HOLI 2025: होली का पौराणिक महत्व और घटनाएं

Sooraj Krishna Shastri
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HOLI 2025: होली का पौराणिक महत्व और घटनाएं
HOLI 2025: होली का पौराणिक महत्व और घटनाएं

HOLI 2025: होली का पौराणिक महत्व और घटनाएं

होली का पौराणिक महत्व मुख्य रूप से भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु की कथा से जुड़ा है, जिसमें भक्ति की विजय और अहंकार के नाश का संदेश मिलता है।

1. प्रह्लाद, हिरण्यकशिपु और होलिका की कथा

हिरण्यकशिपु, एक असुर राजा, जिसने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से अजेयता का वरदान प्राप्त किया था, स्वयं को ईश्वर मानने लगा। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था। हिरण्यकशिपु ने उसे विष्णु-भक्ति से विमुख करने के कई प्रयास किए, किंतु असफल रहा।

अंततः, उसने अपनी बहन होलिका (जिसे वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी) से प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने के लिए कहा। लेकिन भगवान की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और स्वयं होलिका भस्म हो गई। इसी घटना की स्मृति में होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।

2. भगवान कृष्ण और गोपियों की लीला

ब्रज में होली का विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी सखियों और गोपियों के साथ रंगों की होली खेली। बाल्यकाल में कृष्ण ने यशोदा मैया से प्रश्न किया कि उनका रंग सांवला क्यों है और राधा गोरी क्यों? इस पर माता ने हंसकर कहा कि वे राधा को अपने मनचाहे रंग में रंग सकते हैं। तभी से ब्रज में रंगों की होली की परंपरा प्रारंभ हुई।

3. कामदेव और शिव की कथा

एक अन्य कथा के अनुसार, जब माता पार्वती भगवान शिव को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रही थीं, तब शिव गहरे ध्यान में लीन थे। देवताओं की प्रार्थना पर कामदेव ने अपना पुष्प-बाण चलाकर शिवजी का ध्यान भंग किया। शिवजी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया। बाद में, उनकी पत्नी रति के विलाप और प्रार्थना से प्रसन्न होकर शिव ने कामदेव को अनदेखे रूप में पुनर्जीवित किया। यह घटना वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक बनी और फाल्गुन पूर्णिमा को होली के रूप में मनाने की परंपरा विकसित हुई।

पौराणिक संदेश

  • भक्ति और सत्य की जीत – प्रह्लाद की भक्ति ने सिद्ध किया कि सच्ची आस्था को कोई डिगा नहीं सकता।
  • बुराई का अंत – होलिका दहन बुरे कर्मों और अहंकार के विनाश का प्रतीक है।
  • प्रेम और आनंद का उत्सव – कृष्ण और राधा की होली प्रेम, उल्लास और सामाजिक सौहार्द्र का प्रतीक है।
  • नवजीवन और वसंत का स्वागत – कामदेव की कथा के अनुसार, यह पर्व जीवन में नई उमंग और प्रकृति के नवजीवन का द्योतक है।

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