देखें अपने शुभ कर्मों को, क्या देखें तश्वीर में।
मिलना है उतना ही जितना, लिखा है तकदीर में।
पर्वत राज हिमालय त्यागा, भोले जाइ बसे काशी।
मथुरा में जन्मे केशव पर, हुए द्वारिका के बासी।
बृजवासी सब छोडे रोते, छोड़ा बृज जागीर में।
मिलना है उतना ही जितना, लिखा है तकदीर में।।1।।
वेद पुराण, रामचरितमानस, और महाभारत, गीता,
लव-कुश का जब हुआ जन्म, बनवास भोग रही थी सीता,
निकल गया जब साँप हाथ से, फिर क्या रखा लकीर में।
मिलना है उतना ही जितना, लिखा है तकदीर में।।2।।
कौरव दल में थे महायोद्वा, पर फिर भी कौरव हारे,
वानर सेना संग राम के, अहिरावण, रावण मारे,
मंदोदरि रो-रोकर कहती, हो गयी आज फकीर मैं।
मिलना है उतना ही जितना, लिखा है तकदीर में।।3।।
अपनी करनी का फल मिलता, रोक नहीं कोई पाया है,
निराकार, साकार ब्रह्म तेरी, अजब निराली माया है,
मथुरा काशी, हरिद्वार या, जाय बसें कश्मीर में।
मिलना है उतना ही जितना, लिखा है तकदीर में।।4।।
चरण पादुका छूते ही, पत्थर से प्रकट हुई नारी,
अन्धे थे धृतराष्ट्र किन्तु, क्यों अन्धी बन गई गंधारी,
द्रोपदी माधव को टेरे लाज बचाओ चीर में।
मिलना है उतना ही जितना, लिखा है तकदीर में।।5।।
रचनाकार
- बीरपाल सिंह "निश्छल"