Shri Durga Kavach हिन्दी में सम्पूर्ण श्लोक और भावार्थ सहित। जानें शक्तिशाली देवी कवच का महत्व और रोज़ाना पाठ के लाभ।

Sooraj Krishna Shastri
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Shri Durga Kavach हिन्दी में सम्पूर्ण श्लोक और भावार्थ सहित। जानें शक्तिशाली देवी कवच का महत्व और रोज़ाना पाठ के लाभ।


1. संक्षेप में — क्या है देवी कवच और क्यों महत्वपूर्ण है?

देवी कवच (विशेषतः श्री दुर्गा कवच) एक ऐसा शास्त्रीय स्तोत्र है जिसमें भगवती के विभिन्न रूपों को सम्पूर्ण शरीर व जीवन के अंगों की रक्षा हेतु आह्वान किया गया है। आवाज़ में पढ़ने, हृदय में धारण करने और मन में श्रद्धा रखने से इसे आरम्भिक सुरक्षा-मंत्र/ढाल माना जाता है। इसका महत्व तीन कारणों से विशेष है — (1) पारंपरिक/शास्त्रीय मान्यता (मार्कण्डेय पुराण), (2) भक्तिचालित आध्यात्मिक सुरक्षा, और (3) सामूहिक व व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक सुरक्षा प्रदान करना।


2. शास्त्रीय व ऐतिहासिक स्थिति

  • श्री दुर्गा कवच दुर्गा सप्तशती / मार्कण्डेय पुराण के भाग से लिया गया है; शास्त्रों में इसे दिव्य, गोपनीय और रक्षात्मक माना गया है।
  • परंपरागत रूप से इसे सुरक्षा, रोग-निवारण और अभिचार/बाधा नाश के संदर्भ में पढ़ा गया है।
  • कवच का स्वरूप: प्रत्येक श्लोक में देवी को शरीर के किसी अंग अथवा स्थिति में रक्षक के रूप में स्थापित किया गया है — इसलिए इसे “कवच” (ढाल) कहा जाता है।

3. आध्यात्मिक और भक्तिगत लाभ

  1. भक्ति-संवर्धन: नियमित पाठ भक्तिप्रधान जीवनशैली को मजबूती देता है; मन का केन्द्र एकाग्र होता है।
  2. दैवी संरक्षण का अनुभव: श्रद्धा के साथ होने पर आंतरिक शांति और आत्म-विश्वास बढ़ता है — इसे परंपरा में देवी की रक्षा मानते हैं।
  3. संकल्प व स्मरण शक्ति बढ़ना: कवच का उच्चारण नियमित ध्यान तथा स्मृति-चेतना को बढ़ाता है।
  4. पापक्षय व पुण्यलाभ: शास्त्रीय कथाओं के अनुसार कवच का पाठ पुण्य वृद्धि व पापनाश का उपाय है।

4. व्यावहारिक/मनोवैज्ञानिक लाभ (आधुनिक दृष्टि)

  1. तनाव-नियमन: नियमित पाठ और मंत्रोच्चारण प्राणायाम-समान श्वसन और रिदम बनाते हैं — इससे तनाव, घबराहट कम होती है।
  2. ध्यान/माइंडफुलनेस: श्लोकों पर ध्यान केंद्रित करने से ध्यान-क्षमता बढ़ती और रूमिनेटिव चिंताएँ घटती हैं।
  3. आदत और संरचना: रोज़ाना पाठ दिनचर्या में अनुशासन देता है — यह जीवन में स्थिरता लाता है।
  4. सामाजिक/सांस्कृतिक लाभ: परिवार या समूह में पाठ करने से सामूहिक एकता, सांस्कृतिक पहचान और सहायक नेटवर्क बनते हैं।

5. रोज़ाना पाठ के चमत्कारी प्रभाव — क्या अपेक्षा करें?

