Chhatrapati Sambhaji: कैसे लिया धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का प्रतिशोध?

Sooraj Krishna Shastri
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Chhatrapati Sambhaji: कैसे लिया धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का प्रतिशोध?
Chhatrapati Sambhaji: कैसे लिया धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का प्रतिशोध? 

Chhatrapati Sambhaji: कैसे लिया धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का प्रतिशोध? 


संभाजी महाराज की क्रूर हत्या और मराठों का संकल्प

छत्रपति संभाजी महाराज को औरंगजेब ने 40 दिनों तक अमानवीय यातनाएं देकर क्रूरतापूर्वक मार दिया। इस निर्मम हत्या ने मराठों के हृदय में ज्वाला प्रज्वलित कर दी। सभी मतभेद भुलाकर मराठों ने एकमात्र लक्ष्य निर्धारित किया—औरंगजेब का सर्वनाश।


संभाजी महाराज की वीरगति और युद्ध की ज्वाला

जब संगमेश्वर के किले में संभाजी महाराज 200 वीरों के साथ मुगल सेनापति मुकर्रम खान की 10,000 की सेना से युद्ध कर रहे थे, तब उनके साथ माल्होजी घोरपड़े भी लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। माल्होजी के पुत्र संताजी घोरपड़े ने अपने युद्ध अभियानों से औरंगजेब को हिला डाला। उनके साथ धना जी जाधव भी थे, जिन्होंने औरंगजेब को भयभीत कर दिया।


तुलापुर में मराठों का प्रचंड आक्रमण

औरंगजेब ने समझा था कि संभाजी महाराज की मृत्यु से मराठों का मनोबल टूट जाएगा, परंतु जब तुलापुर में संताजी घोरपड़े और धना जी जाधव ने हमला बोला, तब मुगलों के लिए यह घातक सिद्ध हुआ। 2,000 मराठा सैनिकों ने मुगल शिविर पर गाजर-मूली की तरह मुगलों को काट डाला। इतिहासकार काफी खान के अनुसार, इस युद्ध के बाद संताजी की दहशत मुगल सेना में बैठ गई थी। मराठों के आक्रमण से औरंगजेब की सेना में भगदड़ मच गई, और वह अपनी जान बचाकर भागने को विवश हो गया। मराठों ने मुगल कैंप से दो सोने के कलश काटकर सिंहगढ़ किले में स्थापित किए।


रायगढ़ पर पुनः मराठों का अधिकार

इस विजय के दो दिन बाद संताजी घोरपड़े ने रायगढ़ किले पर आक्रमण किया, जिसे मुगल सेनापति जुल्फिकार खान ने घेर रखा था। मराठों ने इस सेना को भी ध्वस्त कर दिया और मुगलों का बहुमूल्य खजाना लूटकर पन्हाला ले आए।


मुकर्रम खान का संहार

मुकर्रम खान, जिसने छलपूर्वक संभाजी महाराज को बंदी बनाया था, उसे औरंगजेब ने महाराष्ट्र के कोल्हापुर और कोंकण का सूबेदार नियुक्त किया। मराठों ने प्रण लिया कि उसे जीवित नहीं छोड़ेंगे। दिसंबर 1689 में संताजी घोरपड़े के नेतृत्व में मराठों ने मुकर्रम खान की विशाल सेना को घेरकर ध्वस्त कर दिया। इस युद्ध में संताजी ने मुकर्रम खान को दौड़ा-दौड़ाकर मारा। मुगल सेना उसे जंगल में लेकर भागी, लेकिन मराठों द्वारा दिए गए घावों से वह वहीं तड़प-तड़पकर मर गया।


मराठों का प्रतिशोध और मुगल साम्राज्य की पराजय

इस विजय के बाद 1691 में छत्रपति राजाराम महाराज ने संताजी घोरपड़े को मराठा साम्राज्य का सरसेनापति घोषित किया। संताजी ने अपने नेतृत्व में मराठा सेना के साथ कर्नाटक एवं कृष्णा नदी पार के क्षेत्रों में मुगल सल्तनत को ध्वस्त कर दिया। औरंगजेब को 27 वर्षों तक मराठों ने इतना परेशान किया कि वह सह्याद्रि पर्वतों में इधर-उधर भागता रहा। अंततः महाराष्ट्र की भूमि में ही तड़प-तड़प कर उसकी मृत्यु हो गई।


निष्कर्ष

मराठों के पराक्रम, रणनीति और गुरिल्ला युद्ध नीति ने औरंगजेब को घुटनों पर ला दिया। छत्रपति संभाजी महाराज की वीरगति का प्रतिशोध मराठों ने असाधारण वीरता से लिया और मुगल साम्राज्य को कमजोर कर दिया। यह युद्ध मराठा शक्ति के अभूतपूर्व उत्कर्ष का प्रतीक बना और भारतीय इतिहास में वीरता एवं प्रतिशोध का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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