हनुमान जी द्वारा सूर्य को निगलने की कथा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण

Sooraj Krishna Shastri
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हनुमान जी द्वारा सूर्य को निगलने की कथा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण
हनुमान जी द्वारा सूर्य को निगलने की कथा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण


हनुमान जी द्वारा सूर्य को निगलने की कथा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण

परिचय

हनुमान जी की बाल्यावस्था में उनकी शक्ति असीमित थी। एक दिन उन्होंने उदय होते सूर्य को एक मीठा फल समझकर पकड़ने की कोशिश की। इस घटना का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा में मिलता है—

"जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।"

इस कथा को केवल एक पौराणिक प्रसंग मानना उचित नहीं होगा। यह हमारे ग्रंथों में वर्णित सिद्धांतों और आधुनिक विज्ञान के बीच संवाद का विषय भी बन सकता है।


1. हनुमान जी की अद्भुत शक्तियाँ

हनुमान जी को विभिन्न वरदान प्राप्त थे। वे अष्ट सिद्धियों और नौ निधियों के स्वामी थे, जिनमें से कुछ प्रमुख सिद्धियाँ इस प्रकार हैं—

  1. अणिमा – शरीर को सूक्ष्म कर लेना
  2. लघिमा – भारहीन हो जाना
  3. महिमा – शरीर को विशाल बना लेना
  4. गरिमा – शरीर को भारी बना लेना
  5. प्राकाम्य – इच्छानुसार रूप धारण करना
  6. ईशित्व – सृष्टि पर नियंत्रण
  7. वशित्व – दूसरों पर विजय प्राप्त करना
  8. कामावसायिता – इच्छानुसार वस्तु प्राप्त करना

हनुमान जी ने इन्हीं सिद्धियों का प्रयोग कर सूर्य तक जाने का प्रयास किया।


2. सूर्य तक हनुमान जी की यात्रा: एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

(क) लघिमा सिद्धि और प्रकाश की गति

भौतिकी के अनुसार, कोई भी वस्तु यदि भारहीन हो जाए और उसके ऊपर कोई गुरुत्वाकर्षण बल कार्य न करे, तो वह प्रकाश की गति से यात्रा कर सकती है।

  • आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश की गति केवल उन्हीं कणों के लिए संभव है जिनका द्रव्यमान शून्य होता है।
  • हनुमान जी ने अपनी लघिमा सिद्धि का प्रयोग करके अपने शरीर को इतना सूक्ष्म कर लिया कि उन पर गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव नहीं पड़ा और वे सूर्य तक पहुँचने में सक्षम हुए।

(ख) महिमा सिद्धि और विशाल आकार

हनुमान जी ने अपनी महिमा सिद्धि का उपयोग कर अपने शरीर को इतना बड़ा कर लिया कि सूर्य उनके लिए एक फल के समान प्रतीत हुआ।

(ग) ब्लैक होल सिद्धांत

आधुनिक विज्ञान के अनुसार, ब्लैक होल सूर्य से कई गुना बड़े पिंडों को भी निगल सकते हैं।

  • हनुमान जी यदि ब्रह्माण्डीय शक्तियों से युक्त थे, तो वे अपनी किसी दिव्य शक्ति से ऐसा कर सकते थे।
  • यह कथा हमें यह भी संकेत देती है कि हमारी संस्कृति में ब्रह्माण्डीय घटनाओं की गहरी समझ थी।

3. हनुमान चालीसा में खगोलीय गणना

नासा के अनुसार, सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 149.6 मिलियन किलोमीटर है।

"जुग सहस्त्र योजन पर भानू।"

  • 1 युग = 12,000 वर्ष
  • 1 सहस्त्र = 1,000
  • 1 योजन = लगभग 12.8 किलोमीटर

=> 12,000 × 1,000 × 12.8 = 153.6 मिलियन किलोमीटर

यह दूरी आधुनिक गणनाओं से काफी मेल खाती है, जो यह दर्शाता है कि हमारी प्राचीन संस्कृति में खगोलशास्त्र की गहरी समझ थी।


4. क्या विज्ञान सबकुछ समझ चुका है?

इतिहास गवाह है कि विज्ञान जिन बातों को पहले असंभव मानता था, वे धीरे-धीरे संभव होती गईं—

  • 70-80 वर्ष पहले अंतरिक्ष यात्रा असंभव मानी जाती थी।
  • 40-50 वर्ष पहले कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि हम कुछ ही घंटों में हजारों किलोमीटर का सफर तय कर सकते हैं।
  • 20-30 वर्ष पहले मोबाइल पर लंबी दूरी की बातचीत भी चमत्कार लगती थी।
  • 15-20 वर्ष पहले वीडियो कॉलिंग केवल कल्पना थी।
  • आज वैज्ञानिक लाइट स्पीड ट्रैवल पर शोध कर रहे हैं।

इसी प्रकार, हो सकता है कि भविष्य में विज्ञान हमारे शास्त्रों में वर्णित घटनाओं की सत्यता को प्रमाणित कर सके।


5. निष्कर्ष

हमारी संस्कृति केवल कथाओं और दंतकथाओं पर आधारित नहीं है, बल्कि गहन विज्ञान और गणनाओं से युक्त है।

  • विज्ञान अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, जबकि हमारी संस्कृति हजारों वर्षों से ब्रह्माण्डीय रहस्यों को जानती रही है।
  • हनुमान जी की यह कथा सिर्फ एक प्रतीकात्मक कथा नहीं बल्कि उनके दिव्य गुणों और ब्रह्माण्डीय सिद्धांतों का वर्णन है।
  • हमारी संस्कृति को अंधविश्वास मानकर खारिज करना उचित नहीं है।

अतः हमें अपनी संस्कृति को विज्ञान के समकक्ष रखकर अध्ययन करना चाहिए, न कि इसे केवल कल्पना समझकर उपेक्षित करना चाहिए।

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