  • तुरंत प्रभाव: मनोवैज्ञानिक सान्त्वना, आश्वासन और भय में कमी (पहली कुछ बार से ही)।
  • मध्यम अवधि (कुछ सप्ताह): ध्यान-सहनशीलता, चिंता में कमी, बेहतर नींद, सकारात्मक सोच में वृद्धि।
  • दीर्घकाल (महीने/साल): जीवनशैली में बदलाव — धर्म-भाव, नैतिकता, संकटप्रतिकारक क्षमता, और सामाजिक सम्मान में वृद्धि (परम्परा के अनुसार)।

ध्यान: “चमत्कार” शब्द व्यक्तिपरक है — अनुभव व्यक्ति के श्रद्धा-स्तर, अभ्यास और परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करेगा।


6. दैनिक पाठ का व्यावहारिक तरीका (अनुशंसित)

  1. शुद्धता: स्नान/शौच, कपड़े स्वच्छ, स्थान साफ। (परम्परा अनुसार)
  2. समय: प्रातः-संध्या उत्तम; यदि संभव न हो तो किसी भी शान्त समय में। (कवच में त्रिसंध्य पाठ का विशेष महत्व आता है)
  3. मन्त्र/श्लोक: शुद्ध देवनागरी में पढ़ें (या जिस भाषा में सहज हों)। श्लोक का अर्थ समझ कर पढ़ना और अधिक प्रभावी है।
  4. उच्चारण: स्पष्ट और धीमी गति से; यदि सामूहिक पढ़ना हो तो एक-एक श्लोक पर ध्यान दें।
  5. संकल्प (Sankalpa): पाठ से पहले साधारण संकल्प लें — मेरी रक्षा करें, भय हटाएँ आदि।
  6. संख्या: प्रारम्भ में 1 पाठ प्रतिदिन; अनिच्छुकतः 3-संध्याएँ करने वालों का शास्त्रीय फल अधिक बताया गया है।
  7. समापन: ध्यान/शांत बैठना 1–3 मिनट — पाठ के प्रभाव को internalize करने के लिए।

7. शारीरिक/सामाजिक लाभ (व्यापक)

  • रोग-प्रतिकारक मनोवृत्ति: प्रतिकूल भावनाएँ घटने से रोग-प्रतिकारक क्षमता पर सकारात्मक प्रभाव।
  • सुरक्षा-भाव: अस्तित्वगत भय कम होना (खासकर अकेलापन, अनिश्चिता की अनुभूति घटती है)।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा: पारिवारिक व धार्मिक गतिविधियों में नेतृत्व/सम्मान बढ़ता है।

8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से (स्पष्टीकरण)

  • स्थानापन्न प्रभाव (Placebo): यदि व्यक्ति को लगता है कि पाठ उससे सुरक्षित करेगा, तो मनोवैज्ञानिक रूप से वह स्थिर होता है — इससे व्यवहार व निर्णय बेहतर होते हैं।
  • न्यूरो-बायोलॉजी: नियमित मंत्र उच्चारण और ध्यान मस्तिष्क में पैरासिम्पैथेटिक सक्रियता बढ़ा सकता है — शांति और नींद में सुधार।
  • संचारी प्रभाव: सामूहिक पाठ से ऑक्सीटोसीन/सम्बन्धों की भावना बढ़ती है, मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।

9. सावधानियाँ और नैतिक दिशानिर्देश

  1. अंधविश्वास से बचें: कवच एक आध्यात्मिक साधन है — इसे जादू-टोना समझकर सिर्फ़ बाह्य उपाय न बनायें। योग्य साधना, चिकित्सा और तर्क को साथ रखें।
  2. आध्यात्मिक शिष्टाचार: श्लोकों का अपमान, अनादर या उपहास न करें।
  3. व्यापारिक शोषण से सतर्कता: कुछ लोग धार्मिक ग्रन्थों को वाणिज्यिक रूप से गलत प्रचार कर देते हैं — प्रमाणित स्रोत / विश्वसनिय गुरु से मार्गदर्शन लें।
  4. स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों में डॉक्टर से परामर्श लें: यदि गंभीर मानसिक/शारीरिक समस्या है तो आध्यात्मिक साधना को चिकित्सा का विकल्प न समझें।

