लोभ से उत्पन्न होते हैं क्रोध, काम और मोह – जानिए क्यों कहा गया है ‘लोभः पापस्य कारणम्’ | Greed is the Root of All Evil

Sooraj Krishna Shastri
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“लोभात्क्रोधः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते। लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम्॥”

यह नीति श्लोक हमें बताता है कि लोभ (Greed) ही सभी पापों का मूल कारण है। लोभ से क्रोध, कामना और मोह उत्पन्न होते हैं, जो अंततः नाश और दुख का कारण बनते हैं। आज के आधुनिक युग में भी यह सत्य पूर्णतः लागू होता है — जहाँ धन, पद, और भौतिक सुख की चाह से व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों को खो देता है। इस लेख में जानिए कि कैसे लोभ का नियंत्रण व्यक्ति को मानसिक शांति, सामाजिक संतुलन और आध्यात्मिक उत्थान की ओर ले जाता है।

लोभ से उत्पन्न होते हैं क्रोध, काम और मोह – जानिए क्यों कहा गया है ‘लोभः पापस्य कारणम्’ | Greed is the Root of All Evil

लोभ से उत्पन्न होते हैं क्रोध, काम और मोह – जानिए क्यों कहा गया है ‘लोभः पापस्य कारणम्’ | Greed is the Root of All Evil
लोभ से उत्पन्न होते हैं क्रोध, काम और मोह – जानिए क्यों कहा गया है ‘लोभः पापस्य कारणम्’ | Greed is the Root of All Evil

1. श्लोक (संस्कृत)

लोभात्क्रोधः प्रभवति लोभात्कामः प्रजायते ।
लोभान्मोहश्च नाशश्च लोभः पापस्य कारणम् ॥


2. Transliteration (IAST / readable)

Lobhāt krodhaḥ prabhavati, lobhāt kāmaḥ prajāyate ।
Lobhān mohaś ca nāśaś ca, lobhaḥ pāpasya kāraṇam ॥

(सरल रोमन: Lobhat krodhah prabhavati, lobhat kamah prajaayate. Lobhan mohah cha naashash cha, lobhah paapasya kaaranam.)


3. हिन्दी अनुवाद (Natural rendering)

लोभ से क्रोध उत्पन्न होता है, लोभ से कामना जन्म लेती है। लोभ से मोह होता है और नाश भी होता है — अतः लोभ पाप (अधर्म/अन्याय) का कारण है।

(संक्षेप) — लोभ का तात्कालिक परिणाम क्रोध, कामना और मोह का उद्भव है; यह अंततः विनाश और पाप का मूल कारण बनता है।


4. शब्दार्थ (Word-by-word)

  • लोभात् — लोभ से / लालच से (अधिकार-कारक)
  • क्रोधः — क्रोध / क्रुद्ध अवस्था
  • प्रभवति — उत्पन्न होता है / जन्म लेता है
  • कामः — काम/इच्छा/वासना
  • प्रजायते — उत्पन्न होता है / पैदा होता है
  • लोभान् — लोभ से (द्वितीय रूप में पुनः प्रयोग)
  • मोहः — मोह / भ्रांतिपूर्ण आसक्ति
  • नाशः — विनाश / नाश
  • — और
  • पापस्य — पाप का (genitive)
  • कारणम् — कारण

5. व्याकरणात्मक विश्लेषण (संरचना व भाव)

  • वाक्यगत संरचना: श्लोक सरल समौक्तिक शैली में है — प्रत्येक क्लॉज़ में लोभात् (ablative) से प्रभाव दर्शाया गया है: लोभ ही वह कारण है जिससे क्रमशः क्रोध, कामना, मोह और अंततः नाश/पाप उत्पन्न होते हैं।
  • धातु रूप: प्रभवति, प्रजायते, (अस्ति) नाशः — क्रियाएँ वर्तमानकालीन सामान्य विधान के रूप में दी गई हैं।
  • पुनरुक्ति और समुच्चय: लोभ का बार-बार प्रयोग (लोभात् ... लोभान्) जोर देता है — यही मूल कारण है।
  • शैलीगत उपकरण: कारण-फल (causal chain) — नीति-शास्त्र में प्राय: उदाहृत रूप से कारण → परिणाम बताकर शिक्षा दी जाती है।

6. आधुनिक सन्दर्भ (Practical relevance today)

  • व्यक्तिगत स्तर: लालच (money, power, fame) से अपेक्षाएँ बढ़ती हैं; यदि संतोष नहीं, तो क्रोध एवं असंतोष पैदा होता है—जो रिश्तों और मनोबल को नष्ट कर देता है।
  • सामाजिक-राजनीतिक स्तर: लोभ (लाभ की चाह) भ्रष्टाचार, अन्याय, और संसाधनों का दुरुपयोग जन्म देता है — अंततः समाज का नाश संभव है।
  • आर्थिक/व्यावसायिक: अनियोजित लालच से जोखिम-भरे निर्णय लिए जाते हैं — दिग्गज कंपनियों/प्रबंधकों में भी लोभ से विफलताएँ दिखी हैं।
  • मानसिक-स्वास्थ्य: लोभ → असंतोष → मोह → तनाव/विकृत व्यवहार; इसलिए मानसिक शांति हेतु संतोष और संयम की आवश्यकता।

7. संवादात्मक नीति-कथा (Short dialogue)

स्थान: एक नगर के पुण्यपुर में — गुरु और उसके शिष्य का संवाद।

शिष्य: गुरुदेव, हमारे नगर में लोग स्थायी रूप से अशांति में क्यों रहते हैं?
गुरु: क्यों ढूंढते हो समाधान?
शिष्य: धन, पद और मान की चाह के कारण—लोग लड़ते हैं।
गुरु: तब सुनो — लोभ से क्या-क्या उत्पन्न होता है?
शिष्य: क्रोध, कामना, मोह — और अंततः नाश।
गुरु: ठीक कहा। अतः लोभ पर अंकुश लगाना ही नीति का मूल है। संतोष और विवेक से जीवन को सुरक्षित रखना चाहिए।

(मौजूदा नगर में कुछ ही दिनों में लड़ाइयाँ रुकीं जब लोगों ने दान-वितरण व पारदर्शिता अपनाई — कहानी का नाटकीय रूप)


8. निष्कर्ष (Conclusion — नीति सार)

  • मुख्य संदेश: लोभ सबसे मूल और घातक कारणों में से एक है — यह क्रोध, कामना, मोह और विनाश की जड़ है।
  • व्यवहारिक उपदेश: संतोष (संतोषजनक दृष्टि), संयम, और विवेक से लोभ पर विजय पाकर पाप और विघात से बचा जा सकता है।
  • नीति सूत्र: “लोभ पर संयम ही धर्म का प्रथम पाठ है।”

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