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कहानी:"ब्लू टिक के पार" |
कहानी:"ब्लू टिक के पार"
रात के दस बज रहे थे। विशाल अपने कमरे में बैठा मोबाइल स्क्रॉल कर रहा था। व्हाट्सएप पर ढेरों चैट्स खुली पड़ी थीं, लेकिन किसी का जवाब देने का मन नहीं था। वह रोज़ की तरह स्टोरीज़ देखता, मीम्स पर हंसता और फिर स्क्रीन लॉक कर देता।
"रिश्ते निभाना अब बस औपचारिकता बनकर रह गया है," यह सोचते हुए वह तकिए पर सिर रखकर लेट गया। तभी एक मैसेज आया—
"बेटा, कैसी तबीयत है? खाना खा लिया?"
यह उसकी माँ का मैसेज था। विशाल ने देखा, मैसेज के नीचे दो ब्लू टिक आ चुके थे, लेकिन उसने जवाब नहीं दिया। "कल बात कर लूंगा," यह सोचकर उसने फोन साइड में रख दिया और सो गया।
एक सुबह जो बदल गई
अगली सुबह जब विशाल उठा, तो मोबाइल पर ढेर सारे मैसेज थे। कुछ दोस्तों के मीम्स थे, ऑफिस के मेल्स थे, लेकिन एक मैसेज देखकर उसका दिल कांप गया—
"बेटा, माँ की तबीयत बहुत खराब है, हॉस्पिटल ले जा रहे हैं। जल्दी आओ।"
मैसेज रात के तीन बजे आया था, और वह अब सुबह आठ बजे देख रहा था। घबराकर उसने फोन उठाया और पापा को कॉल किया। उधर से रुंधी हुई आवाज़ आई—
"बेटा, माँ अब नहीं रही..."
वह हर बार मैसेज पढ़कर ब्लू टिक छोड़ देता था।
लेकिन आज... माँ के मैसेज कभी नहीं आएंगे।
रिश्ते स्क्रीन से नहीं, दिल से निभाइए
उस दिन विशाल ने समझ लिया कि रिश्ते सिर्फ ऑनलाइन नहीं निभाए जाते। उसने फोन उठाया और सबसे पहले अपनी बहन को कॉल किया। फिर अपने पुराने दोस्तों को। और सबसे महत्वपूर्ण—उसने अपनी माँ के नंबर को अब भी डिलीट नहीं किया।
क्योंकि उस नंबर में सिर्फ अंक नहीं, प्यार था।
"ब्लू टिक के पार भी एक दुनिया होती है—जहाँ सिर्फ प्यार, परवाह और अपनापन बसता है।"