🌷🌷 श्री दुर्गा कवचम् 🌷🌷


ॐ नमश्चण्डिकायै। मार्कण्डेय उवाच।

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥

— हे पितामह! संसार में जो परम गोपनीय साधन मनुष्यों की रक्षा करने वाला है और जिसे किसी से आपने प्रकट नहीं किया, वह मुझे बताइए।


ब्रह्मोवाच 

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥

— हे महामुनि! एक दिव्य कवच है, जो परम गोपनीय, पुण्यदायक और सभी प्राणियों का उपकार करने वाला है, उसे सुनो।


प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥३॥

— प्रथम नाम शैलपुत्री है, दूसरी ब्रह्मचारिणी। तीसरी चन्द्रघण्टा और चौथी कूष्माण्डा कही जाती हैं।



Shri Durga Kavach हिन्दी में सम्पूर्ण श्लोक और भावार्थ सहित। जानें शक्तिशाली देवी कवच का महत्व और रोज़ाना पाठ के लाभ।
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पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥

— पाँचवीं स्कन्दमाता, छठी कात्यायनी, सातवीं कालरात्रि और आठवीं महागौरी हैं।


नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥

— नवमी सिद्धिदात्री कहलाती हैं। ये नौ दुर्गाएँ ब्रह्मा द्वारा प्रतिपादित की गई हैं।


अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥

— जो अग्नि में जल रहा हो, शत्रुओं से घिरा हो या कठिन संकट में फँसा हो, भय से व्याकुल होकर यदि देवी की शरण में आता है तो उसकी रक्षा होती है।


न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥७॥

— युद्ध या संकट में भी उसके ऊपर कोई विपत्ति नहीं आती। शोक, दुःख और भय से वह मुक्त रहता है।


यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥८॥

— जो लोग भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण करते हैं, उनका अभ्युदय होता है। हे देवेश्वरि! जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी रक्षा निश्चित होती है।


प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना॥९॥

— चामुण्डा प्रेत पर आरूढ़ हैं। वाराही भैंसे पर, ऐन्द्री ऐरावत पर और वैष्णवी गरुड़ पर आरूढ़ होती हैं।


माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥१०॥

— माहेश्वरी वृषभ पर आरूढ़ हैं। कौमारी मयूर पर, और भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी कमलासन पर विराजमान हैं तथा हाथों में कमल धारण किए रहती हैं।


श्वेतरूपधारा देवी ईश्वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता॥११॥

— वृषभ पर आरूढ़ ईश्वरी देवी ने श्वेत रूप धारण किया है। ब्राह्मी हंस पर बैठी हैं और सभी प्रकार के आभूषणों से सुशोभित हैं।


इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढया नानारत्नोपशोभिता:॥१२॥

— इस प्रकार ये सभी माताएँ योगशक्तियों से सम्पन्न हैं और अनेक आभूषण तथा रत्नों से सुशोभित हैं।


दृश्यन्ते रथमारूढा देव्याः क्रोधसमाकुला:।
शंखं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥१३॥

— ये देवी रथ पर आरूढ़ और क्रोध से भरी दिखाई देती हैं। इनके हाथों में शंख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मूसल हैं।


खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥१४॥

— इनके पास खेटक, तोमर, परशु, पाश, कुन्तायुध, त्रिशूल और शार्ङ्गधनुष जैसे उत्तम अस्त्र हैं।


दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥१५॥

— देवी इन अस्त्रों से दैत्यों का नाश करती हैं, भक्तों को अभय प्रदान करती हैं और देवताओं के हित के लिए युद्ध करती हैं।


नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥१६॥

— हे महामहाबल! तुम्हें नमस्कार जो रौद्ररूप, घोर पराक्रम, महान उत्साह और महान भय नाश करने वाली हो।


त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥१७॥

— हे देवी! दुर्जनों के दुष्ट दृष्टि से मुझे बचाओ। पूर्व दिशा में ऐन्द्री, आग्नेय दिशा में अग्निदेवता मेरी रक्षा करें।


दक्षिणेऽवतु वाराही नैऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥१८॥

— दक्षिण दिशा में वाराही, नैऋत्य में खड्गधारिणी, पश्चिम में वारुणी और वायव्य में मृगवाहिनी मेरी रक्षा करें।


उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणी में रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥१९॥

— उत्तर दिशा में कौमारी, ईशान्य कोण में शूलधारिणी, ऊपर से ब्रह्माणी और नीचे से वैष्णवी मेरी रक्षा करें।


एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु: विजया पातु पृष्ठतः॥२०॥

— इस प्रकार शववाहिनी चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया आगे से और विजया पीछे से मेरी रक्षा करें।


अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥२१॥

— वामभाग में अजिता और दक्षिण में अपराजिता देवी मेरी रक्षा करें। उद्योतिनी शिखा वाली उमा देवी मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करें।


मालाधारी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥२२॥

— ललाट में मालाधारी, भौंहों में यशस्विनी, भौंहों के मध्य में त्रिनेत्रा और नथुनों में यमघण्टा देवी मेरी रक्षा करें।


शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शाङ्करी॥२३॥

— आंखों के मध्य शङ्खिनी, कान के द्वारों में श्रोत्रवासिनी, गाल में कालिका और कर्णमूल में शङ्करी देवी मेरी रक्षा करें।


नासिकायां सुगन्‍धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥२४॥

— नाक में सुगंधा, ऊपर के ओंठ में चर्चिका, नीचे के ओंठ में अमृतकला और जिह्वा में सरस्वती देवी मेरी रक्षा करें।


दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥२५॥

— दाँतों की रक्षा कौमारी, कण्ठ की रक्षा चण्डिका, गले की रक्षा चित्रघण्टा और तालु में महामाया देवी करें।


कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमंगला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धारी॥२६॥

— कामाक्षी देवी ठोढ़ी और मेरी वाणी की रक्षा करें। भद्रकाली ग्रीवा में और धनुर्धारी पृष्ठवंश में रक्षा करें।


नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खड्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥२७॥

— कण्ठ के बाहरी भाग में नीलग्रीवा और नली में नलकूबरी, दोनों कंधों में खड्गिनी और भुजाओं में वज्रधारिणी मेरी रक्षा करें।


हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाड़्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥२८॥

— हाथों में दण्डिनी, उँगलियों में अम्बिका, नखों में शूलेश्वरी और पेट में कुलेश्वरी देवी मेरी रक्षा करें।


स्तनौ रक्षेन् महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥२९॥

— स्तनों की रक्षा महादेवी, मन की रक्षा शोकविनाशिनी, हृदय में ललिता और उदर में शूलधारिणी देवी मेरी रक्षा करें।


नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुहे महिषवाहिनी॥३०॥

— नाभि में कामिनी, गुह्य भाग में गुह्येश्वरी, लिंग की पूतना और मेढ्र में महिषवाहिनी देवी मेरी रक्षा करें।


कट्यां भगवतीं रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥३१॥

— कटि में भगवती, घुटनों में विन्ध्यवासिनी, जंघाओं में महाबला और संपूर्ण कामनाओं को देने वाली देवी मेरी रक्षा करें।


गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्रीरक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥३२॥

— गुल्फों में नारसिंही, पादपृष्ठ में तैजसी देवी, पैरों की उँगलियों में श्रीदेवी और पैरों के तलुओं में तलवासिनी देवी मेरी रक्षा करें।


