भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला, भागवत पुराण, दशम स्कंध

Sooraj Krishna Shastri
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भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला का यह यह चित्र जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को स्पष्ट रूप से गोवर्धन पर्वत को उनके सर के ऊपर उठाए हुए दिखाता है, जहाँ पर्वत का स्वरूप मुख्यतः चट्टानों और जड़ों के साथ उकेरा गया है।

भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला का यह यह चित्र जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को स्पष्ट रूप से गोवर्धन पर्वत को उनके सर के ऊपर उठाए हुए दिखाता है, जहाँ पर्वत का स्वरूप मुख्यतः चट्टानों और जड़ों के साथ उकेरा गया है।



 भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला, भागवत पुराण, दशम स्कंध

भगवान श्रीकृष्ण की गोवर्धन लीला श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में वर्णित है। यह लीला भगवान के दिव्य स्वरूप, उनके भक्तों की रक्षा के प्रति उनकी करुणा और प्रकृति के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। इस लीला में भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के घमंड को चूर किया और अपने भक्तों को अभय प्रदान किया।

कथा का विवरण:

1. गोकुलवासियों की इंद्र पूजा:

गोकुल में हर वर्ष इंद्र देव की पूजा की जाती थी। गोकुलवासी इंद्र को वर्षा का देवता मानकर उनकी कृपा से कृषि और पशुपालन को सफल मानते थे। इस पूजा के अंतर्गत वे इंद्र को विभिन्न प्रकार के पकवान, दूध, दही और अन्य सामग्री अर्पित करते थे।

2. श्रीकृष्ण का सुझाव:

बालक श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों से कहा कि हमें इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए। उन्होंने समझाया कि हमारी कृषि और पशुओं की समृद्धि गोवर्धन पर्वत, यमुना नदी और प्रकृति पर निर्भर है। भगवान ने गोकुलवासियों को यह सिखाया कि हमें प्रकृति की पूजा और संरक्षण करना चाहिए।

3. गोवर्धन पूजा का आयोजन:

गोकुलवासियों ने श्रीकृष्ण की बात मानकर इंद्र पूजा बंद कर दी और गोवर्धन पर्वत की पूजा का आयोजन किया। गोवर्धन के लिए अन्नकूट का विशाल भोग तैयार किया गया और ग्वालों ने पर्वत की परिक्रमा की।

4. इंद्र का क्रोध:

इंद्र इस बात से क्रोधित हो गए कि गोकुलवासियों ने उनकी पूजा करना बंद कर दिया। अपनी शक्ति और घमंड में इंद्र ने गोकुल पर भयंकर बारिश और तूफान भेजा। चारों ओर जलप्रलय जैसा दृश्य उत्पन्न हो गया, और गोकुलवासी भयभीत हो गए।

5. श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन धारण:

भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को आश्वस्त किया और अपनी दिव्य शक्ति से गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठा लिया। उन्होंने सात दिनों तक बिना रुके पर्वत को धारण किया और सभी गोकुलवासियों और उनके पशुओं को उसके नीचे सुरक्षित रखा।

श्लोक:

सप्ताहं वज्रधरस्य संवरं

जहार लीला पृथगीकृतं नभ:।

पयोद वारांस्युरुवेगवानिलं

तस्थौ धरां सन्निवृत्तं दिवौकसाम्॥

(श्रीमद्भागवत 10.25.18)

अर्थ: भगवान ने अपनी छोटी अंगुली से सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा और इंद्र की वर्षा और तूफान से गोकुलवासियों की रक्षा की।

6. इंद्र का अहंकार नष्ट:

इंद्र ने जब देखा कि उनकी प्रलयंकारी वर्षा भी श्रीकृष्ण को हिला नहीं पाई, तो उनका अहंकार नष्ट हो गया। वे समझ गए कि श्रीकृष्ण कोई साधारण बालक नहीं हैं, बल्कि साक्षात परमेश्वर हैं।

7. इंद्र का समर्पण:

इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। उन्होंने उनकी दिव्यता को स्वीकार करते हुए उनकी स्तुति की।

श्लोक:

कृष्ण कृष्ण महाभाग त्वमेकः शरणं नृणाम्।

देहि मे कृपया शान्तिं शरणं तव पादयोः॥

(श्रीमद्भागवत 10.27.4)

अर्थ: इंद्र ने श्रीकृष्ण से प्रार्थना की, "हे कृष्ण! आप ही सबके एकमात्र शरण हैं। कृपया मुझे क्षमा करें और अपनी करुणा प्रदान करें।"

गोवर्धन पूजा के महत्व का वर्णन:

भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पूजा के महत्व को बताते हुए कहा कि गोवर्धन पर्वत और प्रकृति की पूजा करने से हम सबकी रक्षा होती है। उन्होंने गोवर्धन पर्वत को साक्षात अपने स्वरूप में प्रकट कर भक्तों को आशीर्वाद दिया।

 श्लोक:

एवं विभौ सत्यवचस्युक्थविप्र

शास्त्रादिषु द्विजगवां प्रभवे च।

ते तद्वचो मानयन्तोऽतिविस्मिताः

चक्रुर्मुदा धर्मगिरौ महान्नम्॥

(श्रीमद्भागवत 10.24.36)

अर्थ: श्रीकृष्ण ने गोकुलवासियों को धर्म और प्रकृति की पूजा का महत्व समझाया और उन्हें गोवर्धन पर्वत की महिमा बताई।

लीला का आध्यात्मिक संदेश:

1. अहंकार का नाश: इंद्र का घमंड नष्ट कर भगवान ने यह सिखाया कि परमात्मा के सामने किसी भी प्रकार का अहंकार टिक नहीं सकता।

2. प्रकृति का सम्मान: गोवर्धन लीला हमें सिखाती है कि हमें प्रकृति और पर्यावरण का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि यह हमारी समृद्धि और जीवन का आधार है।

3. संकट में शरण: जब भी भक्त किसी संकट में होते हैं, भगवान उनकी रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। गोकुलवासियों ने श्रीकृष्ण की शरण में आकर सुरक्षा प्राप्त की।

4. भक्ति का महत्व: गोवर्धन पूजा के माध्यम से भगवान ने यह संदेश दिया कि सच्ची भक्ति में दिखावे की पूजा का स्थान नहीं है। भगवान केवल सरल और निष्कपट भक्ति को स्वीकार करते हैं।

निष्कर्ष:

गोवर्धन लीला भगवान श्रीकृष्ण की दिव्यता और उनकी भक्ति के प्रति करुणा का प्रतीक है। इस कथा में भगवान ने प्रकृति के महत्व को समझाते हुए इंद्र के घमंड को समाप्त किया और अपने भक्तों को यह सिखाया कि सच्ची भक्ति से ही भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है। गोवर्धन पूजा आज भी इस लीला की स्मृति में दीपावली के दूसरे दिन मनाई जाती है।


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