मन्त्र 6 (केन उपनिषद)

Sooraj Krishna Shastri
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मन्त्र 6 (केन उपनिषद) । यह रहा उच्च गुणवत्ता वाला चित्र, जिसमें केन उपनिषद के प्रश्नोत्तर दृश्य को दर्शाया गया है। ऋषि अपने शिष्य को ब्रह्म के गूढ़ तत्व समझा रहे हैं। यह दृश्य दिव्यता और गहन आध्यात्मिकता को दर्शाता है।

मन्त्र 6(केन उपनिषद) । यह रहा उच्च गुणवत्ता वाला चित्र, जिसमें केन उपनिषद के प्रश्नोत्तर दृश्य को दर्शाया गया है। ऋषि अपने शिष्य को ब्रह्म के गूढ़ तत्व समझा रहे हैं। यह दृश्य दिव्यता और गहन आध्यात्मिकता को दर्शाता है। 


मन्त्र 6 (केन उपनिषद)


मूल पाठ:
यन्मनसा न मनुते येनाहुर्मनो मतम्।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते॥


शब्दार्थ:

  1. यत् मनसा न मनुते: जिसे मन समझ नहीं सकता।
  2. येन आहुः मनः मतम्: जिसके द्वारा मन को समझने की शक्ति मिलती है।
  3. तत् एव ब्रह्म त्वं विद्धि: वही ब्रह्म है, इसे जानो।
  4. न इदं यत् इदम् उपासते: यह नहीं, जिसकी लोग दृश्य रूप में उपासना करते हैं।

अनुवाद:

जो मन से नहीं समझा जा सकता, लेकिन जो मन को समझने की शक्ति देता है, वही ब्रह्म है। इसे जानो। वह ब्रह्म नहीं है जिसकी उपासना बाहरी रूप में की जाती है।


व्याख्या:

1. मन की सीमाएँ:

  • यह मन्त्र स्पष्ट करता है कि मन, जो तर्क, विचार, और भावनाओं का केंद्र है, ब्रह्म को समझने में असमर्थ है।
  • ब्रह्म मन से परे है, लेकिन मन को अपनी शक्ति प्रदान करता है।

2. ब्रह्म की अज्ञेयता:

  • ब्रह्म वह शक्ति है जो मन और इंद्रियों को उनकी क्रियाओं के लिए प्रेरित करती है।
  • ब्रह्म को तर्क और विचार के माध्यम से नहीं जाना जा सकता।

3. अनुभव के माध्यम से ज्ञान:

  • ब्रह्म को जानने के लिए साधक को आत्मज्ञान और ध्यान का सहारा लेना चाहिए।
  • यह केवल आंतरिक अनुभव से समझा जा सकता है, न कि मानसिक अवधारणाओं से।

4. बाहरी उपासना से परे:

  • "न इदं यदिदम् उपासते" का अर्थ है कि ब्रह्म वह नहीं है जिसे लोग मूर्त रूप में पूजते हैं।
  • ब्रह्म निराकार, अज्ञेय, और अनुभवजन्य है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण:

  1. मस्तिष्क और चेतना का संबंध:

    • आधुनिक विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि मस्तिष्क (मन) चेतना के स्रोत को पूरी तरह से समझने में असमर्थ है।
    • यह मन्त्र चेतना के उस स्रोत (ब्रह्म) की ओर इशारा करता है।
  2. सीमितता का सिद्धांत:

    • जैसे "क्वांटम यांत्रिकी" में किसी कण की स्थिति और गति को पूरी तरह से नहीं मापा जा सकता, वैसे ही ब्रह्म को पूरी तरह समझा नहीं जा सकता।

आध्यात्मिक संदेश:

  1. मन से परे सत्य:

    • ब्रह्म को जानने के लिए मन और विचार से परे जाकर आत्मा के स्तर पर उसे अनुभव करना आवश्यक है।
  2. बाहरी और आंतरिक भेद:

    • बाहरी उपासना प्रतीकात्मक है; असली ब्रह्म का अनुभव आंतरिक साधना से होता है।
  3. आत्मा और ब्रह्म का संबंध:

    • मन को शक्ति प्रदान करने वाला ब्रह्म आत्मा के भीतर विद्यमान है। इसे जानने से मोक्ष प्राप्त होता है।

आधुनिक संदर्भ में उपयोग:

  1. आत्मचिंतन:

    • यह मन्त्र हमें सिखाता है कि मानसिक और बौद्धिक ज्ञान से परे आत्मचिंतन और ध्यान के माध्यम से सत्य को जानने का प्रयास करना चाहिए।
  2. आत्मा की खोज:

    • ब्रह्म बाहरी वस्तुओं या प्रतीकों में नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर पाया जा सकता है।
  3. सीमितता को स्वीकारना:

    • हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि मन और तर्क ब्रह्म के सत्य को पूरी तरह नहीं समझ सकते।

निष्कर्ष:

मन्त्र 6 यह सिखाता है कि ब्रह्म मन से परे है, लेकिन वही मन को उसकी शक्ति प्रदान करता है। इसे जानने के लिए आंतरिक अनुभव, ध्यान, और आत्मज्ञान आवश्यक है।

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