नखान् दंष्ट्रा कराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥३३॥

— नखों में दंष्ट्राकराली, केशांश में ऊर्ध्वकेशिनी, रोमकूपों में कौबेरी और त्वचा में वागीश्वरी देवी मेरी रक्षा करें।


रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥३४॥

— रक्त, मज्जा, वसा, माँस, हड्डी और मेद की रक्षा पार्वती, आँतों की रक्षा कालरात्रि और पित्त की रक्षा मुकुटेश्वरी देवी करें।


पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसन्धिषु॥३५॥

— कमल-कोशों में पद्मावती, कफ में चूडामणि, नख में ज्वालामुखी और शरीर की सभी संधियों में अभेद्या देवी मेरी रक्षा करें।


शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा।
अहङ्कारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥३६॥

— वीर्य की रक्षा ब्रह्माणी, छाया की रक्षा छत्रेश्वरी, अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा धर्मधारिणी देवी करें।


प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥३७॥

— प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा वज्रहस्ता देवी करें। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती मेरी प्राण रक्षा करें।


रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥३८॥

— रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श का अनुभव करते समय योगिनी देवी मेरी रक्षा करें। सत्त्व, रज और तमोगुण की रक्षा नारायणी सदा करें।


आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥३९॥

— आयु की रक्षा वाराही, धर्म की रक्षा वैष्णवी, यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन और विद्या की रक्षा चक्रिणी देवी करें।


गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥४०॥

— गोत्र की रक्षा इन्द्राणी करें, पशुओं की रक्षा चण्डिका, पुत्रों की रक्षा महालक्ष्मी और पत्नी की रक्षा भैरवी देवी करें।


पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥४१॥

— मार्ग और पथ की सुरक्षा सुपथा देवी करें। राजा के दरबार में महालक्ष्मी और सभी ओर विजया देवी मेरी रक्षा करें।


रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवी जयन्ती पापनाशिनी॥४२॥

— कवच में वर्णित न किए हुए स्थानों को भी देवी मेरी रक्षा करें, क्योंकि तुम विजयशालिनी और पापनाशिनी हो।


पदमेकं न गच्छेतु यदिच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥४४॥

— अपने शरीर के लिए शुभ पग भी कवच का पाठ किए बिना न बढ़ाए। कवच द्वारा सुरक्षित होकर ही यात्रा करें।


तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सर्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्॥

— कवच पाठ करने वाला जहां-जहां भी जाए, वहाँ धन, लाभ और विजय प्राप्त होती है। वह अपनी इच्छाओं को निश्चित रूप से प्राप्त करता है।


परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥

— इस पुरुष को पृथ्वी पर अतुल्य परम ऐश्वर्य प्राप्त होता है।


निर्भयो जायते मर्त्यः सङ्ग्रमेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥४५॥

— कवच द्वारा सुरक्षित पुरुष निर्भय होता है, युद्ध में अपराजेय और तीनों लोकों में पूजनीय होता है।


इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्।
य: पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥४६॥

— यह देवी कवच देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। जो इसे प्रतिदिन श्रद्धा से तीन संधियों में पढ़ता है, उसे अपराजेयता प्राप्त होती है।


दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥४७॥

— इस कवच को पढ़ने वाला पुरुष सौ वर्ष या उससे अधिक जीवित रहता है और मृत्यु के भय से मुक्त रहता है।


नश्यन्ति व्याधय: सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥४८॥

— मकर, चेचक, कोढ़, स्थावर और जङ्गम विष, कृत्रिम विष आदि सब नष्ट हो जाते हैं।


अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥४९॥

— सभी प्रकार के अभिचार, मंत्र-यंत्र, भूचर, खेचर और जल-जनित उत्पत्ति से आने वाले कष्ट नष्ट हो जाते हैं।


सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबला॥५०॥

— जन्म से मिलने वाली, कुलजा, माला, डाकिनी, शाकिनी और अन्तरिक्ष में विचरण करने वाली भयानक डाकिनियाँ भी कवचधारी पुरुष को हानि नहीं पहुँचा सकतीं।


ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसा:।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥५१॥

— ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, वेटाल, कूष्माण्डा और भैरव आदि सभी प्रकार के हानिकारक प्राणी कवचधारी पुरुष को हानि नहीं पहुँचा सकते।


नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद्राज्यस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥५२॥

— कवच हृदय में धारण करने से उसकी सभी व्याधियाँ, रोग और कष्ट नष्ट हो जाते हैं। उसे मान-सम्मान, राज्य और तेज की वृद्धि होती है।


यशसा वर्द्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥५३॥

— कवच का पाठ करने वाला व्यक्ति अपने यश और कीर्ति से पृथ्वी पर प्रतिष्ठित होता है। जो सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, वह और भी शक्तिशाली बनता है।


यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां सन्ततिः पुत्रपौत्रिकी॥५४॥

— जब तक पृथ्वी, पर्वत और वन स्थिर हैं, तब तक उसकी संतान और वंश की परम्परा बनी रहती है।


देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥५५॥

— देहांत होने पर वह पुरुष भगवती महामाया के प्रसाद से परम स्थान को प्राप्त करता है, जो दुर्लभ है।


लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ॥ॐ॥ ॥५६॥

— उसे दिव्य और सुंदर रूप प्राप्त होता है और वह भगवान शिव के साथ आनंदित होता है।


।। इति देव्या: कवचं सम्पूर्णम् ।।

इस प्रकार देवी का कवच पूर्ण हुआ।


10. सामान्य प्रश्न (FAQs) — संक्षेप उत्तर

Q: क्या रोज़ाना 1 पाठ पर्याप्त है?
A: हाँ — निरन्तरता महत्वपूर्ण है; यदि संभव हो तो त्रिसंध्य (प्रातः/मध्याह्न/सायं) आदर्श माना गया है।

Q: क्या इसे किसी विशेष समय में ही पढ़ना चाहिए?
A: प्रातः-सुबह व संध्या श्रेष्ठ; परन्तु समय की कठिनाई पर किसी भी शांत समय में पढ़ें।

Q: क्या अनुवाद के साथ पढ़ना चाहिए?
A: हाँ — अर्थ समझकर पढ़ना प्रभाव को बढ़ाता है।

Q: क्या बिना मंत्रोच्चारण के भी लाभ होंगे (मन में सोचकर)?
A: मन में भजन-ध्यान भी लाभ देता है पर उच्चारण ऊर्जा सक्रियता व सामूहिक प्रभाव में मदद करता है।


11. व्यवहारिक सुझाव — कैसे शुरू करें (स्टेप-बाय-स्टेप)

  1. 7–21 दिन का लक्ष्‍य बनाएं (daily 1 पाठ)।
  2. पहले 3–7 दिन शुद्ध उच्चारण पर ध्यान दें (धीरे पढ़ें)।
  3. साथ में श्लोक का अर्थ पढ़ें/नोट करें — इससे मन जुड़ता है।
  4. दिन के किसी निश्चित समय इसे पाठ के रूप में करें — रूटीन बनाएं।
  5. अनुभव पर नोट रखें — मानसिक स्थिति, नींद, भय में परिवर्तन — 15–30 दिन के बाद तुलना करें।

12. निष्कर्ष (संक्षेप)

देवी कवच केवल एक प्राचीन मंत्र-संग्रह नहीं; यह एक प्रणाली है जो श्रद्धा, धैर्य, अनुशासन और ध्यान के साथ जोड़कर व्यक्ति को आंतरिक व बाह्य सुरक्षा का अनुभव दिलाती है। शास्त्रीय कथानुसार कवच रक्षात्मक और फलप्रद है; आधुनिक दृष्टि से इसका प्रमुख लाभ मानसिक-भावनात्मक संतुलन, तनाव-निवारण और सामाजिक-आध्यात्मिक जुड़ाव में निहित है।

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