भागवत पुराण में भूगोल और खगोल का वर्णन पंचम स्कंध

Sooraj Krishna Shastri
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भागवत पुराण के पंचम स्कंध से प्रेरित भव्य चित्रण, जिसमें वैदिक भूगोल और खगोलशास्त्र की दिव्य और विस्तृत व्याख्या दिखाई गई है। इसमें सृष्टि का केंद्र मेरु पर्वत, जम्बूद्वीप और स्वर्गीय लोकों की अलौकिक छवि सम्मिलित है।
भागवत पुराण के पंचम स्कंध से प्रेरित भव्य चित्रण, जिसमें वैदिक भूगोल और खगोलशास्त्र की दिव्य और विस्तृत व्याख्या दिखाई गई है। इसमें सृष्टि का केंद्र मेरु पर्वत, जम्बूद्वीप और स्वर्गीय लोकों की अलौकिक छवि सम्मिलित है।


 भागवत पुराण में भूगोल और खगोल का वर्णन पंचम स्कंध में विस्तारपूर्वक किया गया है। इसमें सृष्टि की संरचना, भौतिक और दैवीय जगत, पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र, और ब्रह्मांड के विभिन्न हिस्सों का विवरण दिया गया है। यह वर्णन आध्यात्मिक दृष्टिकोण से किया गया है और इसमें प्रतीकात्मकता का भी समावेश है।

भूगोल का वर्णन

भागवत पुराण के अनुसार, सृष्टि की रचना भगवान ब्रह्मा द्वारा की गई थी। पृथ्वी (भूमंडल) को सात द्वीपों और सात महासागरों में विभाजित किया गया है। इसे "भू-मंडल" कहा गया है।

भू-मंडल का वर्णन

1. जंबूद्वीप:

  • भू-मंडल का मध्य भाग है।
  • इसका क्षेत्रफल 1 लाख योजन है।
  • इसमें नौ खंड (वर्ष) हैं। मध्य में इलावृत वर्ष है, जहाँ सुमेरु पर्वत स्थित है।

2. सप्तद्वीप:

भू-मंडल में सात द्वीप हैं:

1. जंबूद्वीप

2. प्लक्षद्वीप

3. शाल्मलिद्वीप

4. कुशद्वीप

5. क्रौंचद्वीप

6. शाकद्वीप

7. पुष्करद्वीप

प्रत्येक द्वीप को महासागरों ने घेर रखा है। इन महासागरों में अलग-अलग प्रकार के जल (नमकीन, दूध, शराब, आदि) हैं।

3. सुमेरु पर्वत:

  • जंबूद्वीप के मध्य में स्थित है।
  • यह स्वर्णिम पर्वत है, जिसकी ऊँचाई 84,000 योजन है।
  • इसे सृष्टि का केंद्र और भगवान का निवास स्थान माना जाता है।

4. सप्त पर्वत:

  • जंबूद्वीप में सात प्रमुख पर्वत हैं, जो अलग-अलग क्षेत्रों को विभाजित करते हैं।

5. नदियाँ और वन:

  • विभिन्न नदियाँ (गंगा, सरस्वती आदि) और वन इस भू-मंडल को जीवनदायी बनाते हैं।

श्लोक:

भू-मंडलं सप्तद्वीपं सप्तसमुद्रं च ब्राह्मणाः।

जम्बू द्वीपं तस्य मध्यं सुमेरुं चैव कीर्तयेत्।।

(भागवत पुराण 5.16.6)

भावार्थ:

भू-मंडल में सात द्वीप और सात समुद्र हैं, और इनका केंद्र जंबूद्वीप तथा सुमेरु पर्वत है।

खगोल का वर्णन

  • भागवत पुराण में खगोल (आकाशीय संरचना) का वर्णन करते हुए ब्रह्मांड को "ब्रह्मांडीय अंड" (ब्रह्मांड अंड) के रूप में बताया गया है।

लोकों का वर्णन:

भागवत पुराण में कुल 14 लोकों का वर्णन है:

1. ऊर्ध्व लोक (सात स्वर्गीय लोक):

