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संस्कृत श्लोक: "अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद |
संस्कृत श्लोक: "अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नैव च नैव च" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
श्लोक
शाब्दिक विश्लेषण:
- अश्वम् — घोड़ा
- नैव — नहीं
- गजम् — हाथी
- व्याघ्रम् — बाघ/शेर
- अजापुत्रम् — बकरी का बच्चा
- बलिं दद्यात् — बलिदान किया जाता है
- देवः — देवता (यहाँ प्रतीकात्मक)
- दुर्बलघातकः — दुर्बल को मारने वाला
व्याकरणिक विश्लेषण:
- नैव = न + एव : “नहीं ही” का बोधक
- बलिं दद्यात् : लोट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन (देना चाहिए)
- घातकः : "हिंसा करने वाला", “संहारक”
हिन्दी भावार्थ:
देवता कभी घोड़े की बलि नहीं लेते, न ही हाथी की, न ही बाघ की। बलि में केवल बकरी के बच्चे को ही चढ़ाया जाता है। इससे प्रतीत होता है कि देवता भी दुर्बल को ही मारते हैं।
अर्थात्, समाज में या सत्ता में भी वही दबाया जाता है जो दुर्बल होता है, शक्तिशाली नहीं।
आधुनिक सन्दर्भ में व्याख्या:
- बलशाली को कोई छूता नहीं — जैसे घोड़ा, हाथी, बाघ।
- दुर्बल को ही शिकार बनाया जाता है — जैसे बकरी का बच्चा।
- यह नीति, न्याय, शासन, या शक्ति के दुरुपयोग की ओर इशारा करता है कि जब व्यवस्था पक्षपातपूर्ण हो, तब सबसे अधिक पीड़ा निर्बल और असहाय को ही सहनी पड़ती है।
नीतिपरक निष्कर्ष (संदेश):
- समाज में यदि न्याय कमजोर की रक्षा न करे, और बलशाली को छूट दे, तो ऐसी व्यवस्था स्वयं "दुर्बलघातक" हो जाती है।
- यह श्लोक चेतावनी देता है कि "बलिदान" सदा दुर्बल का ही क्यों होता है?
संवादात्मक नीति-कथा — "देवालय की बलि"
पात्र:
- शिष्य – एक जिज्ञासु बालक
- गुरु – एक प्रबुद्ध मुनि
- अजापुत्र – एक मासूम बकरी का बच्चा
- राजकुमार – एक शक्ति-सम्पन्न बालक
- गृहस्थजन – कुछ सामान्य ग्रामीण
[दृश्य: एक वन में आश्रम के समीप स्थित एक पुरातन मंदिर, जहाँ बलि की तैयारी हो रही है]
शिष्य: नहीं गुरुदेव! न घोड़ा, न हाथी, न शेर। केवल बकरी या भेड़ जैसे निरीह प्राणी ही बलिदान होते हैं।
समझा तू इसका तात्पर्य?
शिष्य: इसका अर्थ तो यही हुआ कि शक्तिशाली को कोई कुछ नहीं कहता, और दुर्बल ही सदा संकट में डाल दिया जाता है।
[उसी समय, अजापुत्र – बकरी का बच्चा, रोते हुए बोलता है (काल्पनिक संवाद):]
[राजकुमार आता है, हाथ में तलवार लिए]
राजकुमार: गुरुदेव! राजपुरोहित ने कहा है— "बलि आवश्यक है"।
[गृहस्थजन एकत्र होते हैं और चर्चा करते हैं]
[सब मिलकर बलि रोक देते हैं। अजापुत्र मुक्त होता है]
नीति-संदेश:
जिस समाज में केवल दुर्बल ही बलिदान होता है, वह समाज आत्म-चिंतन करे— कहीं उसकी पूजा ही पाप न बन जाए।