सर्व-कल्याणानि कल्पय-कल्पय, मां रक्ष-रक्ष, सर्वापद्भ्यो निस्तारय-निस्तारय। मम वज्र-शरीरं साधय-साधय, श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं श्रीं सहस्त्रकोटिलक्ष्मी रूपायै, अनन्तकोटि शक्तिरूपायै, अनन्तश्रियै, श्रीसिद्धमहालक्ष्म्यै नमः।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ह्मौं श्रीं ह्रीं क्लौं ऐं सौं सिद्धि लक्ष्मी जगन्मातृ महाशक्ति सर्वकारणकारिण्यै नवरत्नादि प्रभा सर्वसिद्धिदायिनी वरदां अभयं प्रदायिनी महा-महामहिमे महा-महारूपिणि महा-मायामयी योगमायायै ब्रह्मांडजनन्यै त्रैलोक्यधात्र्यै विश्वजनन्यै सर्वलोकाधिष्ठातृयै अम्बिकायै जगद्धात्र्यै कामरूपिण्यै कालात्मिकायै अन्नपूर्णायै आरोग्यदायिन्यै ऐश्वर्यप्रदायिन्यै सौभाग्यदायिन्यै धनधान्यप्रदायिन्यै मोक्षानंदप्रदा सर्वरोगनिवारिणी शरण्यायै परमानन्दायै त्रिनेत्रायै चतुर्भुजायै खड्गधारायै चक्रधारायै गदाधारायै शंखधरायै धनुर्धरायै कमलासनायै पद्महस्तायै भद्रकाल्यै दुर्गायै चण्डिकायै महालक्ष्म्यै महासरस्वत्यै त्रैलोक्यपालिन्यै सर्वसिद्धिदायिन्यै सर्वमंगलकारिण्यै विश्वनायिकायै सौम्यरूपिण्यै उग्ररूपिण्यै महातेजस्विन्यै सर्वज्ञानप्रदायिन्यै जयदायिन्यै विजयप्रदायिन्यै आयुष्यदायिन्यै सुखसमृद्धिदायिन्यै नमोस्तुते सिद्धि लक्ष्मी महाशक्त्यै महादेव्यै सर्वाभीष्टसिद्ध्यै।
ॐ श्रीं श्रीं स्वरूपिणी। श्रौं श्रीं श्रौं श्रीं शरीरि। श्रीं श्रीं श्रीं श्रौं श्रीं श्रीं लक्ष्मीं श्रीं ॐ श्रीं ॐ श्रीं लक्ष्मीप्रत्यंगिरे ह्रौं क्रौं श्रीं श्रीं हुं फट् स्वाहा ॥
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमो महाविष्णुवल्लभायै महामायायै कं खं गं घं ऊं नमस्ते नमस्ते मां पाहि पाहि रक्ष रक्ष धनं धान्यं श्रियं समृद्धि देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमो जगज्जनन्यै वात्सल्यनिधये चं छं जं झं जं नमस्ते नमस्ते मां पाहि पाहि रक्ष रक्ष श्रियं प्रतिष्ठां वाक्सिद्धि मे देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं सिद्धिसेवितायै सकलाभीष्ट दान दीक्षितायै टं ठं डं ढं णं नमस्ते नमस्ते मा पाहि पाहि रक्ष रक्ष सर्वतोऽभयं देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमः सिद्धिदात्र्यै महाअचिन्त्यशक्तिकायै तं थं दं धं नं नमस्ते नमस्ते मां पाहि रक्ष रक्ष मे सर्वाभीष्ट सिद्धिं देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं नमो वाञ्छितपूरिकायै सर्वसिद्धि मूलभूतायै पं फं बं भं मं नमस्ते नमस्ते मां पाहि पाहि रक्ष रक्ष मे मनोवांछितां सर्वार्थभूतां सिद्धि देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा
ॐ श्रीं ह्लीं ऐं क्लीं कमले कमलालयै प्रसीद प्रसीद मह्मम प्रसीद प्रसीद महालक्ष्मी तुभ्यं नमो नमः
नमस्ते जगद्धितायै यं वं शं षं सं हं क्षं नमस्ते नमस्ते मां पाहि पाहि रक्ष रक्ष मे वश्याकर्षण मोहनस्तंभनोच्चाटन ताडनाचिन्त्य शक्तिवैभवं देहि देहि श्रीं श्रियै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं धात्र्यै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं बीजरूपायै नमः स्वाहा ।
श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं महाविष्णुवल्लभायै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं सिद्धयै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं बुद्धयै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं धृत्यै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं मत्यै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं कान्त्यै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं शांत्यै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं सर्वतोभद्राय रूपायै नमः स्वाहा ।
ॐ श्रीं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं श्रियै नमः स्वाहा ।
ॐ नमो भगवति ब्रह्मादि वेदमातर्वेदोद्भवे वेदगर्भे सर्वशक्तिशिरोमणे श्रीं हरिवल्लभे ममाभीष्टं पूरय पूरय मां सिद्धिभाजनं कुरु कुरु अमृतं कुरु कुरु अभयं कुरु कुरु सर्व कार्येषु ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल मे सुत शक्तिं दीपय दीपय मम् अहितान् नाशय नाशय असाध्य कार्यं साधय साधय ह्रीं ह्रीं ह्रीं ग्लौं ग्लौं श्रीं श्रिये नमः स्वाहा ।
ॐ नमः कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नमः । ॐ नमो भगवत्यै लोकवशीकरमोहिन्यै , ॐ ईं ऐं क्षीं , ह्रीं श्रीं आदिलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, ऐश्वर्यलक्ष्मी, अष्टलक्ष्मी इत्यादयः मम हृदये दृढतया स्थितासर्वलोकवशीकराय, सर्वराजवशीकराय, सर्वजनवशीकराय, सर्वकार्यसिद्धिदे, कुरु कुरु, सर्वारिष्टं जहि जहि, सर्वसौभाग्यं कुरू कुरू, ॐ नमो भगवत्यै श्रीमहालक्ष्म्यै ह्रीं फट् स्वाहा ।।
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