राजा रहूगण की कथा, भागवत पुराण, पंचम स्कंध, अध्याय 10-13

Sooraj Krishna Shastri
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यह चित्र राजा रहूगण और जड़ भरत की कहानी को दर्शाता है, जिसमें राजा पालकी पर बैठे हैं और जड़ भरत एक ओर से पालकी को उठा रहे हैं। यह पारंपरिक भारतीय मिनिएचर कला शैली से प्रेरित है।

यह चित्र राजा रहूगण और जड़ भरत की कहानी को दर्शाता है, जिसमें राजा पालकी पर बैठे हैं और जड़ भरत एक ओर से पालकी को उठा रहे हैं। यह पारंपरिक भारतीय मिनिएचर कला शैली से प्रेरित है। 

 राजा रहूगण की कथा भागवत पुराण के पंचम स्कंध, अध्याय 10-13 में वर्णित है। यह कथा आत्मज्ञान, अहंकार के विनाश, और सच्चे वैराग्य का संदेश देती है। राजा रहूगण ने जड़ भरत के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया।

राजा रहूगण का परिचय

राजा रहूगण सुमति के पुत्र और सिंधु-सौवीर देश के राजा थे। वे धर्म और न्यायप्रिय राजा थे, लेकिन उन्हें अपने अधिकार और वैभव का गर्व था। एक दिन उनकी पालकी यात्रा के दौरान जड़ भरत से उनका सामना हुआ, जिसने उनके जीवन को बदल दिया।

राजा रहूगण और जड़ भरत का मिलन तथा जड़ भरत का पालकी ढोने वाला बनना

राजा रहूगण अपनी पालकी में यात्रा कर रहे थे। उनके पालकी ढोने वाले कम हो गए, तो सैनिकों ने जड़ भरत को पालकी उठाने के लिए मजबूर किया। जड़ भरत शरीर और संसार के मोह से मुक्त थे और सांसारिक कार्यों में रुचि नहीं रखते थे। लेकिन उन्होंने विरोध किए बिना पालकी उठाई।

जड़ भरत चलते समय चींटियों को बचाने के लिए बहुत सावधानी से पैर रखते थे, जिससे पालकी डगमगाने लगी। यह देखकर राजा रहूगण क्रोधित हो गए और जड़ भरत का अपमान किया।

श्लोक:
किं स्त्री भवानुत बहवोऽल्पपुण्या।
लोकं पुनन्त्येव गदेन भर्तुः।
यः पादयोरर्भकवत्स धृष्टः।
पाल्या रथं वाम्य इव स्वधर्मः।।
(भागवत पुराण 5.10.8)

भावार्थ:

राजा रहूगण ने कहा, "तुम्हारी चाल इतनी धीमी क्यों है? क्या तुम इतने कमजोर हो या तुमने अपने कर्तव्य का त्याग कर दिया है?"

जड़ भरत का उत्तर

जड़ भरत ने शांतिपूर्वक राजा रहूगण को आत्मज्ञान के माध्यम से उत्तर दिया। उन्होंने बताया कि शरीर और आत्मा अलग-अलग हैं, और अहंकार केवल अज्ञान का प्रतीक है।

श्लोक:

यस्त्वं रथं वक्ष्यसि कामजन्मा।

हंसः शरीरेण च देहमुर्व्याम्।

धर्मं च कार्यं स्वमतिं जनानां।

परं हि नित्यं स्वमयं न ज्ञातः।।

(भागवत पुराण 5.11.12)

भावार्थ:

जड़ भरत ने कहा, "हे राजा, तुम जो यह कह रहे हो कि मैं पालकी ढो रहा हूँ, यह सत्य नहीं है। शरीर एक वाहन है, और आत्मा शरीर से अलग है। अहंकार और अज्ञान ही यह सोचने पर मजबूर करता है कि शरीर कर्म कर रहा है।"

राजा रहूगण का अहंकार नष्ट होना

जड़ भरत के गहन आत्मज्ञान से भरे वचनों को सुनकर राजा रहूगण को अपने अज्ञान और अहंकार का एहसास हुआ। उन्होंने जड़ भरत से क्षमा मांगी और ज्ञान प्राप्त करने की प्रार्थना की।

