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संस्कृत श्लोक: "परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक:
परोपदेशे पाण्डित्यं सर्वेषां सुकरं नृणाम्।
धर्मे स्वीयमनुष्ठानं कस्यचित् तु महात्मनः॥
अर्थ:
दूसरों को उपदेश देना सभी मनुष्यों के लिए बहुत आसान है, लेकिन अपने स्वयं के धर्म (कर्तव्य) का पालन करना केवल किसी महात्मा के लिए ही संभव होता है।
शाब्दिक विश्लेषण
- परोपदेशे – दूसरों को उपदेश देने में (सप्तमी विभक्ति)
- पाण्डित्यं – विद्वत्ता, ज्ञान
- सर्वेषां – सभी के लिए (षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
- सुकरं – बहुत आसान
- नृणाम् – मनुष्यों के लिए (षष्ठी विभक्ति बहुवचन)
- धर्मे – धर्म (कर्तव्य) में (सप्तमी विभक्ति)
- स्वीयमनुष्ठानं – अपने स्वयं के आचरण (कर्तव्य पालन)
- कस्यचित् – किसी-किसी के लिए (अनियत सर्वनाम)
- तु – किन्तु (विरोधार्थक अव्यय)
- महात्मनः – महात्मा के लिए (षष्ठी विभक्ति)
व्याकरणीय विश्लेषण
- परोपदेशे – सप्तमी विभक्ति, एकवचन (दूसरों को उपदेश देने में)।
- पाण्डित्यं – नपुंसकलिंग, द्वितीया विभक्ति, एकवचन (विद्वत्ता, ज्ञान)।
- सर्वेषां नृणाम् – षष्ठी विभक्ति, बहुवचन (सभी मनुष्यों के लिए)।
- धर्मे – सप्तमी विभक्ति, एकवचन (धर्म में)।
- स्वीयमनुष्ठानं – द्वितीया विभक्ति, एकवचन (स्वयं का आचरण)।
- कस्यचित् – षष्ठी विभक्ति, एकवचन (किसी-किसी के लिए)।
- महात्मनः – षष्ठी विभक्ति, एकवचन (महात्मा के लिए)।
आधुनिक संदर्भ में व्याख्या
यह श्लोक मानव स्वभाव की एक सामान्य प्रवृत्ति को उजागर करता है—दूसरों को सलाह देना आसान है, लेकिन खुद अपने जीवन में उन्हीं सिद्धांतों का पालन करना कठिन होता है।
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व्यक्तिगत जीवन में:
- बहुत से लोग दूसरों को नैतिकता, संयम, और आदर्शों की शिक्षा देते हैं, लेकिन स्वयं उनका पालन नहीं करते।
- अपने जीवन में अनुशासन और कर्तव्य-परायणता बनाए रखना ही सच्ची महानता है।
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समाज एवं नेतृत्व में:
- नेताओं और शिक्षकों को केवल उपदेश देने के बजाय अपने आचरण से उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
- एक सच्चा नेता वही है जो जिस सिद्धांत की बात करता है, उसे अपने जीवन में अपनाता भी है।
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नीतिशास्त्र में:
- जीवन में केवल ज्ञान या भाषण पर्याप्त नहीं है, आचरण ही व्यक्ति की वास्तविक पहचान होती है।
- जो लोग अपने स्वयं के कर्तव्यों को निभाने में सक्षम होते हैं, वही सच्चे महात्मा होते हैं।
संक्षिप्त निष्कर्ष
यह श्लोक हमें सिखाता है कि दूसरों को सीख देना आसान है, लेकिन सच्ची महानता अपने स्वयं के कर्तव्यों का पालन करने में निहित है। महापुरुष वही होते हैं जो अपने उपदेशों को अपने आचरण में उतारते हैं।