बात बिहार के एक गाँव की है। एक परिवार के बड़े बेटे का पास वाले गाँव की एक लड़की से रिश्ता पक्का हुआ। जब विवाह की तारीख नजदीक आने लगी, उस समय लड़की के पिता ने एक अजीब-सी शर्त रख दी। शर्त थी कि, "लड़के वाले बारात में अपने साथ किसी भी बुजुर्ग को नहीं लायेंगे। बारात के साथ अगर कोई भी बुज़ुर्ग आयेगें तो हम लड़की की विदाई नहीं करेंगे।"
शर्त सुनकर सभी हैरान रह गए, दो दिन बचे थे शादी में अगर बारात नहीं लेकर गए तो अपने ही गाँव में बदनामी हो जाएगी! और अगर बुजुर्गों को बारात में साथ लेकर गए और कहीं फेरे लेने से इनकार कर दिया तो और अधिक बदनामी हो जाएगी। सभी लोग परेशान हो गए सभी एक ही बात कर रहे थे कि, "बुजुर्गों के बिना कैसा विवाह?"
पर अब कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। आखिर में बड़े भारी मन से लड़के के पिता ने कहा कि बारात जाएगी और वह भी बिना बुज़ुर्गों के!
बाकी तो घर और परिवार के सभी बुजुर्ग मान गए, पर लड़के के ताऊजी जिद पर अड़ गए। वे कहने लगे, "यह भी कोई बात हुई। बड़ों के बिना विवाह! यह कैसे हो सकता है? मैं तो शादी में जाकर ही रहूँगा। देखता हूँ मुझे कौन रोकता है।" घर वालो ने ताऊजी को मनाने की बहुत कोशिश की, पर वे माने ही नहीं।
आखिर में यह तय किया गया कि उन्हें कपड़ो की गठरियों के बीच में छुपा कर ले जायेंगे। और उनसे कहा गया कि वे सामने नहीं आयेंगे। सबके ज़ोर भरने पर इस बात के लिए ताऊजी मान गए कि वे सबके सामने नहीं आएंगे।
विवाह के दिन बारात वहाँ पहुँची। लड़की वालों ने उनका स्वागत किया, साथ ही लड़की के पिता ने एक और शर्त रख दी। उस गाँव के बाहर एक नदी बहती थी। लड़की के पिता ने कहा कि, "इस नदी में पानी की जगह दूध की धारा बहाओ तो ही यह शादी होगी और हमारी बेटी की विदाई होगी। वरना यह शादी नहीं होगी। यह शर्त सुनकर तो सभी के होश उड़ गए। पूरी नदी में दूध को बहाना, यह तो असंभव है। सभी चिंता में डूब गए।
बहुत मनाया, बहुत समझाया, मिन्नतें की, लेकिन लड़की के पिता तो अपनी शर्त पर अड़ गए और कहा कि "अगर मेरी शर्त पूरी करोगे तो ही यह विवाह होगा।"
यह तो असम्भव था, तो लड़के वालों ने तय किया कि, "चलो बारात वापस लेकर चलें। शर्त पूरी नहीं कर सकते।" जब यह बात बैलगाड़ी में छुपे हुए ताऊजी के कानों में पड़ी। तो वे बाहर निकल आये और बोले कि, "क्या हुआ? हम बारात वापस क्यों लेकर जा रहे है। यह हमारी शान के खिलाफ है।"
तब किसी ने ताऊजी से कहा कि, "लड़की के पिता ने शर्त रखी है कि नदी में पानी की जगह दूध को बहाओ तो ही लड़की से विवाह होगा और विदाई होगी। अब आप ही बताएँ ताऊजी क्या यह संभव है, दूध की नदी बहाना! इसलिए बारात वापिस लेकर जा रहें है।"
यह सुनकर ताऊजी बोले, "बस इतनी-सी बात! इतनी-सी बात के लिए तुम बारात वापस लेकर जा रहे हो। जाओ उनको संदेशा भिजवाओ कि हम इस नदी में पानी की जगह दूध की धारा बहाने को तैयार है। लेकिन पहले इस नदी के पानी को खाली करवाओ।"
यह सुनकर वहाँ खड़े सभी लोग बहुत खुश हो गए यह तो किसी के दिमाग में पहले आया ही नही। सभी खुशी से झूम उठे। दो बाराती लड़की के पिता के पास गए और उनसे कहा कि, "हमे आपकी शर्त मंजूर है, हम नदी में दूध बहाने के लिए तैयार है पर पहले नदी के पानी को खाली करवाओ।"
जैसे ही लड़की के पिता ने ये बात सुनी, उन्होंने झट से कहा कि बारात में तुम किसी बुजुर्ग को अवश्य लाये हो!
और फिर लड़की के पिता ने मुस्कराते हुए कहा विवाह अवश्य होगा और वह भी सभी बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से!
तब किसी ने लड़की के पिता से पूछा कि फिर आपने ये शर्ते क्यों रखी।
तब लड़की के पिता ने कहा, "मैं तो बस आज के युवाओं को ये सबक देना चाहता था कि आधुनिकता की होड़ में वे इतना आगे निकल गए है कि अपने बड़ो के प्यार और अनुभवों को बेकार समझने लगे हैं। आज उन्होंने जान लिया होगा कि बारात में अगर ताऊजी नहीं आते तो क्या होता?
दोस्तों कहानी तो यहाँ खत्म होती है, पर हम सभी के लिए एक गहरा प्रश्न छोड़ रही है। जीवन में हम जिस रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं, दौड़ रहे हैं और कहीं ना कहीं तनाव और अकेलेपन के घेरे में पड़ गए हैं। उसकी वजह कहीं यह तो नहीं की हमारे सर से हमारे बुजुर्गों का साया दूर होता जा रहा है। हम और हमारे बुजुर्गों के बीच कहीं गहरी खाई तो नहीं बन गई है ?
इस खाई को हम कैसे पार करें ?
"इस पीढ़ी दर पीढ़ी ज्ञान की महत्ता को आज समझना हमें भविष्य के लिए तैयार करेगा। इसके बाद, आपके बुज़ुर्ग होने पर, जो ज्ञान आप साझा करेंगे, उसे भावी पीढ़ी आगे ले जाएगी।"
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