वह कौआ हकनी थी । कौओं को भगाया (हांका) करती थी । उसे यह काम खुद राजा ने सौंपा था । कभी वह राजा की अंक शायिनी हुआ करती थी । जी हाँ , राजा की पटरानी । इस पटरानी के दुर्दिन तब शुरु हो गये थे जब राजा मगह देश से एक और रानी लाए थे । रानी रुपमती के रुप लावण्य के आगे पटरानी फीकी पड़ गयी थीं । रुपमती को भी उनका पटरानी होना फुटली आँखों भी नहीं सुहाया था । उसकी ईर्ष्या तब और बढ़ गयी जब उसे पता चला कि पटरानी हमल से है । इसका मतलब कि पटरानी का हीं बालक राजा बनेगा । क्योंकि बड़ा बेटा हीं राज्य का उत्तराधिकारी हुआ करता था ।
रानी रुपमती प्रत्यक्षतः तो पटरानी की खूब देख भाल किया करती थी , पर उसके दिमाग में एक भयानक षड़यंत्र चल रहा था । वह किसी भी तरह से पटरानी के गर्भ को नष्ट करना चाहती थी । वह पूरे रनिवास पर अपना कब्जा जमाए हुई थी । राज पुरोहित को भी उसने अपने पक्ष में कर रखा था । राज वैद्य भी उसकी हीं भाषा हीं बोलते थे । राज वैद्य से पटरानी को धीमा जहर दिलवाना शुरु किया था ताकि जच्चा व बच्चा दोनों नष्ट हो जाएँ । लेकिन जच्चा व बच्चा आखिर तक सही सलामत हीं रहे थे ।
रुपमती ने गर्भ नष्ट करने के लिए पटरानी के आने जाने के रास्ते में तेल भी गिरवा दिया था । पटरानी फिसल कर गिरीं तो जरुर । उन्हें चोट भी आई , लेकिन उनका गर्भ सुरक्षित रहा । रुपमती गर्भ गिराने में सफल नहीं हुई । नियत समय पर पटरानी को एक बेटा व एक बेटी पैदा हुए थे । पटरानी का दर्द से हाल बेहाल था । वे बेहोश थीं । उन्हें पता हीं नहीं चला कि उन्होंने जुड़वा बच्चों को जना है । रानी रुपमती ने उन बच्चों को गायब करवा दिया । अफवाह फैला दी गयी कि पटरानी ने एक ईंट और एक पत्थर को जन्म दिया है ।
राज पुरोहित ने इस घटना को बड़ा हीं अशुभ माना था । उसका मानना था कि राज्य पर कभी भी बड़ी बिपत्ती आ सकती है । उसने राजा से कहकर पटरानी को रनिवास से निकलवा दिया । उन्हें कौआ हाकने का काम मिला था । वह दिन भर भाग भागकर शाही बाग से कौए उड़ाया करतीं थीं । उन्हें तीन बक्त का भोजन शाही रसोई से मिल जाया करती थी । सब उन्हें कौआ हकनी के नाम से बुलाने लगे थे । शाही बाग में हीं उन्हें एक कमरा रहने के लिए दे दिया गया था ।
रानी रुपमती ने उन बच्चों को जान से मरवा दिया था । मारकर उनकी लाश शाही बाग में गड़वा दिया था । जहाँ लाश गाड़ी गयी थी , वहाँ एक मोला और एक केतकी के पौधे उग आए थे । मोला भाई था । केतकी बहन थी । भाई बहन आपस में खूब बातें किया करते थे । जब हवा चलती तो दोनों एक दूसरे को छूकर अठखेलियाँ किया करते थे । दोनों भाई बहन अपनी माँ की इस हालत से बहुत दुःखी हुआ करते थे । जब पूर्व पटरानी उनके पास से गुजरतीं तो भाई बहन अपनी माँ को देखकर बहुत हीं पुलकित हो उठते थे ।
केतकी में एक दिन फूल आए तो सारा बाग मह मह कर उठा । एक दिन राजा बाग में सुबह सुबह टहल रहे थे । उन्हें केतकी के फूल बड़े सुहाने लगे । उनकी खूश्बू से उनका मन प्रफुल्लित हो उठा था । वे फूल को तोड़ने के लिए केतकी की ओर जब बढ़ने लगे तो केतकी ने अपने भाई मोला से कहा था -
सुनबे तऽ सुनु भइया मोलवा रे ना !
ऐ भइया राजा पापी अइले फूल लोर्हनवा रे ना !
भाई ने कहा था -
सुनबे तऽ सुनु बहिना केतकी रे ना !
ऐ बहिनी डाढ़े पाते खिली जो आकाशवा रे ना !
भाई की बात मानकर बहन अपनी डालियों को आकाश की ऊँचाइयों की तरफ ले गयी । राजा फूल नहीं तोड़ पाए थे । उन्होंने माली से कहा । माली के हाथ भी फूलों तक नहीं पहुँच पाये थे । सीढ़ी मंगवाई गयी । सीढ़ी छोटी पड़ गयी । कई बड़ी सीढ़ियाँ मंगवायी गयी । सीढ़ियां छोटी पड़ती रहीं और बहन केतकी ऊपर उठती गयी । कौआ हकनी भी वहीं थी । उसने भी कोशिश करने की ठानी । कौआ हकनी भी फूल तोड़ने के लिए आगे बढ़ी थी। केतकी ने फिर भाई से कहा था -
सुनबे तऽ सुनु भइया मोलवा रे ना !
ऐ भइया अम्मा सोहागिन अइली फूल लोर्हनवा रे ना !
भाइ ने कहा था -
सुनबे तऽ सुनु बहिना केतकी रे ना !
ऐ बहिनी डाढ़े पाते सोहरि जो जमीनिया रे ना !
भाइ के कहने पर केतकी अपनी डाली को नीचे झुकाकर जमीन पर ले आई । कौआ हकनी ने फूल तोड़ लिया और राजा को दे दिया । राजा इस चमत्कार से आश्चर्यचकित रह गये । तभी राजा के सामने एक बालक और बालिका प्रकट हुए । उन्होंने राजा को अपना परिचय उनके पुत्र और पुत्री के रुप में दिया था । राजा अपनी संतान से मिलकर बहुत खुश हुए थे । उनके सामने रनिवास में हुए षड़यंत्र का पर्दाफाश हो चुका था । राजा ने रुपमती को मृत्यु दण्ड दिया था । राज वैद्य और राज पुरोहित को देश निकाला मिला था । कौआ हकनी को फिर से पटरानी का दर्जा मिला । राजा पटरानी और अपनी संतानों के साथ सुख पुर्वक रहने लगे ।
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