एक बाबा जी एक दिन अपने आश्रम से चले गंगा जी नहाने| बाबा जी धोखे से आधी रात को ही निकल पड़े थे| रास्ते में उनको चोरों का एक दल मिला| चोरों ने बाबा जी से कहा – ‘या तो हमारे साथ चोरी करने चलो, नहीं तो मार डालेंगे|’
बेचारे बाबाजी क्या करते, उनके साथ हो लिये| चोरों ने एक अच्छे-से घर में सेंध लगायी| एक चोर बाहर रहा और सब भीतर गये| साधु बाबा को भी वे लोग भीतर ले गये| चोर तो लगे संदूक ढूंढने, तिजोरी तोड़ने| बाबा जीने देखा कि एक ओर सिंहासन पर ठाकुर जी विराजमान हैं| उन्होंने सोचा – ‘आ गये हैं तो हम भी कुछ करें|
यह ठाकुर जी की पूजा करने बैठ गये|’ बाबा जीने चन्दन घिसा| धूपबत्ती ठीक की और लगे इधर-उधर भोग ढूंढने| वहाँ कुछ प्रसाद था नहीं| सोचा, ठाकुर जीके जागने पर कोई सती-सेवक आ जायगा तो उससे भोग मँगा लेंगे| ठाकुर जी तो रेशमी दुपट्टा ताने सो रहे थे| पूजा के लिये उनको जगाना आवश्यक था| बाबा जीने उठाया शंख और लगे ‘धूतूधू’ करने|
ठाकुर जी तो पता नहीं जगे या नहीं, पर घर के सब सोये लोग चौंककर जाग पड़े| सब चोर सिरपर पैर रखकर भाग खड़े हुए| घर के लोगों ने दौड़कर बाबा जी को पकड़ा| बाबा जीने कहा –
‘चिल्लाओ मत| ठाकुर जी को भोग लगाने के लिये कुछ दौड़कर ले आओ, तबतक मैं पूजा करता हूँ| पूजा हो जायगी, तब तुम सबको प्रसाद दूँगा और उन चोरों को भी दूँगा जो सब सेंध लगाकर मेरे साथ इस घर में आ गये हैं| जाओ, जल्दी करो|’ घर के लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ| पूछने पर सब बातों का पता लगा| तब एक स्त्री ने हँसते हुए बाबा जी के पास ठाकुर जी को भोग लगाने के लिये बहुत-से पेड़े लाकर रख दिये| उस समय एक वृद्ध यह गा रहे थे –
बिधि बस सुजन कुसंगत परही।
फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं ।।
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