नवरात्रि में माँ के मंत्रों द्वारा भौतिक तापों से मुक्ति के उपाय

Sooraj Krishna Shastri
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नवरात्रि में माँ के मंत्रों द्वारा भौतिक तापो से मुक्ति के उपाय

माँ दुर्गा के इन मंत्रो का जाप प्रति दिन भी कर सकते हैं। पर नवरात्र में जाप करने से शीघ्र प्रभाव देखा गया हैं।

नवरात्रि में माँ के मंत्रों द्वारा भौतिक तापों से मुक्ति के उपाय
नवरात्रि में माँ के मंत्रों द्वारा भौतिक तापों से मुक्ति के उपाय


1. सर्व प्रकार कि बाधा मुक्ति हेतु:

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वितः। 

मनुष्यो  मत्प्रसादेन  भविष्यति न संशयः॥

 अर्थातः- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब ""बाधाओं से मुक्त"" तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें जरा भी संदेह नहीं है। कम से कम सवा लाख जप कर 'दशांश' हवन अवश्य करें। 

किसी भी प्रकार के संकट या बाधा कि आशंका होने पर इस मंत्र का प्रयोग करें। उक्त मंत्र का श्रद्धा एवं विश्वास से जाप करने से व्यक्ति सभी प्रकार की बाधा से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र की प्राप्ति होती हैं।

 2. बाधा शान्ति हेतु:

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। 

एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥

 अर्थातः- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।

 3. विपत्ति नाश हेतु:

शरणागत - दीनार्त - परित्राण - परायणे। 

सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

 अर्थातः- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।

4.  पाप नाश हेतु:

हिनस्ति  दैत्यतेजांसि  स्वनेनापूर्य  या  जगत्। 

सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥

अर्थातः- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।

5. विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति हेतु:

 करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी 

शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।

 अर्थातः- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।

6. भय नाश हेतु:

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते। 

भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥

एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्। 

पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥

ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्। 

त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥

 अर्थातः- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।

7. सर्व प्रकार के कल्याण हेतु:

सर्वमङ्गलमङ्गल्ये     शिवे     सर्वार्थसाधिके। 

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

 अर्थातः- नारायणी! आप सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। आपको नमस्कार हैं।

व्यक्ति दु:ख, दरिद्रता और भय से परेशान हो चाहकर भी या परीश्रम के उपरांत भी सफलता प्राप्त नहीं होरही हों तो उपरोक्त मंत्र का प्रयोग करें।

 8. सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति हेतु:

पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। 

तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

 अर्थातः- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।

 9. शक्ति प्राप्ति हेतु: 

सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि। 

गुणाश्रये  गुणमये  नारायणि  नमोऽस्तु  ते॥

 अर्थातः- तुम सृष्टि, पालन और संहार करने वाली शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।

 10. रक्षा प्राप्ति हेतु:

शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके। 

घण्टास्वनेन न:  पाहि चापज्यानि:स्वनेन  च॥

अर्थातः- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।

देह को सुरक्षित रखने हेतु एवं उसे किसी भी प्रकार कि चोट या हानी या किसी भी प्रकार के अस्त्र-सस्त्र से सुरक्षित रखने हेतु इस मंत्र का श्रद्धा से नियम पूर्वक जाप करें।

 11. विद्या प्राप्ति एवं मातृभाव हेतु:

विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।

त्वयैकया  पूरितमम्बयैतत्  का  ते  स्तुति: स्तव्यपरा परोक्तिः॥

 अर्थातः- देवि! विश्वकि सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे हो।

समस्त प्रकार कि विद्याओं की प्राप्ति हेतु और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये इस मंत्रका पाठ करें।

 12. प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु:

प्रणतानां  प्रसीद  त्वं  देवि विश्वार्तिहारिणि। 

त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥

अर्थातः- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीय परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।

 13. आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति हेतु:

देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। 

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ॥

अर्थातः- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि मेरे शत्रुओं का नाश करो।

14. महामारी नाश हेतु:

जयन्ती  मङ्गला  काली   भद्रकाली  कपालिनी। 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

अर्थातः- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।

15. रोग नाश हेतु:

रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥

अर्थातः- देवि! तुमहारे प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।

 16. विश्व की रक्षा हेतु:

या  श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥

अर्थातः- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।

 17. विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश हेतु:

देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।

प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥

अर्थातः - शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।

 18. विश्व के पाप-ताप निवारण हेतु:

देवि  प्रसीद  परिपालय  नोऽरिभीतेर्नित्यं  यथासुरवधादधुनैव सद्य:।

पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥

अर्थातः- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो।

19. विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने हेतु:

यस्या:  प्रभावमतुलं  भगवाननन्तो  ब्रह्मा  हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च।

सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥

अर्थातः- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।

20. सामूहिक कल्याण हेतु: 

देव्या  यया  ततमिदं   जगदात्मशक्त्या   निश्शेषदेवगणशक्ति  समूहमूत्र्या।

तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥

अर्थातः- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।

कैसे करें मंत्र जाप :-

नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन संकल्प लेकर प्रातःकाल स्नान करके पूर्व या उत्तर दिशा कि और मुख करके दुर्गा कि मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या "षोड्षोपचार से पूजा करें।

शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष, स्फटिक, तुलसी या चंदन कि माला से मंत्र का जाप १,५,७,११ माला जाप पूर्ण कर अपने कार्य उद्देश्य कि पूर्ति हेतु मां से प्राथना करें।  संपूर्ण नवरात्रि में जाप करने से मनोवांच्छित कामना अवश्य पूरी होती हैं। उपरोक्त मंत्र के विधि-विधान के अनुसार जाप करने से मां कि कृपा से व्यक्ति को पाप और कष्टों से छुटकारा मिलता हैं और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुगम प्रतित होता हैं।

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