संस्कृत श्लोक: "गुणैरुत्तुङ्गतां याति" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "गुणैरुत्तुङ्गतां याति" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "गुणैरुत्तुङ्गतां याति" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "गुणैरुत्तुङ्गतां याति" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

श्लोक:

गुणैरुत्तुङ्गतां याति नोच्चैरासनसंस्थितः |
प्रासादशिखरारूढः काकः किं गरुडायते ||

शब्दार्थ:

गुणैः – गुणों के द्वारा
उत्तुङ्गतां – ऊँचाई, महानता
याति – प्राप्त करता है
– नहीं
उच्चैः – ऊँचाई से
आसनसंस्थितः – ऊँचे आसन (सिंहासन) पर स्थित
प्रासादशिखरारूढः – महल के शिखर पर चढ़ा हुआ
काकः – कौआ
किं – क्या?
गरुडायते – गरुड़ बन जाता है?

हिन्दी अनुवाद:

मनुष्य की महानता उसके गुणों से होती है, न कि केवल ऊँचे पद या सिंहासन पर बैठने से। जैसे राजमहल के शिखर पर बैठ जाने से कोई कौआ गरुड़ नहीं बन जाता।

भावार्थ:

यह श्लोक हमें सिखाता है कि सच्ची श्रेष्ठता और सम्मान व्यक्ति की स्थिति, पद, या बाहरी वैभव से नहीं, बल्कि उसके सद्गुणों, ज्ञान और आचरण से होती है। जैसे यदि कोई कौआ महल के शिखर पर जाकर बैठ जाए, तो भी वह गरुड़ के समान नहीं हो सकता, वैसे ही केवल ऊँचे पद पर आसीन होने से कोई व्यक्ति महान नहीं बन जाता।

वास्तविक प्रतिष्ठा और सम्मान का आधार आंतरिक गुण होते हैं, न कि बाहरी दिखावा। हमें पद और प्रतिष्ठा की ऊँचाई के बजाय अपने गुणों को विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए।

मुख्य बिंदु:

  1. गुणों का महत्व:
    यदि कोई व्यक्ति सच्चे सद्गुणों, ज्ञान, और नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण है, तो ही वह समाज में वास्तविक सम्मान प्राप्त करता है। सिर्फ किसी ऊँचे सिंहासन या बड़े पद पर बैठने से कोई महान नहीं बन जाता।

  2. उदाहरण - कौआ और गरुड़:
    इस श्लोक में एक सुंदर उपमा दी गई है – यदि कोई कौआ महल के शिखर पर जाकर बैठ जाए, तो भी वह गरुड़ के समान नहीं हो सकता। गरुड़ देवता का वाहन है, उसकी विशेषता, शक्ति, और महिमा उसके गुणों के कारण है, न कि केवल ऊँचाई पर उड़ने या बैठने से। इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति किसी ऊँचे पद पर पहुँच भी जाए, परंतु उसमें योग्य गुण नहीं हों, तो वह श्रेष्ठ नहीं माना जाएगा।

  3. समाज में इसका प्रभाव:
    आज के समय में लोग बाहरी सफलता, बड़े पद, और ऊँचे स्थान को ही सफलता का मापदंड मान लेते हैं। लेकिन यदि उस व्यक्ति में अच्छे गुण, नैतिकता, और ज्ञान का अभाव हो, तो उसकी ऊँचाई व्यर्थ है। केवल अधिकार, धन, या ऊँचे पद से सम्मान नहीं मिलता, बल्कि व्यक्ति का आचरण, सद्गुण और सेवा भावना ही उसे वास्तविक सम्मान दिलाती है।

  4. आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता:
    यह श्लोक हमें आत्ममूल्यांकन करने के लिए प्रेरित करता है। हमें यह देखना चाहिए कि हम केवल ऊँचा पद पाने की दौड़ में तो नहीं लगे हुए, बिना अपने गुणों को विकसित किए? यदि हम सच्चे गुणों को अपनाते हैं, तो हम किसी भी स्थिति में रहते हुए सम्मान और प्रतिष्ठा पा सकते हैं।


उदाहरणों द्वारा स्पष्टीकरण:

रामायण में भगवान श्रीराम – उन्होंने अपना राज्य छोड़कर वनवास स्वीकार किया, परंतु उनके उच्च आदर्शों और सद्गुणों के कारण वे संपूर्ण विश्व में पूजनीय हैं।

महाभारत में विदुर – वे धृतराष्ट्र के मंत्री थे, परंतु राजमहल में होते हुए भी साधारण जीवन जीते थे। फिर भी उनके ज्ञान और नीति की सराहना की जाती है।

आधुनिक उदाहरण - महात्मा गांधी – वे किसी बड़े पद पर नहीं थे, परंतु उनके गुणों और सिद्धांतों ने उन्हें महान बना दिया।


निष्कर्ष:

यह श्लोक हमें सिखाता है कि जीवन में केवल बाहरी उपलब्धियों या ऊँचे स्थान को ही लक्ष्य न बनाएं, बल्कि अपने गुणों, ज्ञान और आचरण को ऊँचा बनाएं। "पद से नहीं, गुणों से महानता मिलती है।"

श्लोक का संदेश:

श्रेष्ठता गुणों से होती है, न कि ऊँचे स्थान से।
केवल ऊँचे पद पर बैठने से कोई सम्माननीय नहीं बनता।
सद्गुण, ज्ञान, और आचरण ही व्यक्ति की असली पहचान हैं।

यह श्लोक जीवन में सच्ची सफलता और आदर्श जीवन की ओर प्रेरित करता है। 🙏

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