 श्लोक:

अहो नु देवाद्भवदङ्घ्रिरेणुः।

शिरस्यभद्रं नृपते न क्षणोमे।

विज्ञापनं वै शमलाय बाले।

स्नेहं विचिच्छेद नृणामनीश्वरः।।

(भागवत पुराण 5.12.12)

भावार्थ:

राजा रहूगण ने कहा, "आपके चरणों की रज को मैं अपने सिर पर धारण करना चाहता हूँ। आपका ज्ञान मेरे अज्ञान को नष्ट कर चुका है। कृपया मुझे अपनी शरण में लें।"

जड़ भरत का उपदेश

जड़ भरत ने राजा रहूगण को आत्मा, संसार और भगवान के सत्य स्वरूप का ज्ञान दिया।

आत्मा और शरीर का भेद

श्लोक:

न देहमात्मा भवदीयपृष्ठ।

रथः स्वभावः स्वभवान्विभूतः।

गुणैर्न विक्षिप्तगुणेन चेताः।

परं हि यत्तन्मनसा विनश्येत्।।

(भागवत पुराण 5.11.13)

भावार्थ:

जड़ भरत ने समझाया, "यह शरीर नश्वर है और आत्मा शाश्वत है। संसार में जो कुछ भी हम देखते हैं, वह प्रकृति के गुणों का खेल है। आत्मा इन सबसे अछूती और शुद्ध है।"

वैराग्य का महत्व

 श्लोक:

न हि प्रभुः कर्मणि सज्जते वा।

न ते पदार्था गुणतोऽस्मृताः स्यात्।

मायां विना चात्मनि कार्यकार्यं।

ज्ञानं हि मुक्तिं स्वरूपेण निष्ठाम्।।

(भागवत पुराण 5.11.15)

भावार्थ:

उन्होंने बताया कि संसार में जो कुछ भी कर्म होते हैं, वे माया और प्रकृति के कारण होते हैं। आत्मा इनमें लिप्त नहीं होती। सच्चा ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है।

राजा रहूगण का आत्मज्ञान

राजा रहूगण ने जड़ भरत के उपदेशों को सुनकर आत्मज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने समझा कि संसार के भौतिक सुख-दुख अस्थायी हैं और सच्चा सुख आत्मा और भगवान की भक्ति में है।

राजा रहूगण का धन्यवाद

श्लोक:

नमस्ते ब्रह्मन् सदा लोकनाथ।

सदा विमुक्तं भवतामृतेन।

चिरं भवेत्कर्म बलेन भक्त्या।

यत्त्वां भजे वैकुण्ठमाहात्म्ययुक्तम्।।

(भागवत पुराण 5.13.24)

भावार्थ:

राजा रहूगण ने कहा, "हे महात्मा! मैं आपका आभारी हूँ कि आपने मुझे ज्ञान का अमृत दिया। मैं अब संसार के बंधनों से मुक्त होकर भगवान की भक्ति में लीन रहूँगा।"

कथा का संदेश

1. अहंकार का नाश: राजा रहूगण की कथा यह सिखाती है कि अहंकार आत्मज्ञान में सबसे बड़ी बाधा है।

2. आत्मा और शरीर का भेद: आत्मा शाश्वत और शुद्ध है, जबकि शरीर नश्वर है।

3. ज्ञान का महत्व: सच्चा ज्ञान ही संसार के बंधनों से मुक्त करता है।

4. वैराग्य और भक्ति: संसार के मोह से मुक्त होकर भगवान की भक्ति ही मनुष्य का परम लक्ष्य है।

निष्कर्ष

राजा रहूगण की कथा यह सिखाती है कि सच्चा ज्ञान और वैराग्य ही मनुष्य को जीवन के अंतिम उद्देश्य तक पहुँचाते हैं। जड़ भरत ने अपने तप और ज्ञान से राजा रहूगण को जीवन का सच्चा मार्ग दिखाया। यह कथा आत्मज्ञान और भक्ति की अद्वितीय प्रेरणा है।

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