"कर्म, भक्ति और विधि का विधान" — एक प्रेरणादायक कथा
यह कथा भगवान शिव की करुणा, धर्म और कर्म के सिद्धांत की एक अत्यंत मार्मिक और शिक्षाप्रद प्रस्तुति है। आइए इसे व्यवस्थित, विस्तारपूर्ण एवं भावनात्मक रूप से गहराई के साथ पढ़ें :
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"कर्म, भक्ति और विधि का विधान" — एक प्रेरणादायक कथा |
"कर्म, भक्ति और विधि का विधान" — एक प्रेरणादायक कथा
एक बार की बात है। कैलाश पर्वत की दिव्य, शांत और पवित्र भूमि पर भगवान शिव और माँ पार्वती अपने ध्यान में लीन थे। हिमगिरि की गोद में सृष्टि के स्वामी शांत भाव से ध्यानस्थ थे। माँ पार्वती भी समीप विराजमान थीं।
ध्यान की उस अटूट स्थिति में भी माँ पार्वती ने देखा कि भगवान शिव के मुख पर एक कोमल, मंद मुस्कान तैर गई। यह दृश्य उनके लिए नया था। उन्होंने पहले कभी अपने स्वामी को ध्यान के मध्य मुस्कुराते हुए नहीं देखा था। यह देखकर उनके मन में जिज्ञासा जागी।
🕉️ पार्वती जी का प्रश्न
जब भगवान शिव की समाधि पूर्ण हुई, तब पार्वती जी ने आदरपूर्वक पूछा:
“नाथ! मैंने आज आपको पहली बार ध्यानावस्था में मुस्कराते हुए देखा है। इसका कोई विशेष कारण अवश्य होगा। क्या आप कृपाकर मुझे बताएँगे कि यह मंद मुस्कान क्यों आई?”
🔱 शिवजी का उत्तर
भगवान शिव ने सौम्य स्वर में उत्तर दिया:
“देवि! वास्तव में मैं अपने एक भक्त की पत्नी की बात सुनकर मुस्कराया था। वह एक ब्राह्मण है, मेरा अनन्य भक्त। वह मृत्युलोक में एक छोटे से मंदिर में पुजारी के रूप में मेरी सेवा करता है। उसका सारा जीवन मेरे पूजन, अर्चन और स्मरण में बीतता है। वह मंदिर के पीछे बनी एक छोटी-सी कुटिया में अपनी पत्नी के साथ निवास करता है।”
🧺 भक्त की पारिवारिक परिस्थिति
शिवजी ने आगे बताया –
“उस ब्राह्मण की पत्नी चाहती है कि उनका एक सुंदर घर हो, सुख-सुविधाओं से युक्त जीवन हो, परंतु उस पुजारी की आय केवल मंदिर में चढ़ावे और दान पर निर्भर है। बहुत कठिनाई से गृहस्थी चलती है। फिर भी वह भक्त दिन-रात मेरी आराधना में लीन रहता है, और अपनी पत्नी के सुख के लिए मुझसे प्रार्थना करता है।”
😔 पत्नी की व्यथा और शिव की मुस्कान
“आज उसकी पत्नी ने दुखी होकर उससे व्यंग्य में कहा – ‘जिन भोलेनाथ की तुम रात-दिन सेवा करते हो, उनसे मेरे लिए घर मांगते हो, उन्होंने स्वयं अपने लिए कोई घर नहीं बनाया। वे तो स्वयं कैलाश पर्वत पर रहते हैं। वे तुम्हें घर कैसे देंगे?’
“उस स्त्री की यह भोली, किंतु तीव्र व्यथा से भरी बात सुनकर मैं मुस्कराए बिना न रह सका।”
🤔 पार्वती जी का आश्चर्य
यह सुनकर माँ पार्वती को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा:
“स्वामी! यह बात तो आपके अपमान की तरह है। यह स्त्री आपकी निंदा कर रही है, और आप केवल मुस्कुरा रहे हैं? क्यों न आप उसे एक सुंदर घर और सुख दे दें, जिससे वह आपकी निंदा न करे?”
📜 विधि का विधान
भगवान शिव गंभीर भाव से बोले:
“पार्वती! यह मेरी इच्छा से परे है। मृत्युलोक में जो भी जीव जन्म लेता है, वह अपने पूर्व जन्म के कर्मों और वर्तमान जीवन के कर्मों का फल भोगता है। जब तक वह कर्मफल पूर्ण नहीं होता, तब तक उसे जो कुछ मिलना है – सुख हो या दुःख – उसे सहना ही होता है। यही मृत्युलोक का नियम है। यह कर्मभूमि है, जहाँ बिना कर्म के गति नहीं है।”
🔍 पूर्व जन्म का रहस्य
शिवजी ने आगे बताया:
“वह ब्राह्मण पूर्व जन्म में एक साहूकार था। वह लोगों की जमीन, जेवर और पशु गिरवी रखकर उन्हें ऊँचे ब्याज पर धन देता था। कई बार वह उन गरीबों की संपत्ति हड़प लेता था। उसकी पत्नी भी उन अमानुषिक लाभों में सहभागी थी। उन्होंने जो अन्याय किए, वे आज उनके वर्तमान जीवन में अभाव के रूप में प्रकट हो रहे हैं।”
🧘 भक्ति का प्रभाव
“हालाँकि इस जन्म में वह मेरी सच्चे मन से सेवा कर रहा है। उसकी भक्ति के कारण उसे जो दुःख और क्लेश मिल सकते थे, वे बहुत हद तक टल गए हैं। उसका जीवन संतोष और शांति से बीत रहा है, परंतु जब तक उसका कर्मफल पूर्ण नहीं होता, उसे गृह-लक्ष्मी का सुख नहीं मिल सकता।”
🌌 कलियुग की घोषणा
पार्वती जी ने पुनः पूछा:
“स्वामी! फिर भी उसकी पत्नी आपकी निंदा कर रही है, क्या यह अनुचित नहीं?”
भगवान शिव मुस्कराकर बोले:
“पार्वती! जैसे-जैसे कलियुग आगे बढ़ेगा, लोग ईश्वर की भक्ति करने के बजाय उनकी निंदा करने लगेंगे। यह सृष्टि के आरम्भ में ही नियत हो चुका है। किन्तु इस अंधकारपूर्ण युग में जो मनुष्य सच्चे भाव से मेरी सेवा करेगा, उसे अंततः इस मृत्यु लोक से मुक्ति मिल जाएगी। यही मेरा वचन है।”
🌺 कथा से शिक्षा
- ईश्वर भले ही सब कुछ जानें, पर वे कर्मविधान में हस्तक्षेप नहीं करते।
- भक्ति कठिन कर्मों के फल को शिथिल करती है, पर समाप्त नहीं।
- जो इस युग में भी श्रद्धा से प्रभु की सेवा करता है, वह अंततः उन्नति व मोक्ष को प्राप्त करता है।
- कठिन परिस्थितियाँ हमारे पिछले कर्मों की परछाई होती हैं।
- ईश्वर की दृष्टि में निंदा भी एक अवसर है, करुणा का, क्षमा का, और मुस्कुराने का।