संस्कृत श्लोक: "उद्यच्छेदेव न नमेत् उद्यमो ह्येव पौरुषम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "उद्यच्छेदेव न  नमेत् उद्यमो ह्येव पौरुषम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "उद्यच्छेदेव न नमेत् उद्यमो ह्येव पौरुषम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

 

संस्कृत श्लोक: "उद्यच्छेदेव न नमेत् उद्यमो ह्येव पौरुषम्" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

श्लोक:

उद्यच्छेदेव न नमेत्
उद्यमो ह्येव पौरुषम्।
अप्यपर्वणि भज्येत
न नमेदिह कर्हिचित्॥
(महाभारत, उद्योग पर्व - १२७/१९)


हिन्दी अनुवाद:

वीर पुरुष को सदैव परिश्रमशील रहना चाहिए और किसी के भी समक्ष सिर नहीं झुकाना चाहिए, क्योंकि सतत उद्योग करना ही पुरुषार्थ (सच्चा पुरुषत्व) है। वीर पुरुष प्रतिकूल परिस्थितियों में नष्ट तो हो सकता है, लेकिन वह कभी भी नतमस्तक नहीं होता और न ही अपने शत्रु या प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने हार स्वीकार करता है।


शाब्दिक विश्लेषण:

  • उद्यच्छेदेव – सदैव उद्योग करता रहे, प्रयासरत रहे।
  • न नमेत् – कभी झुके नहीं, समर्पण न करे।
  • उद्यमः हि एव पौरुषम् – निरंतर प्रयास ही पुरुषार्थ है।
  • अपि अपर्वणि भज्येत – असमय में भी टूट जाए।
  • न नमेदिह कर्हिचित् – फिर भी कभी झुके नहीं, हार न माने।

व्याकरणीय विश्लेषण:

  • "उद्यच्छेदेव" – यह लोटलकार (आगत्यार्थक रूप) में प्रयुक्त हुआ है, जो आदेश या प्रेरणा का बोध कराता है।
  • "न नमेत्" – लोटलकार का निषेध रूप है, अर्थात कभी झुकना नहीं चाहिए।
  • "ह्येव" – "हि" और "एव" का संयोग है, जो बलपूर्वक यह कहता है कि "केवल उद्योग ही" पुरुषार्थ है।
  • "अप्यपर्वणि" – यहाँ "अपि" (अर्थात् यहाँ तक कि) और "अपर्वणि" (असमय) का प्रयोग यह दर्शाने के लिए किया गया है कि विपरीत परिस्थिति में भी वीर पुरुष झुकता नहीं।

आधुनिक संदर्भ में व्याख्या:

  1. पुरुषार्थ का महत्व

    • यह श्लोक हमें सिखाता है कि उद्योग (प्रयत्न) ही सच्चा पुरुषार्थ है।
    • सच्चा वीर वही है जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने प्रयासों को नहीं त्यागता।
  2. कठिनाइयों से हार न मानना

    • प्रतिकूल समय में भी आत्मबल बनाए रखना आवश्यक है।
    • असफलता और चुनौतियों के सामने समर्पण करना कायरता है।
  3. स्वाभिमान और आत्मगौरव

    • एक सच्चा वीर परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, अपने स्वाभिमान को नहीं त्यागता।
    • वह परिस्थितियों से लड़ता है, चाहे उसे कितनी भी बड़ी हानि क्यों न सहनी पड़े।
  4. प्रेरणा और आत्मनिर्भरता

    • यह श्लोक हमें प्रेरित करता है कि हम अपने पुरुषार्थ और आत्मविश्वास के बल पर आगे बढ़ें।
    • सफलता का मूल मंत्र यही है कि कठिनाइयों के आगे झुकने के बजाय डटकर उनका सामना किया जाए।

उदाहरण एवं प्रेरणास्रोत:

  • भगवान श्रीराम – वनवास और रावण के अत्याचारों के बावजूद उन्होंने धैर्य नहीं खोया और पुरुषार्थ से विजय प्राप्त की।
  • छत्रपति शिवाजी महाराज – मुगलों की कठिन चुनौतियों के सामने भी आत्मसमर्पण नहीं किया और वीरता के साथ लड़े।
  • स्वामी विवेकानंद – जीवनभर पुरुषार्थ को महत्व दिया और आत्मनिर्भरता का संदेश दिया।

निष्कर्ष:

यह श्लोक हमें जीवन में कभी हार न मानने और हमेशा पुरुषार्थ में लगे रहने की प्रेरणा देता है। हमें विपरीत परिस्थितियों में भी अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी चाहिए और सतत प्रयासरत रहना चाहिए। यही सच्ची वीरता और सफलता का मार्ग है।

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