Shlok on True Friendship vs Deceitful Speech: संस्कृत श्लोक "अन्यथैव हि सौहार्दं भवेत् स्वच्छान्तरात्मनः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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Shlok on True Friendship vs Deceitful Speech: संस्कृत श्लोक "अन्यथैव हि सौहार्दं भवेत् स्वच्छान्तरात्मनः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

“अन्यथैव हि सौहार्दं भवेत् स्वच्छान्तरात्मनः…” यह नीति श्लोक बताता है कि सज्जन और दुर्जन की मित्रता में कितना अंतर है। सज्जन व्यक्ति की वाणी और व्यवहार एक समान होते हैं, जबकि धूर्त और कपटी व्यक्ति की वाणी मधुर होती है लेकिन कर्म विपरीत। इस लेख में श्लोक का अंग्रेजी ट्रान्सलिटरेशन, हिन्दी अनुवाद, शब्दार्थ, व्याकरणात्मक विश्लेषण, आधुनिक सन्दर्भ, नीति कथा और निष्कर्ष सहित विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत है। यह श्लोक आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि जीवन में अक्सर लोग मीठे शब्दों में छिपे छल का शिकार हो जाते हैं। सच्चा मित्र वही है जिसकी अंतरात्मा निर्मल हो और जिसके वचन तथा कर्म एक दूसरे से मेल खाते हों।


📜 श्लोक

अन्यथैव हि सौहार्दं भवेत् स्वच्छान्तरात्मनः ।
प्रवर्ततेऽन्यथा वाणी शाठ्योपहतचेतसः ॥


🔤 English Transliteration

Anyathaiva hi sauhārdaṁ bhavet svacchāntarātmanaḥ,
pravartate ’nyathā vāṇī śāṭhyopahata-cetasaḥ.


🇮🇳 हिन्दी अनुवाद

"स्वच्छ अंतरात्मा वाले मनुष्य की मित्रता (सौहार्द) एक प्रकार की होती है, परंतु शाठ्य (कपट) से ग्रसित चित्त वाले मनुष्य की वाणी बिलकुल भिन्न प्रकार से प्रकट होती है। अर्थात् सज्जन की मित्रता और दुर्जन की मित्रता में अंतर होता है – सज्जन के वचन और व्यवहार एक समान होते हैं, जबकि धूर्त की बातें कुछ और और कर्म कुछ और होते हैं।"

Shlok on True Friendship vs Deceitful Speech: संस्कृत श्लोक "अन्यथैव हि सौहार्दं भवेत् स्वच्छान्तरात्मनः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
Shlok on True Friendship vs Deceitful Speech: संस्कृत श्लोक "अन्यथैव हि सौहार्दं भवेत् स्वच्छान्तरात्मनः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

🪶 शब्दार्थ

  • अन्यथैव → बिल्कुल भिन्न, भिन्न प्रकार से
  • हि → निश्चय ही
  • सौहार्दं → मैत्री, मित्रभाव
  • भवेत् → होता है
  • स्वच्छ-अन्तर-आत्मनः → जिसकी अंतरात्मा निर्मल हो
  • प्रवर्तते → प्रवाहमान होती है, प्रकट होती है
  • अन्यथा → अन्य रूप में, विपरीत
  • वाणी → वचन, वाणी
  • शाठ्य-उपहत-चेतसः → कपट से प्रभावित हृदय वाले

📖 व्याकरणात्मक विश्लेषण

  • सौहार्दं भवेत् → लट् लकार, विधिलिङ्ग, "हो सकता है"।
  • स्वच्छान्तरात्मनः → षष्ठी विभक्ति, "शुद्ध अंतरात्मा वाले का"।
  • प्रवर्तते → लट् लकार, आत्मनेपदी, "चलती है / प्रकट होती है"।
  • शाठ्योपहतचेतसः → समास (तत्पुरुष), "शाठ्य (कपट) से प्रभावित चित्त वाला"।

🌍 आधुनिक सन्दर्भ

  • आज के समाज में यह श्लोक गहरी शिक्षा देता है।
  • सज्जन और दुर्जन का अंतर शब्दों और कर्मों से स्पष्ट होता है।
  • सज्जन व्यक्ति की वाणी और व्यवहार में सामंजस्य होता है।
  • दुर्जन व्यक्ति की वाणी मधुर होती है पर कर्म विपरीत।
  • राजनीति, व्यापार, सोशल मीडिया या व्यक्तिगत रिश्तों में यह सत्य प्रतिदिन दिखाई देता है।

🎭 संवादात्मक नीति कथा

👦 शिष्य: गुरुदेव! सज्जन और दुर्जन का पता कैसे लगे?
👳‍♂️ गुरु: वत्स! सज्जन के वचन और आचरण एक समान होते हैं। परंतु कपटी व्यक्ति की जीभ पर मधु और हृदय में विष होता है। उसके वचन एक दिशा में चलते हैं और कर्म दूसरी दिशा में।


✅ निष्कर्ष

  • मित्रता और व्यवहार का मूल्यांकन केवल वचनों से नहीं, कर्मों से करना चाहिए।
  • कपटी व्यक्ति पर शीघ्र विश्वास करना हानिकारक है।
  • यह श्लोक हमें सज्जनता और कपट के बीच का स्पष्ट अंतर दिखाता है।
  • सच्चा सौहार्द वही है जिसमें अंतरात्मा की निर्मलता झलकती हो।


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