  1. सत्यलोक (ब्रह्मलोक): भगवान ब्रह्मा का निवास।
  2. तपलोक: तपस्वी ऋषियों का निवास।
  3. जनलोक: संत और सिद्ध आत्माओं का स्थान।
  4. महर्लोक: महान ऋषियों का स्थान।
  5. स्वर्गलोक: देवताओं का स्थान।
  6. भुवर्लोक: आकाशीय लोक।
  7. भूलोक: पृथ्वी (हमारा स्थान)।

2. अधोलोक (सात पाताल लोक):

अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।

श्लोक:

ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था मध्यमं रजसस्तथा।

जगन्यगुणवृत्तस्था अधो गच्छन्ति तामसाः।।

(भागवत पुराण 5.24.14)

भावार्थ:

सत्त्वगुण वाले ऊर्ध्व लोकों में जाते हैं, रजोगुण वाले भूलोक में रहते हैं, और तमोगुण वाले अधोलोकों में जाते हैं।

सूर्य, चंद्रमा और नक्षत्र

1. सूर्य:

  • सूर्य देवता को भगवान का एक नेत्र कहा गया है।
  • वे सप्ताश्वरथ पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं।

2. चंद्रमा:

  • चंद्रमा को औषधियों और वनस्पतियों का स्रोत माना गया है। 
  • इसे सोम देवता कहा गया है।

3. नक्षत्र मंडल और ग्रह:

  • नक्षत्र (तारामंडल) पृथ्वी के चारों ओर स्थित हैं।
  • प्रत्येक ग्रह को देवता माना गया है, जो अपनी-अपनी कक्षा में गति करते हैं।

कालनिर्णय और ब्रह्मांड की गति

1. काल का विभाजन:

  • 1 दिन और 1 रात ब्रह्मा के 1 दिन के बराबर है।
  • ब्रह्मा के 100 वर्षों के बाद ब्रह्मांड का प्रलय होता है।

2. ब्रह्मांड का चक्र:

  • ब्रह्मांड को चार युगों (सत्य, त्रेता, द्वापर, और कलियुग) में विभाजित किया गया है।

श्लोक:

त्रिस्कन्धैर्मण्डलं व्याप्तं सूर्यं चन्द्रमसोः सह।

ग्रहाणां तदधिष्ठानं ब्रह्माण्डं परिवर्तते।।

(भागवत पुराण 5.22.10)

भावार्थ:

सूर्य, चंद्रमा, और ग्रह अपने-अपने मार्ग पर चलते हुए ब्रह्मांड के चक्र को गति देते हैं।

ब्रह्मांड की संरचना

भागवत पुराण के अनुसार ब्रह्मांड में सात परतें हैं:

1. पृथ्वी (भूमि)।

2. जल।

3. अग्नि।

4. वायु।

5. आकाश।

6. महत्तत्व।

7. अहंकार।

ब्रह्मांड के बाहर परमधाम (वैष्णव लोक) स्थित है, जो भगवान विष्णु का निवास है।

कथा का महत्व

भागवत पुराण का भूगोल और खगोल वर्णन हमें ब्रह्मांडीय संरचना को एक दिव्य दृष्टिकोण से समझने में मदद करता है। यह सिखाता है:

1. संतुलन और समन्वय: ब्रह्मांड का हर भाग एक संतुलन और परस्पर संबंध में बंधा हुआ है।

2. आध्यात्मिक उद्देश्य: सभी लोक और सृष्टि भगवान की कृपा और उनके धाम तक पहुँचने के साधन हैं।

3. प्रकृति का सम्मान: सात द्वीप, सात महासागर, नदियाँ, और पर्वत प्रकृति की महत्ता को दर्शाते हैं।

निष्कर्ष

भागवत पुराण का भूगोल और खगोल वर्णन प्रतीकात्मक और आध्यात्मिक है। यह सृष्टि के निर्माण और उसके उद्देश्य को समझने में मदद करता है। यह ज्ञान हमें यह सिखाता है कि संसार केवल भौतिक नहीं है, बल्कि एक दिव्य योजना का हिस्सा है।


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