संस्कृत श्लोक: "रत्नाकरः किं कुरुते स्वरत्नैः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "रत्नाकरः किं कुरुते स्वरत्नैः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "रत्नाकरः किं कुरुते स्वरत्नैः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "रत्नाकरः किं कुरुते स्वरत्नैः" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

श्लोक:
रत्नाकरः किं कुरुते स्वरत्नैः
विन्ध्याचलः किं करिभिः करोति।
श्रीखण्डखण्डैः मलयाचलः किं
परोपकाराय सतां विभूतयः॥

अर्थ:
समुद्र अपने भीतर के रत्नों का स्वयं क्या करता है? विंध्याचल पर्वत अपने यहाँ रहने वाले हाथियों का क्या करता है? मलयाचल पर्वत अपने चंदन के वृक्षों का स्वयं क्या करता है? वास्तव में, सत्पुरुषों की सम्पत्ति सदा परोपकार के लिए होती है।


शाब्दिक विश्लेषण

  1. रत्नाकरः – समुद्र (रत्नों का भंडार)
  2. किं कुरुते – क्या करता है?
  3. स्वरत्नैः – अपने रत्नों से (तृतीया विभक्ति)
  4. विन्ध्याचलः – विंध्य पर्वत
  5. किं करिभिः करोति – हाथियों के साथ क्या करता है?
  6. श्रीखण्डखण्डैः – चंदन के टुकड़ों से (तृतीया विभक्ति)
  7. मलयाचलः – मलय पर्वत (जहाँ चंदन के वृक्ष होते हैं)
  8. परोपकाराय – परोपकार के लिए (चतुर्थी विभक्ति)
  9. सतां विभूतयः – सत्पुरुषों की विभूतियाँ (सम्पत्तियाँ)

व्याकरणीय विश्लेषण

  • रत्नाकरः, विन्ध्याचलः, मलयाचलः – कर्ता (प्रथमा विभक्ति, एकवचन)।
  • किं कुरुते, किं करोति – प्रश्नवाचक क्रिया (लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन)।
  • स्वरत्नैः, करिभिः, श्रीखण्डखण्डैः – तृतीया विभक्ति, बहुवचन (करण कारक)।
  • सतां विभूतयः – षष्ठी विभक्ति (सत्पुरुषों की संपत्तियाँ)।
  • परोपकाराय – चतुर्थी विभक्ति (परोपकार के लिए)।

आधुनिक संदर्भ में व्याख्या

यह श्लोक हमें परोपकार और उदारता का महत्व सिखाता है। सत्पुरुष अपने संसाधनों को केवल स्वयं के लिए नहीं रखते, बल्कि समाज के कल्याण में लगाते हैं।

  1. व्यक्तिगत जीवन में:

    • जो व्यक्ति ज्ञान, धन, या शक्ति प्राप्त करता है, उसकी महानता तभी सिद्ध होती है जब वह इसे दूसरों के हित में उपयोग करता है।
    • केवल संग्रह करने का कोई महत्व नहीं; सच्चा मूल्य तभी है जब उसका सही उपयोग किया जाए।
  2. नेतृत्व एवं समाज सेवा में:

    • एक सच्चा नेता वही है जो अपनी शक्तियों और संसाधनों का उपयोग समाज की भलाई के लिए करता है।
    • संपत्ति, ज्ञान और शक्ति का सही उपयोग परोपकार में ही होता है।
  3. नीतिशास्त्र में:

    • केवल अपने लिए जीने वाला व्यक्ति संकुचित सोच का होता है।
    • जैसे समुद्र अपने रत्नों को स्वयं धारण नहीं करता, वैसे ही महान व्यक्ति अपनी संपत्ति को समाज की भलाई के लिए लगाते हैं।

संक्षिप्त निष्कर्ष

संपत्ति और संसाधन केवल अपने लिए नहीं होते, बल्कि उनका श्रेष्ठ उपयोग परोपकार में है। सच्ची महानता उसी की है जो अपने गुणों, ज्ञान और संसाधनों से दूसरों का कल्याण करता है।

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