मन्त्र 5 (केन उपनिषद)

Sooraj Krishna Shastri
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मन्त्र 5 (केन उपनिषद) । यह रहा उच्च गुणवत्ता वाला चित्र, जिसमें केन उपनिषद के प्रश्नोत्तर दृश्य को दर्शाया गया है। ऋषि अपने शिष्य को ब्रह्म के गूढ़ तत्व समझा रहे हैं। यह दृश्य दिव्यता और गहन आध्यात्मिकता को दर्शाता है।

मन्त्र 5(केन उपनिषद) । यह रहा उच्च गुणवत्ता वाला चित्र, जिसमें केन उपनिषद के प्रश्नोत्तर दृश्य को दर्शाया गया है। ऋषि अपने शिष्य को ब्रह्म के गूढ़ तत्व समझा रहे हैं। यह दृश्य दिव्यता और गहन आध्यात्मिकता को दर्शाता है। 


मन्त्र 5 (केन उपनिषद)


मूल पाठ:
यद्वाचाऽनभ्युदितं येन वागभ्युद्यते।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥


शब्दार्थ:

  1. यत् वाचा अनभ्युदितं: जो वाणी से व्यक्त नहीं किया जा सकता।
  2. येन वाक् अभ्युद्यते: जिससे वाणी शक्ति प्राप्त करती है।
  3. तत् एव ब्रह्म त्वं विद्धि: वही ब्रह्म है, इसे जानो।
  4. न इदं यत् इदम् उपासते: यह नहीं, जिसकी लोग उपासना करते हैं (दृश्य या मूर्त रूप)।

अनुवाद:

जो वाणी से व्यक्त नहीं हो सकता, लेकिन जो वाणी को शक्ति प्रदान करता है, वही ब्रह्म है। इसे जानो। वह ब्रह्म नहीं है जिसकी उपासना दृश्य रूप में की जाती है।


व्याख्या:

1. ब्रह्म का स्वरूप:

  • यह मन्त्र बताता है कि ब्रह्म को वाणी द्वारा व्यक्त या वर्णित नहीं किया जा सकता।
  • वाणी (शब्द) ब्रह्म के प्रभाव से कार्य करती है, लेकिन ब्रह्म वाणी से परे है।

2. वाणी का माध्यम:

  • वाणी केवल एक उपकरण है, जो ब्रह्म की शक्ति से संचालित होती है।
  • जैसे दीपक के प्रकाश से वस्तु दिखती है, लेकिन वह दीपक वस्तु नहीं है, वैसे ही ब्रह्म वाणी के माध्यम से समझाया नहीं जा सकता।

3. दृश्य और अदृश्य का भेद:

  • ब्रह्म वह नहीं है जो मूर्त रूप में दिखाई देता है या जिसकी उपासना बाहरी रूप से की जाती है।
  • ब्रह्म निराकार और अज्ञेय है। इसे केवल आत्मिक अनुभव से जाना जा सकता है।

4. आत्मज्ञान की ओर संकेत:

  • ब्रह्म को जानने के लिए मनुष्य को वाणी, इंद्रियों, और तर्क से परे जाना होगा।
  • यह केवल ध्यान और आत्मचिंतन के माध्यम से संभव है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  1. सीमितता का सिद्धांत:

    • विज्ञान भी स्वीकार करता है कि भाषा और तर्क के माध्यम से ब्रह्मांड की सभी वास्तविकताओं को नहीं समझा जा सकता।
    • "डार्क मैटर" और "डार्क एनर्जी" जैसे विषय वैज्ञानिक समझ से परे हैं।
  2. अनिर्वचनीय सत्य:

    • यह मन्त्र उस सत्य को इंगित करता है जिसे भाषा या प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त नहीं किया जा सकता।
    • यह "क्वांटम यांत्रिकी" के सिद्धांतों से मेल खाता है, जहाँ किसी कण की स्थिति और गति का पूरी तरह वर्णन असंभव है।

आध्यात्मिक संदेश:

  1. भौतिकता से परे सत्य:

    • ब्रह्म को केवल भौतिक या बाहरी उपासना के माध्यम से नहीं समझा जा सकता।
  2. वाणी की सीमाएँ:

    • वाणी और तर्क ब्रह्म को समझाने में असमर्थ हैं।
    • ब्रह्म को केवल अनुभव और साधना के माध्यम से जाना जा सकता है।
  3. आत्मा की खोज:

    • यह मन्त्र आत्मा के भीतर छिपे ब्रह्म की ओर संकेत करता है, जिसे ध्यान और आत्मचिंतन से पहचाना जा सकता है।

आधुनिक संदर्भ में उपयोग:

  1. आत्मचिंतन का महत्व:

    • जीवन के गहरे सत्य को जानने के लिए बाहरी प्रतीकों और तर्क से परे जाकर आत्मचिंतन करना आवश्यक है।
  2. भौतिकता और आध्यात्मिकता का संतुलन:

    • भौतिक वस्तुओं की उपासना ब्रह्म का केवल आंशिक प्रतीक हो सकती है; असली सत्य आत्मा के भीतर है।
  3. अंतर्ज्ञान और अनुभव:

    • यह मन्त्र हमें सिखाता है कि जीवन के कुछ अनुभव शब्दों से परे होते हैं और उन्हें महसूस करना ही उनका वास्तविक ज्ञान है।

निष्कर्ष:

मन्त्र 5 यह सिखाता है कि ब्रह्म को वाणी या तर्क से समझा नहीं जा सकता। यह केवल वह शक्ति है जो वाणी और इंद्रियों को संचालित करती है। ब्रह्म को जानने के लिए ध्यान, आत्मचिंतन, और आंतरिक अनुभव का सहारा लेना चाहिए।

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