"नवनि नीच कै अति दुखदाई" चौपाई का अर्थ और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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"नवनि नीच कै अति दुखदाई" चौपाई का अर्थ और विश्लेषण
"नवनि नीच कै अति दुखदाई" चौपाई का अर्थ और विश्लेषण


"नवनि नीच कै अति दुखदाई" चौपाई का अर्थ और विश्लेषण

यह चौपाई श्रीरामचरितमानस से ली गई है और इसका संदर्भ कुवचनों या बुरे लोगों की वाणी के प्रभाव को दर्शाता है। पूरी चौपाई यह है -

नवनि नीच कै अति दुखदाई।

जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई ॥

भयदायक खल कै प्रिय बानी।

जिमि अकाल के कुसुम भवानी ॥

आइए इसके शब्दार्थ और भावार्थ को समझें:


शब्दार्थ:

  1. नवनि: झुकना
  2. नीच कै: नीच (दुष्ट) व्यक्ति का
  3. अति दुखदाई: अत्यधिक दुखद
  4. जिमि: जैसे
  5. अंकुस: अंकुश (हाथी को नियंत्रित करने का औजार)
  6. धनु: धनुष
  7. उरग: सर्प
  8. बिलाई: बिल्ली
  9. भयदायक: भय उत्पन्न करने वाली
  10. खल: दुष्ट
  11. प्रिय बानी: प्रिय वाणी (मीठी लेकिन कपटी बात)
  12. अकाल के कुसुम: समय के विपरीत या अप्राकृतिक फूल
  13. भवानी: मां भवानी, देवी दुर्गा

अर्थ:

  • झुकना भी नीच व्यक्ति के हाथ में अत्यधिक दुखदायी हो जाती है, जैसे कि अंकुश हाथी के लिए, धनुष शत्रु के लिए, सर्प किसी भी व्यक्ति के लिए, और बिल्ली चूहे के लिए भयदायक होती है।
  • इसी प्रकार दुष्ट व्यक्ति की मीठी वाणी भी खतरनाक होती है। यह उसी प्रकार है जैसे अकाल (अनुचित समय) में उत्पन्न हुए फूल दिखने में सुंदर हो सकते हैं, लेकिन उनका कोई उपयोग नहीं होता और वे अशुभ माने जाते हैं।

भावार्थ:

  • इस दोहे में तुलसीदास जी ने यह समझाने का प्रयास किया है कि बुरे लोगों की वाणी और उनका व्यवहार दिखने में भले ही मधुर लगे, लेकिन वह अंततः दुखदायी और हानिकारक होता है।
  • झुकना भी अगर नीच व्यक्ति के हाथों में हो तो वह विनाशकारी हो सकता है, वैसे ही दुष्ट की प्रिय वाणी हानिकारक हो सकती है।
  • हमें सतर्क रहना चाहिए और सज्जनों का संग करना चाहिए, क्योंकि दुष्ट व्यक्ति का व्यवहार हमेशा छलपूर्ण होता है।

संदेश:

  • यह दोहा जीवन में विवेक और सतर्कता का महत्व समझाता है। हमें बुरे लोगों की मीठी बातों से बचना चाहिए और सजग रहना चाहिए।

 "नवनि नीच कै अति दुखदाई" का विश्लेषण 

 नीचका झुकना (नम्रता) भी अत्यन्त दुःखदायी होता है । जैसे अंकुश, धनुष, साँप और बिल्लीका झुकना । हे भवानी ! दुष्टकी मीठी वाणी भी (उसी प्रकार) भय देनेवाली होती है, जैसे बिना ऋतुके फूल ।

बात करते हैं रावण जब माता सीता जी का हरण करने के लिए मामा मारीच के पास जाता है। जब रावण सीता का हरण करने के लिए लंका से निकलता है तो सबसे पहले वह अपने मामा मारीच के पास पहुंचता है और उसे नमस्कार करता है। मारीच रावण को झुका देखकर समझ जाता है कि अब भविष्य में कोई संकट आने वाला है।

नीच व्यक्ति का नमन करना भी दुखदाई

 रावण को इस प्रकार झुके हुए देखकर मारीच सोचता है कि किसी नीच व्यक्ति का नमन करना भी दुखदाई होता है। मारीच रावण का मामा था, लेकिन रावण राक्षसराज और अभिमानी था। वह बिना कारण किसी के सामने झुक नहीं सकता था । मारीच ये बात जानता था और उसका झुकना किसी भयंकर परेशानी का संकेत था। तब भयभीत होकर मारीच ने रावण को प्रणाम किया। मारीच सोचता है कि जिस प्रकार कोई धनुष झुकता है तो वह किसी के लिए मृत्यु रूपी बाण छोड़ता है। जैसे कोई सांप झुकता है तो वह डंसने के लिए झुकता है। जैसे कोई बिल्ली झुकती है तो वह अपने शिकार पर झपटने के लिए झुकती है। ठीक इसी प्रकार रावण भी मारीच के सामने झुका था। किसी नीच व्यक्ति की मीठी वाणी भी बहुत दुखदायी होती है। यह ठीक वैसा ही है जैसे बिना मौसम का कोई फल। मारीच अब समझ चुका था कि भविष्य में उसके साथ कुछ बुरा होने वाला है।

आज के सामाजिक परिवेश में "नवनि नीच कै अति दुखदाई" चौपाई का अर्थ और विश्लेषण

   आज के सामाजिक परिवेश में हम इस प्रकार के दुष्ट स्वाभाव वाले व्यक्ति बहुतायत मिलते हैं जो हमारे सामने तो नम्रता दिखाते हैं और पीठ पीछे वार कर देते हैं , यह केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। अतः गोस्वामी जी द्वारा हमें इस प्रकार के व्यक्तियों से सावधान रहने के लिए चेतावनी दी गई है कि यदि इस प्रकार के दुष्ट व्यक्ति अचानक नम्र होकर हमसे मिलते हैं तो समझ जाना चाहिए कि यह हमें दुखदाई होने वाला है। यदि हम इनके नम्रतापूर्ण व्यव्हार को देखते हुए इनकी बातों में आकर कोई कार्य करते हैं तो यह हमारे लिए संकट उत्पन्न कर सकता है।

तुलसीदाम जी ने स्पष्ट लिखा है –

तब मारीच हृदयँ अनुमाना।

नवहि बिरोधें नहिं कल्याना।

सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी।

बैद बंदि कबि भानस गुनी।।

    इस चौपाई में मारीच की सोच बताई गई है कि हमें किन लोगों की बातों को तुरंत मान लेना चाहिए। अन्यथा प्राणों का संकट खड़ा हो सकता है। इस दोहे के अनुसार - शस्त्रधारी, हमारे राज जानने वाला, समर्थ स्वामी, मूर्ख, धनवान व्यक्ति, वैद्य, भाट, कवि और रसोइयां, इन लोगों की बातें तुरंत मान लेनी चाहिए। इनसे कभी विरोध नहीं करना चाहिए, अन्यथा हमारे प्राण संकट में आ सकते हैं। अर्थात् उपयुक्त नौ लोगों का विरोध कभी नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष

 निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि नीच व्यक्ति का झुकना कल्याणकारी नहीं हो सकता है । इसीलिए तुलसीदास जी कहते हैं - 

नवनि नीच कै अति दुखदाई।

जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई ॥

भयदायक खल कै प्रिय बानी।

जिमि अकाल के कुसुम भवानी ॥

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